दुनिया पर बढ़ता कट्टरता का खतरा, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दिख सकते हैं दुष्परिणाम

हर गुजरते दिन के साथ यह स्पष्ट होता जा रहा है

Update: 2021-08-23 02:36 GMT

शशांक  पांडेय|  हर गुजरते दिन के साथ यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के दुष्परिणाम इस देश के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों में भी देखने को मिल सकते हैं। इसका कारण यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से दुनिया भर के इस्लामिक आतंकी संगठनों का दुस्साहस बढ़ा है और वे अपने दुस्साहस का प्रदर्शन भी कर रहे हैं। भारत और खासकर कश्मीर में ऐसे संगठन उत्साहित हो रहे हों तो हैरानी नहीं। वैसे भी यह शुभ संकेत नहीं कि भारत में मुख्यधारा के कई लोग तालिबान की तारीफ करने में लगे हुए हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ऐसे लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चरमपंथी संगठनों को उकसाने में भी जुट गए हैं। पिछले दिनों ही महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर की तुलना अफगानिस्तान से कर दी। उनके अलावा कई अन्य ऐसे लोग भी सामने आ गए हैं जिन्हें तालिबान में कोई खामी नहीं दिखती। भारत सरकार को विषवमन कर रहे इन तत्वों से सावधान रहने के साथ ही यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान की सरकार और उसकी सेना अफगानिस्तान में उपजे हालात का फायदा उठाकर कश्मीर में आतंकवाद को नए सिरे से भड़काने की कोशिश न करने पाए।

भारत सरकार इस तथ्य को ओझल नहीं कर सकती कि कश्मीर में आतंक मचाते रहे जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठन तालिबान के सहयोगी हैं। इसी तरह सच्चाई यह भी है कि कश्मीर में सबसे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराने वाले सक्रिय रहे हैं। बीते कुछ समय से ऐसे संगठन अवश्य ही दुबके दिख रहे हैं, लेकिन वे बीच-बीच में सिर उठाने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसे संगठनों को तालिबान ने एक नई ताकत दी है और वे पूरे विश्व में शरिया आधारित शासन व्यवस्था जबरन लागू करना चाहते हैं। यदि विश्व समुदाय यह नहीं चाहता कि चरमपंथी इस्लामिक संगठनों का दुस्साहस बढ़े तो उसे उनके खिलाफ सख्ती के साथ पेश आने के साथ-साथ तालिबान के प्रति भी कठोर रवैया अपनाना होगा। इस रवैये का परिचय भारत सरकार को भी देना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि कश्मीर में आतंकवाद के नए सिरे से सिर उठाने की आशंका बढ़ गई है। इस आशंका के चलते भारत को कहीं अधिक सतर्कता बरतनी होगी-न केवल सुरक्षा के मोर्चे पर, बल्कि सामाजिक मोर्चे पर भी। केंद्र सरकार के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर प्रशासन को राज्य के उन लोगों के बीच अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी जिनकी नाराजगी का लाभ आतंकी संगठन उठा सकते हैं। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह जो कहा कि इस राज्य के बारे में भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है उसकी पूर्ति किए जाने का समय आ गया है।

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