आंदोलन के छह माह पूरे होने पर साख के साथ धार खो चुके संयुक्त किसान मोर्चा का विरोध प्रदर्शन फीका रहा

संयुक्त किसान मोर्चा का विरोध प्रदर्शन फीका रहा

Update: 2021-05-27 15:36 GMT

भूपेंद्र सिंह। इस पर आश्चर्य नहीं कि अपनी साख के साथ धार भी खो चुके संयुक्त किसान मोर्चा का विरोध प्रदर्शन फीका रहा। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान लहराए गए काले झंडे वस्तुत: किसान संगठनों को ही मुंह चिढ़ाते दिखे। अपने आंदोलन के छह माह पूरे होने पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन एक ऐसे समय किया गया, जब कृषि मंत्रालय का यह आकलन सामने आया है कि कोरोना संकट के बाद भी खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार होने जा रही है। नि:संदेह इसके पीछे अच्छे मानसून और किसानों की लगन की भूमिका है, लेकिन इसी के साथ खेती को सक्षम बनाने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न उपायों का भी योगदान है। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य सब्सिडी से लेकर किसान सम्मान निधि जैसे कई कदम भी शामिल हैं। यह एक तथ्य है कि पिछले सात वर्षों में कृषि की दशा सुधारने के लिए जैसे और जितने प्रयास मोदी सरकार ने किए हैं, उतने इतने कम समय में पहले कभी नहीं हुए। इस सरकार ने हाल में कृषि उपज की खरीद का पैसा सीधे किसानों के खाते में भेजने का जो काम शुरू किया, उससे बिचौलियों को भले मायूस होना पड़ रहा हो, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि किसान लाभान्वित हो रहे हैं। इसके बावजूद आंदोलन की राह पर निकले किसान संगठन इस झूठ को सच साबित करने में जोर लगाए हुए हैं कि यह सरकार तो किसानों की दुश्मन है।

आंदोलनरत किसान संगठनों और उन्हें हवा दे रहे राजनीतिक दलों को यह समझ आ जाए तो बेहतर कि झूठ के पैर नहीं होते और निराधार आरोपों के सहारे किसी को बहुत समय तक बरगलाया नहीं जा सकता। यदि किसान संगठनों को किसानों की भीड़ जुटाने में मुश्किल पेश आ रही है तो इसका कारण केवल कोरोना नहीं, बल्कि यह भी है कि आम किसानों को उनकी सच्चाई समझ आ गई है। वे यह जान गए हैं कि उन्हेंं बरगलाकर किसान नेता और कुछ विपक्षी राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर कोई भी सरकार ऐसे काम क्यों करेगी, जिससे किसानों का नुकसान हो और उसके चलते वह एक बड़े वोट बैंक से हाथ धो बैठे? वास्तव में कोई भी सरकार हो, वह किसानों के हितों की अनदेखी नहीं कर सकती। इसी के साथ वह यह भी नहीं कर सकती कि विपक्षी दलों की गोद में बैठे किसान संगठनों के कहने पर संसद द्वारा पारित कानूनों को वापस ले ले। दुर्भाग्य से इस कोरोना काल में सड़क पर बैठे किसान संगठन यही जिद पकड़े हुए हैं और वह भी तब जब सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है कि नए कृषि कानून किसानों के लिए अहितकारी हैं।
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