मैरिटल रेप का इतिहास 500 साल पुराना है, लेकिन उसे अपराध मानने का इतिहास चार दशक पुराना भी नहीं
मैरिटल रेप हमारे देश के कानून की नजर में जुर्म नहीं है. मैरिटल रेप को कानूनी छूट
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| मनीषा पांडेय | मैरिटल रेप हमारे देश के कानून की नजर में जुर्म नहीं है. मैरिटल रेप को कानूनी छूट देने के मामले में हम इथियोपिया, ईरान, ईराक, सीरिया, जमैका, ओमान, जॉर्डन और नाइजीरिया जैसे देशों की फेहरिस्त में शामिल हैं.
दुनिया में 193 देश हैं, जिनमें से सिर्फ 19 देशों के कानून में ये साफ-साफ लिखा हुआ है कि मैरिटल रेप अपराध नहीं है. भारत उनमें से एक है. 24 देशों में इस संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं है. बाकी 150 देशों में शादी के बिस्तर पर स्त्री के साथ सेक्स के लिए की गई जबर्दस्ती कानून की नजर में अपराध है, जिसके लिए 7 साल से लेकर 20 साल तक की सजा हो सकती है.
लेकिन ये कानून हमेशा से नहीं थे. मैरिटल रेप का इतिहास 500 साल पुराना है, लेकिन उसे अपराध मानने का इतिहास मुश्किल से चार दशक पुराना भी नहीं.
मैरिटल रेप को समझने के लिए पहले ये समझना होगा कि इंसानों की बनाई कानून की किताब रेप को कैसे परिभाषित करती है. पूरी दुनिया में 18वीं सदी का कानून किसी स्त्री के साथ रेप को पुरुष की संपत्ति की चोरी या उस पर जबरन आधिपत्य के रूप में परिभाषित करता था. यदि स्त्री विवाहित है तो वह पति की संपत्ति है और अविवाहित है तो पिता की. दोनों ही स्थितियों में रेप की सजा स्त्री की गरिमा, सम्मान, निजता और स्वायत्तता को ठेस पहुंचाने की नहीं थी. सजा पुरुष की संपत्ति हथियाने की थी.
रेप की इसी परिभाषा के तहत रेप का कानून विवाह के भीतर बिना सहमति के होने वाले संभोग को अपराध नहीं मानता था क्योंकि पत्नी पति की संपत्ति थी. सत्रहवीं शताब्दी के अंग्रेज बैरिस्टर और जज सर मैथ्यू हेल अपनी किताब 'द हिस्ट्री ऑफ द प्ली ऑफ क्राउन' में लिखते हैं, "पति अपनी कानूनन विवाहित पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विवाह के अनुबंध के साथ ही पत्नी संभोग की सहमति देती है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकती."
दुनिया के अधिकांश हिस्सों में बीसवीं सदी के मध्य तक ऐसा कानून था, जो विवाह के माध्यम से पत्नी का समूचा कानूनी दायित्व और अधिकार पति को सौंपता था. इंग्लैंड में उन्नीसवीं सदी के मध्य तक ये कानून था, जिसमें कोई विवाहित स्त्री किसी कानूनी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं कर सकती थी, अपनी मर्जी से संपत्ति खरीद नहीं सकती थी, अकेले संपत्ति की मालिक नहीं हो सकती थी, नौकरी नहीं कर सकती थी, किसी तरह के श्रम का कोई पारिश्रमिक नहीं ले सकती थी. ये सब चीजें मुमकिन थीं, लेकिन उसके लिए कागज पर पति के हस्ताक्षर जरूरी थे.
अमेरिका में भी ऐसा ही कानून था, जो 1981 के किंचबर्ग बनाम फिंन्स्त्रा मुकदमे के बाद पूरी तरह समाप्त हो गया. इसके पहले 1971 में आए 'इक्वल क्रेडिट अपॉर्च्यूनिटी एक्ट' के बाद औरतों के लिए बिना किसी पुरुष के हस्ताक्षर के अपना बैंक अकाउंट खुलवाना, अपने नाम से क्रेडिट कार्ड लेना और प्रॉपर्टी खरीदना संभव हो गया.
