Tax System: कर व्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाने का मौका
आकलन करने वाले अधिकारी की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
वर्ष 2023-24 का बजट मई, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले संभवतः आखिरी पूर्ण बजट होगा। यह राजग सरकार का दसवां बजट होगा और भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। भारत विशेष रूप से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच उच्च विकास दर के साथ दुनिया के आर्थिक क्षेत्र में एक उभरता हुआ सितारा है। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और क्रयशक्ति समानता के मामले में इसका तीसरा स्थान है। हमारी अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के प्रभावों से मजबूती से उबरी है। 2021-22 के बजट में वित्त वर्ष-23 में 276 लाख करोड़ रुपये की नॉमिनल जीडीपी का अनुमान लगाया गया था।
वित्त वर्ष-24 में अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से छह से सात फीसदी और नॉमिनल रूप से 11-12 फीसदी की दर से बढ़ सकती है, यानी जीडीपी में करीब 32 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त का इजाफा होगा, जो महत्वपूर्ण रकम है। बजट 2023-24 में राजग सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने का संकल्प प्रदर्शित करना होगा, जैसा कि 6.4 फीसदी से छह फीसदी करने का वादा किया गया था। कर राजस्व संग्रहण असाधारण रूप से अच्छा रहा है और वित्त वर्ष-23 में 28 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़कर 32-33 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। वित्त वर्ष-24 में निरंतर कर उछाल राजस्व को 37-38 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा सकता है।
मौजूदा खर्च के रुझान में सब्सिडी एक महत्वपूर्ण घटक बनी हुई है और इसके कुल छह लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। खाद्य और उर्वरक सब्सिडी प्रमुख घटक हैं, जिसके क्रमशः तीन लाख करोड़ रुपये और 2.5 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। आंकड़े बताते हैं कि इस साल सब्सिडी काफी हद तक बजट अनुमान से अधिक होगी। वित्तीय वर्ष के अंत तक पूंजीगत व्यय 7.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 24 में 10 लाख करोड़ रुपये का लक्षित पूंजीगत व्यय देश में आगे विकास को गति देगा। निरंतर पूंजीगत व्यय में वृद्धि देश की उत्पादक क्षमता में सुधार करेगा और बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करेगा।
सरकार को बजट में लंबे समय से लंबित कराधान के मुद्दों को हल करना चाहिए। निरंतर उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद आयकर की दरें लगभग समान बनी हुई हैं। कर देने वाला मध्यम वर्ग उचित ही कर स्लैब के विस्तार की उम्मीद कर रहा है। मौजूदा कर ढांचा आवास, बचत, ब्याज आदि के लिए छूट और कटौतियों से भरा हुआ है, जिसका लक्ष्य 25-55 आयु वर्ग के व्यक्ति हैं, जो घर बना रहे हैं और भविष्य के लिए बचत कर रहे हैं। सेवानिवृत्त और 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए यह ढांचा बहुत उपयोगी नहीं है। दो साल पहले सरकार ने कर ढांचे को सरल बनाने और छूट को खत्म करने का एक शिथिल प्रयास किया था, लेकिन केवल कुछ ही करदाताओं ने इसे मददगार पाया।
अब लोगों को उम्मीद है कि सरकार टैक्स स्लैब को कुछ इस तरह से सुव्यवस्थित करेगी-पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर नहीं; पांच से 10 लाख की आय पर 10 फीसदी कर; 10-20 लाख के लिए 20 फीसदी; 20 लाख रुपये से अधिक के लिए 30 फीसदी; और उससे अधिक की आय पर 12 फीसदी का मामूली अधिभार। कर की दर को 43 फीसदी तक ले जाने वाले अधिभार को दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि अत्यधिक कराधान के कारण सिंगापुर, दुबई और अमेरिका जैसे अधिक अनुकूल कर व्यवस्थाओं की ओर समृद्ध लोगों का पलायन हुआ है। बजट भाषण में कहा गया था कि अधिभार केवल प्रारंभिक राशि पर लागू होगा, लेकिन बाद के कानून ने इसे संपूर्ण आय पर लागू किया। आगामी बजट इसे ठीक करने का एक अवसर है।
जहां तक कॉरपोरेट टैक्स का संबंध है, 25 फीसदी की कर दर (नई निर्माण कंपनियों के लिए 15 फीसदी) उद्योग के लिए वरदान साबित हुई है और इसने भारतीय उद्योग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना दिया है। इसने आंतरिक संसाधनों में वृद्धि, देनदारियों को कम करने और पूंजीगत व्यय में निवेश करने की क्षमता को नए सिरे से सक्षम बनाया है। कॉरपोरेट टैक्स कटौती ने पिछले दो वर्षों में भारत को बदल दिया है और सकल कॉरपोरेट टैक्स संग्रह में वृद्धि हुई है। व्यापार सुगमता में सुधार के लिए सरकार को इसी तरह के कदम उठाने चाहिए।
विभिन्न संपत्तियों पर पूंजीगत लाभ कर (सीजीटी) को सरल बनाना होगा, क्योंकि इसने बहुत अधिक भ्रम और काफी मुकदमेबाजी को जन्म दिया है। वित्त वर्ष-24 को कर मुकदमेबाजी निष्पादन वर्ष के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि कर मुकदमेबाजी एक बड़ी समस्या बन गई है। अपील के लिए मौद्रिक सीमा बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि कर मुकदमेबाजी कम हो। एक अन्य गंभीर मुद्दा कर अधिकारियों द्वारा उच्च कर निर्धारण करने का चलन है, जो बाद में न्यायाधिकरणों या अदालतों में कम कर दिया या पलट दिया जाता है। लगातार उच्च कर आकलन करने वाले अधिकारी की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
सोर्स: अमर उजाला