चुनौती तो सबके लिए है

फिलहाल दुनिया में मुख्य चर्चा अफगानिस्तान में अमेरिका की नाकामी की है

Update: 2021-08-19 16:04 GMT

By NI एडिटोरियल। 

americas failure in afghanistan अफगानिस्तान में जो हुआ, टीकाकारों ने उसकी तुलना ईरान की इस्लामी क्रांति, वियतनाम में अमेरिका की हार, और 1959 की क्यूबा की क्रांति से की है। चीन को ये कहने का मौका मिला है कि अमेरिकी वर्चस्व के अंत का एक और सबूत सामने आया है। लेकिन असल में तो चुनौती सबके लिए पैदा हुई है।

फिलहाल दुनिया में मुख्य चर्चा अफगानिस्तान में अमेरिका की नाकामी की है। रिपब्लिकन पार्टी के अभियान और अमेरिकी मीडिया में आलोचनाओं के कारण जो बाइडेन प्रशासन घिरा नजर आ रहा है। अफगानिस्तान में जो हुआ, टीकाकारों ने उसकी तुलना 1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति, 1975 में (वियतनाम के) सैगोन पर कम्युनिस्टों के नियंत्रण, और 1959 की क्यूबा की क्रांति से की है। चीन को ये कहने का मौका मिला है कि अफगानिस्तान की ताजा घटनाएं दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व के अंत का एक और सबूत हैँ। लेकिन असल में गौर करें, तो चुनौती सबके लिए पैदा हुई है। खुद चीन के लिए भी, जो अपने शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुसलमानों के उग्रवादी हिस्सों का सामना कर रहा है। कई विश्लेषकों की इस बात में भी दम है कि भले तालिबान के पाकिस्तान के साथ गहरे रिश्ते रहे हों, लेकिन जिस तरह तालिबान ने जीत हासिल की है, उससे पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों का मनोबल बढ़ेगा, जो वहां अपने हमले तेज कर सकते हैँ।
इसी तरह इस आकलन में भी दम है कि भारत को अब जम्मू-कश्मीर में अधिक अशांति के लिए तैयार रहना होगा। ईरान भले अमेरिका की हार पर खुश हो, लेकिन उसे हजारा समुदाय को लेकर चिंतित होना पड़ सकता है। तालिबान ने अतीत में इस शिया समुदाय का क्रूर दमन किया है। उधर अमेरिका और पश्चिमी देशों के अलावा अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसी देशों को भी बड़ी संख्या में शरणार्थियों के पहुंचने की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। असल बात तब सामने आएगी, जब ये जाहिर हो जाएगा कि इस बार तालिबान किस रूप में सामने आया है। फिलहाल अनुमान है कि अब तालिबान चीन, पाकिस्तान और खाड़ी देशों सहित कई दूसरे देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिश करेगा। तालिबान के प्रवक्ताओं ने संकेत दिए हैं कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाहता है। उनकी दिलचस्पी व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सहायता हासिल करने में है। इसके आधार पर ये उम्मीद जताई गई है कि शायद इस बात तालिबान सरकार उदारवादी रुख अपनाए। मगर देखने की बात यह होगी कि तालिबान देश में महिलाओं और अपने पराजित दुश्मनों से कैसा व्यवहार करता है। फिलहाल तो मीडिया रिपोर्टें यही बता रही हैं कि अफगानिस्तान में सार्वजनिक जिंदगी से जुड़ी रहीं महिलाएं इस वक्त गहरी आशंका में हैँ। तो कुल सूरत यह है कि कोई ऐसा नहीं है, जो तालिबान की कामयाबी से पूरा खुश हो चुनौती सबके लिए पैदा हुई है।


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