कोयले की कमी से ज्यादा इन समस्याओं से जूझ रहा है देश का पावर सेक्टर
पूरे भारत में बढ़ते तापमान से काफी लोग परेशान हैं
हसन एम कमल : पूरे भारत में बढ़ते तापमान से काफी लोग परेशान हैं . विपक्षी नेता मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर शिकायत कर रहे हैं कि कैसे उन्होंने बिजली उत्पादन (Power Production) के लिए थर्मल पावर प्लांट को कोयले की आपूर्ति नहीं दिला पा रहे हैं और राज्य को नाकाम कर दिया है. इस बीच , राज्य सरकारों के नेता कोयले (COAL CRISIS) की उचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए केंद्र (कोयला मंत्रालय, रेल मंत्रालय और बिजली मंत्रालय) को पत्र लिख रहे हैं . इस बीच, केंद्र ने राज्यों पर जिम्मेदारी फेंकते हुए कहा है कि यदि आवश्यक हो तो वे कोयला आयात भी कर सकते हैं. और इन सब पत्राचार के बीच बिजली कटौती (Power Cut) का खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है .
इसमें कोई शक नहीं है कि थर्मल पावर स्टेशन कोयले की कमी का सामना कर रहे हैं . आधे से अधिक चल रहे थर्मल पावर प्लांट में कोयले का भंडार जरूरी स्तर से नीचे है तो कुछ को कोयले की कमी के कारण बंद करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा है . लेकिन बिजली कटौती का मुद्दा इतना आसान नहीं है जितना बिजली मंत्रालय ने इसे बनाया हुआ है ?
कोयले की कमी या रेलवे रेक की
कोयला मंत्रालय कहता है कि कोयले की कोई कमी नहीं है जबकि रेल मंत्रालय कहता है कि उसके पास पर्याप्त रेल रेक नहीं हैं , तो दोनों सही हैं , लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है . मिंट में एक संपादकीय में कहा गया है कि कोयले की कमी के मुद्दे को जितना बताया जा रहा है उतना वो है नहीं. भारत का थर्मल पावर भूगोल काफी हद तक बदल गया है क्योंकि अब तटीय इलाकों में काफी पावर प्लांट आ गए हैं. ये तटीय पावर प्लांट ज्यादातर अपने पास के बंदरगाह पर आने वाले आयातित कोयले पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं.
यूक्रेन युद्ध के कारण आयात किए जाने वाले कोयले की कीमत बढ़ गई हैं . नतीजतन इन तटीय बिजली संयंत्रों ने घरेलू कोयले का उपयोग करना शुरू कर दिया है . इन तटीय बिजली संयंत्रों में कोयले को ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रेल रेक को वापस आने में दूरी की वजह से अधिक समय लगता है . लेख में बताया गया है कि इस देरी की वजह से अन्य ताप विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति करने के लिए रेल रेक की कमी हो गई है.
कोयले की कमी भी कोई नई समस्या नहीं है
जैसा कि पहले बताया गया है , 2014 के बाद से बिजली संयंत्रों में कोयले का स्टॉक काफी कम है. ये बिजली संयंत्र अप्रैल की शुरुआत में नौ दिनों का औसत स्टॉक रखते हैं जबकि सरकारी दिशानिर्देश के मुताबिक औसतन कम से कम 24 दिनों का स्टॉक रखा जाना चाहिए.
इंडियन कैप्टिव पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के महासचिव राजीव अग्रवाल ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को कहा है , " समस्या यह है कि कोल इंडिया और कोयला मंत्रालय द्वारा पावर प्लांट को पर्याप्त स्टॉक रखने के लिए कहने के बाद भी इन जन-उपयोगी सेवाओं ने अपने स्टॉक को कम करना जारी रखा ."
विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि चल रही हीट वेव की वजह से पावर ग्रिड पर बहुत दबाव आ गया है. गर्मी से राहत पाने के लिए लोगों ने एसी, रेफ्रिजरेटर, पंखे और अन्य कूलिंग उपकरणों का अधिकइस्तेमाल शुरू कर दिया है . लेकिन सवाल है कि क्या इन पावर प्लांट को इसके लिए पहले से तैयार नहीं होना चाहिए था ?
बिजली खपत अचानक बहुत तेजी से बढ़ी
दुनिया में भारत बिजली का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है लेकिन प्रति व्यक्ति खपत के मामले में 106वें स्थान पर है. भारत बिजली के मामले में एक भूखा देश है और इसकी मांग पिछले कुछ दशकों से लगातार बढ़ रही है.
इसके विकास चार्ट में एकमात्र झटका वर्ष 2020 में आया था जब COVID-19 महामारी के परिणामस्वरूप भारत में बिजली की खपत में दो प्रतिशत की गिरावट आई थी . लेकिन कैलेंडर वर्ष 2021 में भारत ने पिछले साल के मुकाबले बिजली की मांग में सबसे अधिक 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. इस तरह भारत ने चीन के साथ बराबरी की थी.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने भविष्यवाणी की है कि कम ही सही लेकिन करीबन 6.4 प्रतिशत की दर पर बिजली की मांग 2022 और 2024 के बीच बढ़ती रहेगी . इसका मतलब है कि भारतीय कंज्यूमर बिजली की और खपत करेंगे जिससे पावर ग्रिड पर दवाब बढ़ेगा.
