RBI के रेपो रेट बढ़ाने से कर्ज चुकाने वाले परिवारों का बोझ बढ़ेगा

दो प्रमुख घटनाओं के मद्देनजर इन दरों में वृद्धि की गई एक घरेलू बाजार की घटना और दूसरी अमेरिका की

Update: 2022-05-06 14:15 GMT

सरबजीत के. सेन 

4 मई, 2022 को अचानक ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने रेपो दर (Repo Rate) में 40 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की घोषणा की जिससे रेपो रेट 4 प्रतिशत से बढ़कर 4.40 प्रतिशत हो गई. इसके साथ ही कैश रिजर्व रेशियों को भी 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत कर दिया गया. रेपो रेट में बढ़ोतरी की वजह से ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी जबकि सीआरआर में बढ़ोतरी के एलान से फाइनेंशियल सिस्टम में करीबन 87000 करोड़ लिक्विडिटी के कम होने के आसार हैं. इन कदमों से मुद्रास्फीति के बढ़ते ट्रेंड को रोकने में मदद मिलेगी.
दो प्रमुख घटनाओं के मद्देनजर इन दरों में वृद्धि की गई एक घरेलू बाजार की घटना और दूसरी अमेरिका की. घरेलू बाजार में बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की आईपीओ सब्सक्रिप्शन के लिए खुल गई थी. वहीं अमेरिका में यूएस फेडरल रिजर्व की बैठक होने वाली थी जिसने बाद में पॉलिसी दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की घोषणा की. यह बढ़ोतरी पिछले 22 वर्षों में सबसे अधिक थी.
कुछ समय के लिए मुद्रास्फीति अपने उच्च स्तर पर रहेगी
आरबीआई ने एक तरह से मान लिया था कि मुद्रास्फीति खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और इसलिए दरों में वृद्धि करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प बचा नहीं था. यानि कि मौजूदा हालात को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि इस तरह के कदमों की सख्त जरूरत थी. ऐसा अनुमान है कि वैश्विक घटनाओं की वजह से आने वाले कुछ समय के लिए मुद्रास्फीति अपने उच्च स्तर पर रहेगी. ऐसा लगता है कि रूस-यूक्रेन संकट का कोई तत्काल समाधान निकल नहीं पाएगा और इसी संकट की वजह से दुनिया भर में मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि हो रही है. जैसा कि गवर्नर ने अपने बयान में बताया कि जियोपॉलिटिकल तनाव के कारण कच्चे तेल की उच्च कीमतें, वैश्विक खाद्य कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि और उर्वरक जैसे कृषि इनपुट लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. और ये बढ़ोतरी निस्संदेह ही "भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर अशुभ प्रभाव डालेंगे.
अगर हम बाजार सहभागियों की बात करें तो जून 2022 के पहले सप्ताह में एक बार फिर दरों में बढ़ोतरी की संभावना है. जून महीने में ही आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी आधिकारिक तौर पर अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों की समीक्षा करने के लिए बैठक करती है. जैसे ही दरों को बढ़ाया जाएगा तो हमें फाइनेंशियल मार्केट पर बड़े प्रभाव देखने को मिलेंगे और साथ ही हमें बड़े उतार-चढ़ाव के लिए भी तैयार रहना होगा. खास तौर पर उन उपभोक्ताओं को जिन्होंने कर्ज ले रखा है उन्हें अपने परिवार के बजट की फिर से हिसाब-किताब करनी होगी. अस्थिरता शेयर बाजार का दूसरा स्वभाव है और बदलती कीमतों से संकेत मिलता है कि बाजार नई जानकारी के साथ कितनी कुशलता से मूल्य निर्धारण करता है.
निवेश करने वाले कई लोगों ने दरों के हाइ साइकिल को ध्यान में रखते हुए अपने पोर्टफोलियो में बदलाव किया है. बहरहाल, बढ़ती मुद्रास्फीति और दरों में बढ़ोतरी निस्संदेह ही परिवार के बजट पर दोहरी मार की तरह आ सकती है. हाउस लोन जैसे कर्जे जो बाहरी बेंचमार्क से जुड़े होते हैं उनके भुगतान के लिए किसी भी परिवार को ज्यादा संघर्ष करना पड़ सकता है. यह ध्यान देने की बात है कि अक्टूबर 2019 में आरबीआई ने बैंकों को बाहरी बेंचमार्क लिंक्ड होम लोन लॉन्च करने के लिए कहा था. उधार लेने वालों को पारदर्शिता से लाभ हुआ और ईएमआई में कमी आई क्योंकि आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में लगातार कटौती की गई और उधार देने वाले बैंकों ने रेपो दर से जुड़ी ब्याज दरों को कम कर दिया. लेकिन जैसे-जैसे चक्र बदलेगा, ईएमआई की राशि भी बढ़ती जाएगी
स्टॉक में निवेश करने वाले अचानक निवेश करने से बचें
इस बार जब भी आरबीआई अपनी बेंचमार्क दरों में बढ़ोतरी करेगा तो उधार लेने वालों को अपने कर्जे पर समय-समय पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. इसलिए यदि आपने होम लोन जैसे बड़े ऋण का लाभ उठाया है तो समय आ गया है जब आप आंशिक पूर्व भुगतान पर विचार करें. यदि आप जल्द ही पूर्व भुगतान करने में असमर्थ हैं तो अतिरिक्त आय के जरियों की तलाश करें क्योंकि ईएमआई राशि बढ़ने वाली है. सरल शब्दों में कहें तो होम लोन लेने वालों के लिए समय कठिन है.
फिक्स्ड डिपॉजिट होल्डर्स को अपनी फिक्स्ड डिपाजिट पर कार्ड दरों में वृद्धि देखने के लिए कुछ और समय लग सकता है. लेकिन बॉन्ड यील्ड ऊपर की ओर भाग रही है. 10 साल के मैच्योरिटी वाली सरकारी बॉन्ड यील्ड ने 7.4 फीसदी का आंकड़ा छू लिया. इसका मतलब है लंबी अवधि के बॉन्ड लेना नुकसानदेह साबित होगा. यह छोटी अवधि के बॉन्ड फंड लेने और एक-दो साल की फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करने का समय है. इक्विटी में निवेश करने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा और उनके पोर्टफोलियो में काफी उथल-पुथल देखने को मिल सकता है. हालांकि, स्टॉक में निवेश करने वालों को अचानक ही किसी तरह का फैसला लेने के बजाय अच्छी गुणवत्ता वाले शेयरों में लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहिए.
बाजार आमतौर पर अस्थिरता से बाहर निकलते हैं और मुद्रास्फीति को मात देते हुए रिटर्न देते हैं जो कि अन्य एसेट ऐसा नहीं कर पाते. बहरहाल, जो पहली बार निवेश कर रहे हैं उन निवेशकों को अस्थिर शेयर बाजार परेशान कर सकते हैं. लेकिन लंबी अवधि के निवेशकों के लिए धीरे-धीरे स्टॉक जमा करने का ये सबसे अच्छा समय हो सकता है. और जो सही स्टॉक नहीं चुन पाते हैं उन्हें सिस्टेमिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए.

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