वो महिलाओं को कैद करते हैं, कत्ल करते हैं और दम भरते हैं कि हम पहले वाले तालिबान नहीं हैं
वो आसमान में उड़ने का ख़्बाव देखती थी, उसने पंख फैलाने भी शुरु कर दिए थे और नन्हीं नन्हीं उड़ान भरनी भी शुरु कर दी थी
वो आसमान में उड़ने का ख़्बाव देखती थी, उसने पंख फैलाने भी शुरु कर दिए थे और नन्हीं नन्हीं उड़ान भरनी भी शुरु कर दी थी. लेकिन वो अपनी उड़ान मुक्कमल कर पाती, उससे पहले ही उस मासूम चिड़िया के पर क़तर दिए गए, बेहरमी से उसका सर क़लम कर दिया गया. ज़ालिक हाकिमों को उसकी मुस्कुराहट बर्दाश्त नहीं थी, उसका दुनिया के सामने सिर उठाकर चलना, कामयाबी के परचन लरहाना बरदार्शत नहीं था.
लिहाज़ा, उसके सर को धड़ से अलग कर दिया गया. ये किसी वेब सीरीज या किसी फिल्म के किस्से का बात नहीं कर रही हूं, ये यक़ीक़त के इसी दुनिया के एक कोने की जिसे अफ़गानिस्तान कहते हैं. जहां तालिबान का राज चलता है, वो तालिबान जो महिलाओं के लिए किसी शैतान से कम नहीं हैं. वो महिलाओं को क़ैद करते हैं, उन पर ज़ुल्म करते हैं, उन्हें क़त्ल करते हैं और फिर दुनिया के सामने दम भरते हैं कि हम पहले वाले तालिबान नहीं हैं.
तालिबान ने वॉलीबॉल की एक महिला खिलाड़ी महजबीन हकीमी की नृशंस हत्या कर दी है. महिला वॉलीबॉल टीम के कोच के एक साक्षात्कार में इसका खुलासा हुआ है. हत्या का यह मामला अक्तूबर के शुरुआती दिनों का है. हत्या के बाद तालिबानियों ने महजबीन के परिवार को भी धमकी दी कि दुनिया के सामने अपनी ज़ुबान ना खोले लिहाज़ा अब जाकर इस हत्या का खुलासा हुआ है.
इस घटना के बाद से एक बार फिर तालिबान का क्रूर चेहरा सामने आ गया है. तालिबान के शासन में आने के बाद से अफगानिस्तान की तमाम महिला खिलाड़ी दहशत के मारे देश छोड़कर दूसरे मुल्कों में शरण लिए हुए हैं. लेकिन महजबीन बदनसीब थी कि जिस मुल्क में उसे सबसे ज़्यादा मेहफूज़ होना चाहिए था, वहीं उसका सिर कलम कर दिया गया.
अफ़गानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद से सबसे ज़्यादा दहशत में वहां की महिलाएं हैं. महिलाओं के लिए तालिबान का शासन जीते जी दोज़ख़ भुगतने से कम नहीं है. तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बाद कहा था वो पहला वाला तालिबान नहीं रहा है. महिलाओं को उनके हक़ूक़ से मेहरूम नहीं किया जाएगा. वो नौकरी कर पाएंगी, घरों से बाहर निकल पाएंगी. लेकिन तालिबान का क्रूर चेहरा एक बार फिर सबके सामने आ गया है.
पूरी दुनिया अफगानिस्तान में महिलाओं के हालात को लेकर चितिंत है, क्योंकि वहां महिलाओं पर अत्याचार चरम पर है. सोशल मीडिया पर अफ़गानिस्तान में महिलाओं की बदहाल स्थिति के बारे में लगातार लिखा जा रहा है और चिंता जताई जा रही हैं. हालांकि हिंदुस्तान में कुछ तालिबान के हिमायती भी कुलाछें मार रहे हैं लेकिन वो भूल जाते हैं कि तालिबान तानाशाह है. वो शरिया के बहाने अपनी हुकूमत और ज़ुल्म दहशत फैला रहा है.