कुछ क्षमता से बहुत कम उत्पादन
अब हम अगले मुद्दे की ओर बढ़ते हैं जिसकी वजह से भारत का बिजली क्षेत्र बीमार चल रहा है. ये मुद्दा है भारत की बिजली उत्पादन की कुल क्षमता बनाम नेट अधिकतम उत्पादन . भारत की कुलबिजली उत्पादन क्षमता 399.5 गीगावॉट है जिसमें से 289.6 गीगावॉट Monitored Capacity है. इसमें 236 GW कोयला या ईंधन से चलने वाला है , 46.7 GW जल विद्युत और6.7 GW परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता शामिल है. लगभग 109.8 गीगावॉट रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों से पाए जाते हैं और इसकी निगरानी नहीं की जाती है.
निगरानी क्षमता का नेट अधिकतम उत्पादन महज 67.78 प्रतिशत यानि 196.3 GW पर है. इसलिए, अब तक भारत की बिजली उत्पादन क्षमता का 32 प्रतिशत या लगभग 93.3 GW सेअधिक बिजली विभिन्न कारणों से उत्पन्न नहीं होता है. भारत की पीक डिमांड 198.4 गीगावॉट हैलेकिन देश केवल 188.1 गीगावॉट ही पूरा कर पा रहा है.
अब, कोयले/ईंधन/लिग्नाइट की कमी के कारण 26 अप्रैल तक 7,955 मेगावाट क्षमता (लगभग8 गीगावाट) को जबरन बंद कर दिया गया है , जबकि बिजली खरीद समझौतों की कमी केकारण कम से कम 3,966 मेगावाट (4 गीगावॉट) क्षमता काम ही नहीं कर पा रही है. अगर इनदोनों मुद्दों को सुलझा लिया जाता है तो उत्पादन आसानी से पीक-डिमांड को पूरा कर सकता है. समय-बद्ध बिजली कटौती की कोई आवश्यकता ही नहीं होती .
बास्क रिसर्च एंड वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत में पर्याप्त उत्पादन क्षमता है क्योंकि देशमें थर्मल पावर प्लांट का प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) 55% से कम है . इसलिए ये कहा जा सकता है कि कोयले की कमी भारत के बिजली क्षेत्र के लिए एक मुद्दा है लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा ये है कि बिजली उत्पादन क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है.
डिस्ट्रिब्यूशन में नुकसान अभी भी बहुत ज्यादा
भारत में बिजली के ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के दौरान होने वाला नुकसान 2001-2002 के बाद से सुधार के बावजूद 20 प्रतिशत से ऊपर बना हुआ है. ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के दौरान होने वाला नुकसान की जहां तक बात है तो साल 2016-17 में यह 21.42 प्रतिशत था , साल 2017-18 में यह 21.04 प्रतिशत हो गया और साल 2018-19 में टी एंड डी घाटा घटकर 20.66 प्रतिशत पर पहुंच गया. आमतौर पर 6 से 8 फीसदी तक की ट्रांसमिशनलाइन लॉस को स्वीकार किया जाता है.
बिजली वितरण कंपनियां ( डिस्कॉम ) जो बिजली पैदा करने वाली कंपनियों (जेनको) से बिजलीखरीदती हैं वो ज्यादातर नकदी की कमी से जूझती रहती है. नवंबर 2020 तक , बिजली पैदा करनेवाली कंपनियों (जेनको) पर डिस्कॉम का लगभग 1.39 लाख रुपये बकाया था , जिसमें 1.26 लाख रुपये का ओवर-ड्यू शामिल था. जब डिस्कॉम 45 दिनों के बाद बिजली की आपूर्ति के लिए जेनकोस का भुगतान नहीं कर पाती है तो बकाया राशि ओवर-ड्यू हो जाता है.
अब अगला कदम क्या हो
सरकार ने ट्रांसमिशन लाइन घाटे को कम करने के लिए एक "स्मार्ट ग्रिड" लॉन्च किया है . वहीं दूसरी तरफ डिस्कॉम में नकदी की कमी के लिए पालिसी लेवल पर हस्तक्षेप की जरूरत है. बिजली की बढ़ती मांग से निपटने का एकमात्र तरीका अधिक बिजली पैदा करना है . इस क्षेत्र में पहले से ही कदम उठाए जा रहे हैं , लेकिन भारत को अपनी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को भीपूरा करना है. ये जो हीटवेव चल रही है वो जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है.
शोधकर्ताओं के अनुसार ,
एनर्जी स्टोरेज और डिमांड रिस्पॉंस जैसी नई तकनीकों का उपयोगकरने की आवश्यकता है जो बिजली ग्रिड प्रबंधन में मदद कर सकती है. और एक पालिसी होनीचाहिए ताकि रिन्यूएबल एनर्जी सोर्स (आरईएस) की उपयोगिता बढ़ाई जा सके और पावर ग्रिड सेउसे मिला दिया जाए. रिन्यूएबल एनर्जी सोर्स (आरईएस) पहले से ही कुल स्थापित क्षमता के एकचौथाई से अधिक बिजली देता है. भारत निश्चित रूप से इसे कुछ पायदान ऊपर ले जा सकता है . सरकार ने 2022 के अंत तक रिन्यूएबल एनर्जी सोर्स (आरईएस) के 175 गीगावाट की स्थापितक्षमता को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है.