विधानसभा का संकल्प चुनाव आयोग से टकराव की वजह तो नहीं बनने जा रहा

संकल्प चुनाव आयोग

Update: 2021-12-23 17:14 GMT
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मध्यप्रदेश के राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए त्रिस्तरीय पंचायत में आरक्षित सीटों पर चुनाव की प्रक्रिया रोक रखी है. सरकार को आरक्षित सीटों को सामान्य सीटों में बदलना है. लेकिन,सरकार ने इस बारे में कोई अधिसूचना अब तक जारी नहीं की है. इससे उलट गुरुवार को राज्य विधानसभा में सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित कर कहा गया है कि प्रदेश में बगैर अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव न कराए जाएं.
चुनाव सरकार ने नहीं निर्वाचन आयोग करवाता है
विधानसभा में संकल्प खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से पेश किया गया. इस संकल्प के औचित्य और वैधानिक स्थिति पर कोई चर्चा नहीं हुई. अध्यक्ष गिरीश गौतम ने संकल्प को स्वीकार किया और उसे सदन में प्रस्तुत करने की अनुमति दी. मध्यप्रदेश में यह पहला मौका है,जब निकाय चुनाव की प्रक्रिया को रोकने के लिए विधानसभा में सर्वसम्मति से कोई संकल्प पारित किया गया हो. राज्य में नगरीय एवं ग्रामीण निकायों के चुनाव कराने की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग की है.
पदों के आरक्षण और उसके रोटेशन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. पंचायत राज्य कानून के मुताबिक हर चुनाव से पहले आरक्षित सीटों का रोटेशन करना होता है. लोकसभा और विधानसभा की तरह राज्य के नगरीय एवं ग्रामीण निकायों में स्थायी आरक्षित सीटें नहीं है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं कि राज्य में पंचायत चुनाव मजाक बनकर रह गए हैं,ऐसा चुनाव देश के इतिहास कभी नहीं हुआ जिसका परिणाम ही घोषित न हो.
चुनाव परिणाम के लिए भी हैं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
पंचायत चुनाव के परिणामों की घोषणा रोकने का औपचारिक आदेश बुधवार को राज्य निर्वाचन आयोग ने जारी किया. यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर आधारित है. सुप्रीम कोर्ट ने ही ओबीसी सीटों को सामान्य सीटों में बदले जाने के आदेश के साथ कहा था कि परिणामों की घोषणा एक साथ की जाएगी. ऐसा संभवत: इसलिए कहा गया होगा क्योंकि आरक्षित पंचायतों को सामान्य करने की प्रक्रिया से चुनाव कार्यक्रम में भी बदलाव होगा. दरअसल पूरा मामला कानूनी पेचिदगियों में फंसता जा रहा है. विधानसभा में पारित किए गए संकल्प के बाद भी चुनाव प्रक्रिया नहीं रूकी है. पहले दौर के मतदान के लिए नाम वापसी की तारीख 23 दिसंबर की है. जिसके अनुसार नाम वापसी का समय निकल गया है. चुनाव चिंह भी आवंटित कर दिए गए हैं. चुनाव ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर अन्य सभी सीटों पर हो रहे हैं. इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के अलावा सामान्य वर्ग की सीटें भी हैं. ओबीसी को लेकर विवाद की स्थिति आरक्षण पचास प्रतिशत की अधिकतम सीमा पार कर जाने के कारण बनी है.
चुनाव प्रक्रिया बीच में रोकने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं
आरक्षण पर कांगे्रस और भाजपा की राजनीति अलग-अलग है. भाजपा ओबीसी आरक्षण समाप्त किए जाने का दोष कांगे्रस को दे रही है. कांगे्रस,भाजपा सरकार पर यह दोषारोपण कर रही है कि सुप्रीम कोर्ट में वकीलों ने इसका विरोध नहीं किया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि कांगे्रस हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट में चुनाव का विरोध नहीं करती तो यह स्थिति ही नहीं बनती. पहले दौर के चुनाव के लिए मतदान 6 जनवरी को होना है. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जो पुनर्विचार याचिका दायर की गई है,उसमें मतदान से पहले कोई नया आदेश नहीं आया तो निर्वाचन आयोग चुनाव प्रक्रिया को बीच में नहीं रोकेगा. वैसे भी ऐसे कोई पूर्व उदाहरण सामने नहीं है,जिनके आधार चुनाव प्रक्रिया को बीच में रोका जा सके?
राज्य के गृह मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि सरकार ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत चुनाव नहीं कराएगी. चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसे कैसे रोका जा सकता है,इस सवाल का जवाब न तो सरकार के पास है और न ही विपक्षी दल कांगे्रस के पास. कानून में चुनाव कराने की जिम्मेदारी सरकार ने निर्वाचन आयोग को दी है. यह एक सदस्यीय आयोग है. यह वर्ष 1994 में गठित किया गया था. बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार यदि चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती तो फिर विधानसभा में संकल्प क्यों लाया गया और सर्वसम्मति से पारित भी हुआ. नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ कहते हैं कि सदन में उन्हें अपनी बात कहने का अवसर नहीं दिया गया. दरअसल,सदन में ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव न कराए जाने के लिए सदन में प्रस्ताव लाने का सुझाव भी प्रतिपक्ष के नेता कमलनाथ का ही था. कांगे्रस और भाजपा के बीच लगातार तू डाल-डाल,मैं पात-पात का खेल चल रहा है. कांगे्रस चाहती है कि चुनाव न होने का ठीकरा भाजपा के सिर फूटे.
भाजपा कांगे्रस के सिर फोड़ने में लगी हुई है. दो दिन की ऊहापोह और विपक्ष के सवालों के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में आरक्षण के बिना चुनाव न कराने का संकल्प रखकर बाजी अपने पक्ष में करने की कोशिश की. यह संकल्प कार्य सूची में शामिल नहीं था. मध्यप्रदेश विधानसभा प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि -उसमें ऐसे विषय का उल्लेख न होगा जिस पर न्यायिक विनिश्चय लंबित हो . पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. सरकार खुद भी पुनर्विचार याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने गई. जाहिर है कि सरकार की मंशा कुछ और है.
विधानसभा की प्रक्रिया के अनुसार सदन में पारित हुए संकल्प अधिसूचना के रूप में सरकार के पास जाएगा. सरकार चुनाव आयोग को सदन की मंशा से अवगत कराएगी. यदि संकल्प के अनुसार आयोग कदम नहीं उठाता है तो सदन को किसी दंडात्मक कार्यवाही का अधिकार नहीं है.
  
दिनेश गुप्ता
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