दुनिया में कोरोना वैक्सीन को लेकर देशों के बीच उभरे विवाद बेहद दुखद और आपत्तिजनक हैं। हम भारत और इंग्लैंड के बीच वैक्सीन को लेकर जो विवाद देख रहे हैं, उससे निस्संदेह बचा जा सकता था, मगर इंग्लैंड की हठधर्मिता ने भारत को 'जैसे को तैसा' शैली में जवाब देने को मजबूर कर दिया। अब भारत से इंग्लैंड जाने वालों को जहां दस दिन के क्वारंटीन से गुजरना होगा, वहीं इंग्लैंड से भारत आने वालों को भी ऐसी ही परेशानी होगी। इंग्लैंड का यह फैसला समझ से परे दिखता है, वह भारतीय वैक्सीन कोविशील्ड को मान्यता तो देता है, लेकिन कोविशील्ड वैक्सीन प्राप्त लोगों को टीकायुक्त नहीं मानता। आश्चर्य की बात है कि इंग्लैंड में लोगों को जो वैक्सीन दी जा रही है, उसी फॉर्मूले की वैक्सीन कोविशील्ड भारत में भी लग रही है। कायदे से इंग्लैंड को भारतीय वैक्सीन और टीका प्राप्त भारतीयों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक जिन सात वैक्सीन को मंजूरी दी है, उनमें इंग्लैंड में निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के अलावा भारत में निर्मित इसी फॉर्मूले की कोविशील्ड भी शामिल है। तो फिर भेद क्यों है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूर वैक्सीन में इंग्लैंड निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका सबसे आगे है, क्योंकि इसे दुनिया के सर्वाधिक 122 देशों ने मान्यता दी है। भारत निर्मित कोविशील्ड को 46 देशों में मंजूरी है। एक बड़ा फर्क यह भी है कि इंग्लैंड निर्मित वैक्सीन का दुनिया के 21 देशों में 40 बार से ज्यादा ट्रायल हुआ है, जबकि भारत में बनी कोविशील्ड को केवल एक देश में दो बार ट्रायल से गुजारा गया है। यह इंग्लैंड का अहंकार ही है कि वह भारतीय वैक्सीन या भारतीय वैक्सीन प्राप्त लोगों को तवज्जो नहीं देता। यहां लगे हाथ यह भी जान लेना चाहिए कि दुनिया में दूसरे नंबर पर मान्यता प्राप्त वैक्सीन फाइजर है, जिसके लिए 100 से ज्यादा देशों ने अपने दरवाजे खोले हैं। मोदेरना के लिए 76 देश और जॉनसन के लिए 70 देश आगे आए हैं। चीन निर्मित वैक्सीन सीनोफार्म को 65 देशों की मंजूरी हासिल है और सीनोवेक को 40 देशों की। टॉप सात वैक्सीन की बात करें, तो सबसे कम ट्रायल कोविशील्ड का ही हुआ है। हमने शायद यह मान लिया था कि जब इसी फॉर्मूले की ब्रिटिश वैक्सीन का अधिकतम ट्रायल हो ही रहा है, तो हमें अलग से ट्रायल की क्या जरूरत? चूंकि हमने ट्रायल पर जोर नहीं दिया, इसलिए हमारी अपनी कोवैक्सीन को वाजिब मान्यता नहीं मिली। दुनिया के देश ट्रायल देखते हैं, जबकि हमारा ध्यान फॉर्मूला प्राप्त करने पर रहता है। नहीं भूलना चाहिए कि जहां मान्यता प्राप्त वैक्सीन वाले देशों को ज्यादा आर्थिक लाभ होगा, वहीं कोवैक्सीन का निर्माण ज्यादा मांग के अभाव में प्रभावित होगा। कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मांग तभी बढ़ेगी, जब हम ट्रायल या सफलता के आंकड़े सामने रखेंगे। देखना होगा कि भारत वैक्सीन निर्माण में पीछे नहीं रह जाए। भारत ही नहीं, दुनिया को अभी लंबा रास्ता तय करना है। अभी तक दुनिया में केवल 35 प्रतिशत लोगों का ही टीकाकरण पूरा हुआ है। तमाम देशों से यह उम्मीद करनी चाहिए कि सब मिल-जुलकर वैक्सीन की राह पर चलेंगे, ज्यादा से ज्यादा वैक्सिंग को मंजूरी मिलेगी और ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण होगा, तभी हम कोरोना से जंग जीत पाएंगे।
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