ये फैसला बेहद विवादास्पद

फैसला कुछ रोज पहले आया। लेकिन

Update: 2021-01-29 10:18 GMT

फैसला कुछ रोज पहले आया। लेकिन जब इसके बारे में देश में जानकारी फैली, तब इस पर प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हुईं। फैसले पर जताया गया आक्रोश जायज है। आधुनिक काल में, खासकर अब जबकि महिलाओं के यौन उत्पीड़न को लेकर जागरूकता काफी बढ़ चुकी है, आखिर एक हाई कोर्ट ऐसा फैसला कैसे दे सकता है? फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ का है। यहां एक आरोपी ने सेशन्स कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सेशन्स कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया था। हाई कोर्ट ने उसके अपराधी सिद्ध होने को तो सही बताया, लेकिन सिर्फ धारा 354 के तहत पॉक्सो (बाल यौन उत्पीड़न) के आरोप से उसे बरी कर दिया। नागपुर में रहने वाली 12 साल की एक लड़की का आरोप था कि आरोपी उसे बरगला कर अपने घर ले गया और फिर वहां जबरन उसकी छाती पर हाथ रखा। साथ ही उसके कपड़े उतारने की कोशिश की। ऐन मौके पर पीड़िता के माता-पिता वहां आ गए, जिससे वह व्यक्ति और कोई हरकत नहीं कर सका। अपने फैसले में हाई कोर्ट कहा कि इसे पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न का मामला नहीं कहा जा सकता है।


जज ने कहा कि पॉक्सो के तहत इस तरह के आरोप के लिए कड़ी सजा है, इसीलिए इस आरोप को सिद्ध करने के लिए और कड़े सबूत और और ज्यादा गंभीर आरोपों की आवश्यकता है। क्या अदालत की पॉक्सो कानून के सेक्शन सात की इस विवेचना से सहमत हुआ जा सकता है कि कपड़ों के ऊपर से छूने से यौन उत्पीड़न साबित नहीं होता? फैसले में साफ है कि जज ने इसे यौन उत्पीड़न का मामला तो माना, लेकिन इस तरह के अपराध के लिए पॉक्सो कानून के तहत जो न्यूनतम तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है, उसे लागू नहीं किया। अब कानून के जानकार कह रहे हैं कि ये फैसला पॉक्सो कानून के इस प्रावधान की समीक्षा की जरूरत को रेखांकित करता है। जाहिर है कि तीन साल जेल की न्यूनतम सजा के कारण अदालत इसे लागू करने में हिचक गई। सख्त सजा के पैरोकारों के लिए यह एक सबक भी है। दरअसल, मसला सख्त सजा का नहीं, बल्कि आरोप सिद्ध करने के लिए कुशल आपराधिक न्याय व्यवस्था का है। बहरहाल, इस मामले में यह व्याख्या भी समस्याग्रस्त है कपड़ों के ऊपर से छुए जाने से अपराध कम हो जाता है। कोर्ट ने असल में ऐसी घटना से किसी बच्ची को जो मानसिक आघात पहुंचता है, उसे नजरअंदाज कर दिया है।


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