दांपत्य की भाषा भी बहुत स्पष्ट और मधुर होना चाहिए
भाषा कोई भी हो, हर शब्द स्पष्ट होना चाहिए। हमारे देश में अंग्रेजी
पं. विजयशंकर मेहता। भाषा कोई भी हो, हर शब्द स्पष्ट होना चाहिए। हमारे देश में अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत इन तीनों भाषाओं पर अलग-अलग कारणों से, अलग-अलग ढंग से टिप्पणियां की जाती रही हैं। अंग्रेजी में गणित की तरह सबकुछ तय है, लेकिन सूखा-सूखा सा है। हिंदी के पास एक रस है, उसकी व्याकरण व्यवस्थित है। संस्कृत इन दोनों से ऊपर है।
इसके एक-एक शब्द में तरंग है। इसलिए हर भाषा का आदर किया जाना चाहिए। हमारे यहां विवाह संस्कार में ऋषि-मुनियों ने संस्कृत के मंत्र गढ़े हैं। सचमुच एक-एक मंत्र संदेश है। विवाह की व्यवस्था ऋषि श्वेतकेतु ने दी थी। उससे पहले नारियां उन्मुक्त थीं और पुरुष भी किसी भी स्त्री के साथ रह सकता था। श्वेतकेतु एक बार अपने माता-पिता के पास बैठे थे। तभी एक व्यक्ति आया, मां का हाथ पकड़ा और बोला- चलो..।
श्वेतकेतु ने इस पर आपत्ति ली। पिता ने समझाया कि व्यवस्था यही है। कोई पुरुष किसी भी स्त्री को ले जा सकता है, कोई स्त्री किसी भी पुरुष के साथ जा सकती है। तब श्वेतकेतु ने कहा यह तो पाप है, अनाचार है। उसके बाद उन्होंने विवाह की व्यवस्था बनाई जो आज तक चल रही है और समाज एक नियम में बंधकर सुरक्षित है। मतलब विवाह के जो मंत्र तैयार किए गए वे ऋषि-मुनियों द्वारा तैयार किए गए थे। ऐसे ही दांपत्य की भाषा भी बहुत स्पष्ट और मधुर होना चाहिए।