1960 तक पूरी दुनिया में रेप को लेकर सख्त कानून आ चुके थे, लेकिन मैरिटल रेप अब भी उस दायरे से बाहर था. केरसति यिलो और एम. गैब्रिएल टॉरेस अपनी किताब 'मैरिटल रेप: कंसेंट, मैरिज एंड सोशल चेंज इन ग्लोबल कॉन्टेक्स्ट' में लिखती हैं, "मैरिटल रेप को लेकर पूरी दुनिया में जो वैचारिक समानता मिलती है, वो इसलिए नहीं थी कि पूरी दुनिया एक साथ सर मैथ्यू हेल से प्रभावित थी. वो इसलिए थी क्योंकि विवाह के माध्यम से महिलाओं के शरीर पर नियंत्रण ही पितृसत्ता की बुनियाद थी."
पूरी दुनिया में सेकेंड वेव फेमिनिज्म के साथ फेमिनिस्ट आंदोलनों ने मैरिटल रेप को अपराध माने जाने की मांग की. मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने वाले शुरुआती देश थे, सोवियत यूनियन (1922), पोलैंड (1932), चेकोस्लोवाकिया (1950), स्वीडन (1965), नॉर्वे (1971). फ्रांस ने 1990 और जर्मनी ने 1997 में मैरिटल रेप को अपराध माना.
आज 90 फीसदी दुनिया में यह अपराध है. कुछ देश जैसे फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड और तुर्की में मैरिटल रेप को सामान्य रेप के कानून से अलग विशेष तौर पर अपराध के रूप में चिन्हित किया गया है. कुछ देश ऐसे हैं, जैसे नॉर्वे, पोलैंड, रूस और जर्मनी, जहां मेरिटल रेप को विशेष तौर पर शामिल नहीं किया गया है, लेकिन रेप का कानून शादी के भीतर होने वाले रेप पर भी समान रूप से लागू होता है.
भारत चाहे किसी और मामले में कट्टर इस्लामिक देशों से अपनी तुलना न पसंद करे, लेकिन मैरिटल रेप के मामले में वो उन्हीं देशों के बराबर खड़ा है. 1860 में अंग्रेजों के जमाने में लागू हुआ वैवाहिक बलात्कार अपराध अधिनियम आज तक चला आ रहा है. यहां यदि पत्नी की आयु 16 वर्ष से कम नहीं है तो उसके साथ उसकी मर्जी के खिलाफ बनाया गया यौन संबंध अपराध नहीं माना जाता. 16 साल इसलिए क्योंकि लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष होने के बावजूद सहमति से सेक्स की कानूनी उम्र 16 साल है.
मैरिटल रेप को आईपीसी में शामिल किए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. दिल्ली हाईकोर्ट में पीआईएल भी दाखिल की गई, जिसके जवाब में सरकार ने कोर्ट से कहा कि "मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता. ऐसा करने से विवाह संस्था अस्थिर हो सकती है. पतियों को सताने के लिए ये एक आसान औजार हो सकता है."
हालांकि 2013 में जब जस्टिस वर्मा कमेटी रेप से जुड़े कानूनों में बदलाव के लिए अपनी रिपोर्ट सौंपी तो उसमें मैरिटल रेप के लिए अलग से कानून बनाए जाने की सिफारिश की गई थी. कमेटी का मानना था कि "विवाह एक पुरुष को पत्नी के साथ सहवास का असीमित अधिकार नहीं देता. विवाह के भीतर भी सहमति और असहमति को परिभाषित किए जाने की जरूरत है."
कहने की जरूरत नहीं कि वर्मा कमेटी की सिफारिश तब से ठंडे बस्ते में ही पड़ी है.