विनियंत्रण का ये सच
भारत के लोग फिलहाल खुशकिस्मत हैं कि उन पर रोजमर्रा के स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी की मार नहीं झेलनी पड़ रही है
पूरा प्रकरण पेट्रोलियम की कीमतों के विनियंत्रित यानी सीधे अंतरराष्ट्रीय से जुड़े होने की दलील की पोल खोल देता है। जब सत्ता पक्ष के सियासी हित दांव पर लगे हों, तो इस तर्क को कहीं छिपा दिया जाता है। आम दिनों में मार लोगों पर पड़ती है। ऐसा सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कीमत के अनुपात में नहीं होता।
भारत के लोग फिलहाल खुशकिस्मत हैं कि उन पर रोजमर्रा के स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी की मार नहीं झेलनी पड़ रही है। जाहिर है, इसके लिए लोग पांच राज्यों में हो रहे चुनाव का शुक्रगुजार होंगे। इसलिए कि इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत तेजी से चढ़ी है। साफ है कि इस झटके को सरकार और तेल कंपनियां झेल रही हैँ। उनके मन में यह बात होगी कि एक बार चुनाव में मनमाफिक जीत मिल जाए, तो फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल की कीमत के जुड़े होने का तर्क लोगों के बीच चला देने से उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। लेकिन ये पूरा प्रकरण पेट्रोलियम की कीमतों के विनियंत्रित यानी सीधे अंतरराष्ट्रीय से जुड़े होने की दलील की पोल खोल देता है। साफ है कि जब सत्ता पक्ष के सियासी हित दांव पर लगे हों, तो ये तर्क कहीं छिप जाता है। आम दिनों में मार लोगों पर पड़ती है। ऐसा सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कीमत के अनुपात में नहीं होता। बल्कि सरकार की अपना खजाना भरने की चिंता का बोझ भी आम लोगों पर ही पड़ता है।
फिलहाल, सच्चाई यह है कि हाल के हफ्तों में अंतरराष्टरीय बाजार में कच्चे तेल का भाव तेजी से चढ़ा है। बीते बुधवार को यह 2014 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था। जानकारों का कहना है कि कम से कम फरवरी तक ये ट्रेंड जारी रहेगा। कोरोना वायरस के ओमिक्रोन वैरिएंट के कारण महामारी की आई ताजा लहर के बावजूद कच्चे तेल का दाम चढ़ा है तो इसकी वजह यह है कि महामारी के इस दौर में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग पर कोई असर नहीं पड़ा है। उधर हाल में बढ़ी मांग के मुताबिक तेल उत्पादक देशों ने सप्लाई नहीं बढ़ाई है। नतीजतन, पिछले दस दिन से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव लगभग 85 डॉलर प्रति बैरल बना हुआ है। इस समय कई मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय तनाव बढ़ने के संकेत हैँ। उसका असर भी है। तो यह अनुमान लगाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस वर्ष कच्चे तेल का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल के पार भी जा सकता है। दुनिया भर के उपभोक्ताओं पर इसकी कड़ी मार पड़ रही है। लेकिन भारतीय उपभोक्ता फिलहाल उससे बचे हुए हैँ। बहरहाल, इस क्रम में एक बार फिर मुक्त अर्थव्यवस्था और विनियंत्रित कीमत के दावों की पोल खुल गई है।
नया इण्डिया