उत्तर प्रदेश का चुनाव गैस पाइप लाइन का झगड़ा तो है नहीं जो हम मरने-मारने पर उतर आएं

हम कपटी राजनीति के हिसाबी-किताबी तरीकों से बुरी तरह थक और उकता चुके हैं

Update: 2022-02-24 07:51 GMT
नवनीत गुर्जर का कॉलम: 
हम कपटी राजनीति के हिसाबी-किताबी तरीकों से बुरी तरह थक और उकता चुके हैं। हम अब अपने नेताओं को एक दिन लोकसभा या विधानसभा में इठलाते और दूसरे ही दिन तिहाड़ जेल के ठंडे सीमेण्टी फर्श पर सोते नहीं देखना चाहते। हमें छोटापन महसूस होता है जब हमारे क्षेत्रों के बड़े नेता अपनी पार्टी के आका के सामने नाक रगड़ते नज़र आते हैं। हमें ज़िल्लत महसूस होती है जब राजनीतिक दल चुनावों में अपराधियों को टिकट देते हैं।
पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से अपराधियों के चुनाव लड़ने की विडम्बना जब हमें उन्हीं में से किसी एक को चुनने के लिए विवश करती है तो हम अपने ही पैरों के नीचे की जमीन में धंस जाते हैं। ऊपर से कहा यह जाता है कि जब तक अपराध अदालत में साबित न हो जाए तब तक व्यक्ति को निर्दोष माना जाना चाहिए, पर विवशता यह है कि नेताओं को सजा होते हमने कम, बहुत कम ही देखी है।
हम वोटरों में भी स्वभावत: कुछ कमजोरियां हैं जो हमें स्वीकारनी ही चाहिए। एक बार हिमाचल के एक बड़े नेता के घर से गद्दों और बोरियों में भरे करोड़ों नोट बरामद हुए थे। भ्रष्टाचार का इतना सीधा और सरल मामला ढूँंढना मुश्किल था। फिर भी अगले ही चुनाव में वे हिमाचल प्रदेश के एक खास इलाके की सारी सीटें बुहार ले गए और राज्य में किंग मेकर की हैसियत लेकर बैठ गए थे।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र जरूर हैं लेकिन हमारे आम आदमी के पास अपना प्रतिनिधि चुनने के विकल्प इतने कम क्यों हैं? चुनावों से याद आया-इन दिनों उत्तरप्रदेश चुनावों की बड़ी चर्चा है। कहने को पंजाब और गोवा में भी चुनाव हैं। उत्तराखण्ड और मणिपुर भी इसी गंगा में नहा रहे हैं, लेकिन सर्वाधिक चर्चित हैं उत्तरप्रदेश के चुनाव। कभी कहा जाता था कि उत्तर प्रदेश का रुख ही देश का रुख तय करता है।
हालांकि अब ऐसा नहीं है लेकिन फिर भी उत्तरप्रदेश को आप यूं ही जाने नहीं दे सकते। सर्वाधिक सीटें जो यहां हैं। लोकसभा की भी और विधानसभा की भी। 403 सीटों वाले इस प्रदेश में विधानसभा चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं। चार चरण हो चुके। अब तीन बाकी हैं। कहते हैं बीस फरवरी तक हुए तीन चरणों में समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी रहा। एक चरण कल संपन्न हुआ।
आगे के तीन, यानी 27 फरवरी, तीन और सात मार्च के मतदान में भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। असल परिणाम तो दस मार्च को ही आएंगे लेकिन कयासों का दौर जारी है। कोई कहता है अकेले अखिलेश सबको पानी पिला रहे हैं तो कोई कहता है सत्ता तो बाबा की ही रहेगी, भले ही सीटें पहले से कुछ कम हो जाएं। भाई लोग रूस और यूक्रेन की तरह लड़ने पर उतावले हैं।
दरअसल, रूस ने अपनी गैस पाइप लाइन यूक्रेन के बजाय समुद्री रास्ते से निकाली, वहीं से यूक्रेन की आर्थिक पाइप लाइन बंद हो गई और मामला युद्ध तक पहुंच गया। एक बात जरूर कहनी पड़ेगी कि रूस और यूक्रेन के मामले में संयुक्त राष्ट्र पुरानी यूनियन लीग की तरह छटपटाने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा है और अमेरिका के मुंह पर तो जैसे कोई हल्दी पोत गया हो! उसकी कोई सुन ही नहीं रहा है।
रूस तो बिलकुल नहीं सुन रहा। ऊपर से अमेरिका के ही पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इन दिनों पुतिन की प्रशंसा के गीत गाते दिखाई दे रहे हैं। खैर, अब उत्तर प्रदेश का चुनाव कोई गैस पाइप लाइन का झगड़ा तो है नहीं जो हम मरने-मारने पर उतर आएं, लेकिन लोग हैं, कि मानते ही नहीं। लगे हैं अपनी अपनी बात मनवाने पर। उधर पंजाब में कांग्रेस और अकाली-भाजपा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने की होड़ है।
आम आदमी पार्टी को तोड़कर सरकार बनाने की योजनाएं गढ़ी जा रही हैं। जहां तक उत्तराखण्ड और गोवा का सवाल है, वहां फैसला जो भी हो, एकतरफा ही होगा, ऐसा लगता है। हम वोटरों में भी स्वभावत: कुछ कमजोरियां हैं जिन्हें हमें स्वीकारना ही चाहिए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र जरूर हैं लेकिन हमारे आम आदमी के पास अपना प्रतिनिधि चुनने के विकल्प इतने कम क्यों हैं?
 
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