जातीय आरक्षण के दिन लद गए
हमारा सर्वोच्च न्यायालय अब नेताओं से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है
हमारा सर्वोच्च न्यायालय अब नेताओं से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है। उसने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे बताएं कि सरकारी नौकरियों में जो आरक्षण अभी 50 प्रतिशत है, उसे बढ़ाया जाए या नहीं ? कौन राज्य है, जो यह कहेगा कि उसे न बढ़ाया जाए? सभी नेता और पार्टियाँ वोट और नोट की गुलाम होती हैं। लगभग आधा दर्जन राज्यों ने 1992 में अदालत द्वारा बांधी गई आरक्षण की सीमा (50 प्रतिशत) का उल्लंघन कर दिया है। महाराष्ट्र में तो सरकारी नौकरियों में 72 प्रतिशत आरक्षण हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद थी कि वह इस बेलगाम जातीय आरक्षण पर कठोर अंकुश लगाएगा बल्कि जातीय आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करेगा। जातीय आधार पर आरक्षण शुरु में सिर्फ 10 साल के लिए दिया गया था लेकिन वह हर दस साल के बाद द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ता ही चला जा रहा है। उसका नतीजा क्या हुआ है ?