किस्सा स्मार्ट फोन के बीज टेलीफोन का जन्म का
आज पूरी दुनिया की मुट्ठी में जो स्मार्ट फोन हैं. और जिस स्मार्ट फोन ने पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर रखा है
आज पूरी दुनिया की मुट्ठी में जो स्मार्ट फोन हैं. और जिस स्मार्ट फोन ने पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर रखा है, उसके पितृपुरूष के रूप में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल को मानना गलत नहीं होगा. इस भागमभाग और शोरगुल से भरे हुए माहौल में मुझे लगता है कि उस कहानी को जानना रोचक होगा कि किस प्रकार टेलीफोन की यह इबारत लिखी गई.
यह ग्राहम बेल के लिए संयोग की बात थी कि सन् 1847 में जिस परिवार में इनका जन्म हुआ था, वह शिक्षकों और स्वर विज्ञान के विशेषज्ञों का ही परिवार था. ग्राहम ने भी अपने कैरियर के रूप में यही फैसला किया कि वह अपने इस पारिवारिक ज्ञान का उपयोग गूंगे और बेहरों को बोलने और सिखाने के लिए करेगा, जिसे उस समय 'वोकल फिजियोलॉजी' के नाम से जाना जाता था.
25 वर्ष की उम्र में बहरों के अध्यापक के रूप में अमेरिका के बोस्टन में जमते ही बेल ने अपने खाली समय में शौकिया तौर पर 'संगीतिक टेलीग्राफ' के प्रयोग करने शुरू कर दिये. पैसे खत्म हो गए और आगे का काम चलना मुश्किल हो गया. इसी समय यह युवा प्रोफेसर काली आंखों वाली अपनी एक ऐसी शिष्या मैबल हबर्ड के प्रेमपाश में फंस गया, जो जन्म से ही बहरी थी. बोस्टन के जितने भी डॉक्टर थे, सब जवाब दे चुके थे. लेकिन ग्राहम बेल डॉक्टरों का फैसला मानने के लिए तैयार नहीं हुए और उसने मैबेल से कहा कि 'मैं तुम्हें सुनना ही नहीं, बोलना भी सिखाऊंगा.' चूंकि मेबेल के पिता एक धनी व्यापारी थे, इसलिए मेबेल से शादी करने के कारण ग्राहम बेल के धन की चिंता खत्म हो गई थी, क्योंकि उसके पिता अपनी बेटी को ठीक करने के लिए ये कुछ भी करने को तैयार थे. इसलिए वे बेल को प्रयोगों के लिए धन देते रहे.
बोस्टन, जहां आज एमआईटी नामक दुनिया का सर्वोत्तम टेक्नालॉजी संस्थान है, की एक शोरशराबे से भरी गली में बिजली की दुकान के ऊपर छोटे-से कमरे में बेल ने प्रयोगशाला की शुरुआत की, जो हमेशा धूल और कालिख से भरी रहती थी.
एक-दो साल तक बेल लगातार अपने समकालीन वैज्ञानिकों द्वारा सुझाये गए हजारों तरह के प्रयोगों के साथ प्रयोग करता रहा. इन प्रयोगों के बाद अब केवल यही करना बाकी रह गया था कि जब भी किसी ध्वनि को विद्युत धारा में प्रवाहित किया जाए, तो कैसे उसे बिजली के तार से दूसरे स्थान पर पहुंचाकर फिर से उसे ध्वनि में बदला जाए. और अंतत: सन् 1875 को वह दिन आ ही गया, जिसे पाने की जद्दोजहद में अब तक ग्रामह बेल अपने सहयोगी मित्र वाटसन के साथ जुटा हुआ था.
बेल ने दो कमरों में तीन ट्रांसमीटर और तीन रिसीवर लगा दिए. यह इंतजाम किया गया कि ये दोनों दोस्त अपने-अपने कमरों में उस समय उन उपकरणों की प्रतिक्रियाओं को देखेंगे, जब टेलग्राफ के बटन दबाए जाएंगे. अभी प्रयोग चल ही रहा था कि एक अनोखी घटना घटित हो गई. जैसे ही बेल ने अपना बटन दबाया, दूसरे कमरे से वाटसन के चिल्लाने की आवाज आई – 'थोड़ा रुको मिस्टर बेल. वह कम्बख्त डिस्क चिपक गई है.' बेल अपने कमरे से चिल्लाया, 'तो उसे हटा दो न!'
वाटसन ने वैसा ही किया और अचानक बेल की निगाहें आश्चर्य से फैल गईं. बिना बटन दबाए ही ऐसा लगा मानो कि रिसीवर कम्पन कर रहा हो. यह देखकर बेल अपने ही कमरे से चिल्लाया, 'वाटसन! उस डिस्क को फिर से हटाओ. वाटसन ने जब डिस्क को फिर से हटाया, तो थोड़ी देर के लिए डिस्क फिर से कम्पन करने लगा.
बेल ने अपना कान रिसीवर से लगा दिया. अब उसे कोई संदेह नहीं रह गया था कि वह एक म्यूजिकल टोन सुन रहा है. बेल के सिवाय यदि और किसी ने यह बहुत हल्की आवाज सुनी होती, तो उसे यह बिल्कुल बेकार मालूम पड़ती. लेकिन यह बेल ही थे, जो तुरन्त ही समझ गए कि उसे अब वह मिल गया है, जिसके पीछे वह पिछले तीन साल से पड़ा हुआ था. उसने खोज लिया था कि बिजली के तार ध्वनि के कम्पनों का सम्प्रेषण कर सकते हैं. और इस प्रकार दुनिया को एक ऐसा यंत्र दिया जा सकता है, जिसके जरिए सैकड़ों मील दूर बैठे दो लोग आपास में बातें कर सकते हैं.
लेकिन डेढ़ सौ साल पहले का वक्त इस पर विश्वास नहीं कर पा रहा था. फिर स्वीकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. अपने ससुर के कहने पर ग्राहम बेल ने फिलाडेल्फिया में हुई अंतरराष्ट्रीय शतवर्षीय प्रदर्शनी में इसे प्रदर्शित किया. लेकिन किसी ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्रदर्शनी में बेशुमार भीड़ रही. भीड़ ग्राहम बेल की छोटी-सी मेज के ऊपर रखे सजे हुए इन तीन टेलीफोनों के पास से गुजरती. लेकिन इसकी ओर कोई भी ध्यान नहीं देता.
ग्राहम बेल पूरी तरह निराश हो चुका था. प्रदर्शनी खत्म होने में दो दिन ही बाकी थे कि एक ऐतिहासिक घटना घट गई. ब्राजील के राजा पिड्रो द्वितीय का दल वहां पहुंचा. उनके आते ही ग्राहम बेल ने बादशाह के हाथ में रिसीवर पकड़ाते हुए दूसरी ओर से कहा – 'महामहिम, क्या आप मुझे सुन सकते हैं? मैं प्रोफेसर बेल बोल रहा हूं.'
बादशाह मेज के पास रखी अपनी कुर्सी से उछल पड़ा और हाथ में थामे अपने रिसीवर को आश्चर्य से घूरता हुआ बोला, 'हे भगवान! यह तो बोलता है.' और इस घटना के साथ ही ग्राहम बेल का वह टेलीफोन उस प्रदर्शनी की सबसे सनसनीखेज चीज़ बन गई. अगले दिन की सुबह के अखबार में इसी यंत्र की चर्चा छाई हुई थी.
डॉ॰ विजय अग्रवाल
पूर्व सिविल सेवा अधिकारी एवं प्रख्यात लेखक
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)