सोशल मीडिया पर शाज़िया रेहाना लिखती हैं कि मुस्लिम औरत होते हुए भी मैं इस्लामिक या हिन्दू राष्ट्र में रहने की बजाए लोकतांत्रिक देश में रहना पसंद करूंगी. चुनने का ऑप्शन न होना अलग बात है. रही बात इस्लाम औरत को सबसे ज़्यादा हुक़ूक़ देता है, वो 1400 साल से आज तक औरतों को नहीं मिले आगे कोई उम्मीद नहीं है. दूसरे देशों में औरतों को जो अधिकार या आज़ादी मिल रही है, वो भी पश्चिम देशों की बदौलत इस्लाम या सनातन की वजह से नहीं.
इनका बस चलता तो ये आज भी सती प्रथा और इंस्टेंट तलाक़ लागू रखते और झूठे जयकारे करते 'इस्लाम औरत को सबसे ज़्यादा हुक़ूक़ देता है' और 'सनातन धर्म में औरत को देवी की तरह पूजते हैं' ये लॉलीपॉप उन औरतों को दीजिये जो अपने दिमाग़ का इस्तेमाल नहीं करती. जो मर्दों की आंखों से देखती उनके कानों से सुनती और उनके दिमाग़ से सोचती हैं .
जब हम मुसलमान औरतों के हक़ूक की बात करते हैं तो किताबें उठाकर दिखाई जाने लगती हैं. तालिबान भी कह रहा है कि इस्लाम में औरतों को शहज़ादी बनाकर रखने के लिए कहा गया है. ताबिलान भी सिर्फ़ किताबों की बातें करता है असल ज़िंदगी में कितनी बेहतरीन ज़िंदगी बसर कर रही हैं, ये गाहे बगाहे सामने आता ही रहता है. मैं मुसलमान औरत होने के नाते लोकतांत्रिक देश में रहना पसंद करूंगी, जहां मुझे मेरी मर्ज़ी से जीने की आज़ादी मिली है.
मैं नहीं चाहती किसी ऐसे इस्लामिक राष्ट्र में रहना, जहां मेरे मुस्कुराने से मज़हब खतरे में आ जाए. जहां बच्चियों के खेलने कूदने पर पाबंदी हो, उन्हें दुनिया के क़दम से क़दम मिलाने से रोका जाए. जहां बच्चियों के स्कूलों में आग लगा दी जाए. स्कूल कॉलेज बम से उड़ा दिए जाएं. स्कूल जाने से रोकने के लिए तालिबान ने ही मलाला को जान से मारने की कोशिश की.
और अब महजबीन अपनी जान से हाथ धो बैठी. दरअसल ताबिलान शरिया कानून नहीं लागू कर रहा है, बल्कि महिलाओं औरतों की ज़िंदगी हराम कर रहा है. वो इसी दुनिया में उनके लिए नर्क़ बना रहा है. तालिबान डरपोंक है वो बच्चियों से डरता है, उसे ख़ौफ़ आता है ख्वाब देखने वाली लड़कियों से, वो नहीं देख सकता है, बच्चियों को कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए.
जो तानाशाह होते हैं वो बेहद डरे हुए होते हैं, उन्हें हर वक़्त ख़ौफ़ रहता है इंकलाब का. एक मलाला ने हज़ारों लाखों मलाला पैदा कर दीं. एक महजबीन की हत्या हज़ारों मेहजबीन को खड़ा कर देंगी. ये हौसले यूं ही पस्त नहीं हो सकते हैं. लेकिन पूरी दुनिया को तालिबान के इस क्रूर चेहरे की निंदा करनी चाहिए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
निदा रहमान, पत्रकार, लेखक
एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.