भरोसे की जीत, विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम ने तय कर दिए 2024 के नतीजे
विधानसभा चुनाव 2022
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे इन राज्यों के साथ राष्ट्रीय राजनीति को भी एक नई दिशा देते दिख रहे हैं। इन नतीजों के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव के परिणामों की झलक भी दिखने लगी है। इन नतीजों से निकले संकेतों को अन्य दलों के साथ कांग्रेस खास तौर पर सही तरह से ग्रहण करे तो यह उसके हित में होगा, क्योंकि सबसे बुरी पराजय का सामना उसे ही करना पड़ा है। वह पहले से और अधिक कमजोर एवं दिशाहीन दिखने लगी है। कांग्रेस पंजाब तो गंवा ही बैठी, जहां आम आदमी पार्टी ने प्रभावशाली जीत दर्ज की, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी नाकाम रही।
उत्तर प्रदेश में तो उसके लिए कोई उम्मीद ही नहीं थी। यहां जो उम्मीद थी, वह समाजवादी पार्टी को थी, लेकिन वह पिछली बार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने के बाद भी पीछे रह गई। इसके लिए वह अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकती। कांग्रेस, बसपा के साथ सपा को उत्तर प्रदेश में चौथी बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उसका एक और प्रयोग नाकाम रहा। इस बार उसके लिए मौका था, लेकिन वह जिस सत्ता विरोधी रुझान के भरोसे थी, वह इसलिए काम नहीं आया, क्योंकि योगी सरकार ने सुशासन के मामले में एक प्रतिमान स्थापित किया और वह भी कोरोना संकट के चलते अच्छा-खासा समय बर्बाद हो जाने के बाद भी। इसी सुशासन के कारण भाजपा को शानदार जीत हासिल हुई। इस जीत ने एक नए राजनीतिक इतिहास की रचना की, क्योंकि दशकों बाद कोई सरकार अपनी सत्ता बचाने में सफल रही।
विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों में यदि सबसे अधिक निगाहें उत्तर प्रदेश पर लगी थीं तो इसीलिए कि यह न केवल सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत है, बल्कि केंद्र की सत्ता का रास्ता भी यहीं से गुजरता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल कर यह साबित कर दिया कि विपक्ष के पास मोदी-योगी के उस करिश्मे का कोई जवाब नहीं, जो उन्होंने केंद्र और राज्य की कल्याणकारी एवं विकास योजनाओं को जमीन पर उतार कर किया। इस जीत का एक कारण समस्याओं और असंतुष्टि के बाद भी लोगों को यह भरोसा रहा कि जो समस्याएं शेष हैं, उनका समाधान भी योगी और मोदी ही करेंगे। इसी भरोसे के कारण लोगों ने कहीं-कहीं उन भाजपा विधायकों का भी साथ दिया, जिनके कामकाज से वे खुश नहीं थे।
तथ्य यह भी है कि जनकल्याण की तमाम योजनाओं के बेहतर अमल और कानून एवं व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार ने भाजपा के लिए एक ऐसा मजबूत वोट बैंक तैयार किया, जिसने जाति-समुदाय से हटकर भी वोट दिया। इससे अन्य दल सबक सीख सकें तो वे अपने साथ-साथ देश का भी भला करेंगे। गोवा और मणिपुर की तरह उत्तराखंड में भी भाजपा की वापसी एक बड़ी जीत के रूप में परिभाषित की जाएगी, क्योंकि यह पहली बार हुआ, जब यहां किसी सरकार ने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की। यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा को पिछले कुछ माह में अपने मुख्यमंत्री बदलने पड़े। यह सही है कि नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में उनकी एक बड़ी भूमिका रही।
यह माना जा सकता है कि कांग्रेस यहां उन्हीं कारणों से चुनाव हारी, जिनके चलते पंजाब में-असमंजस और आपसी गुटबाजी। कांग्रेस नेतृत्व को अब तो ईमानदारी से सोचना ही होगा कि उसकी लगातार दुर्दशा क्यों हो रही है? जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत ने देश का ध्यान अपनी ओर खींचा, वैसे ही पंजाब में आम आदमी पार्टी ने। पंजाब का परिणाम बता रहा है कि राज्य की जनता कांग्रेस एवं अकाली दल, दोनों से ऊब गई थी। इस पर आश्चर्य नहीं कि आम आदमी पार्टी खुद को राष्ट्रीय दल के रूप में पेश कर रही है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजे यह भी बता रहे हैं कि तथाकथित किसान आंदोलन आम किसानों का आंदोलन नहीं था।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय