तमिलनाडु की राजनीति: शशिकला के दावे में कितना दम
ऐसे समय जब तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक अपनी स्थापना की पचासवीं वर्षगांठ मना रही है,
भास्कर साई
ऐसे समय जब तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक अपनी स्थापना की पचासवीं वर्षगांठ मना रही है, पार्टी की निष्कासित महासचिव वी के शशिकला के हाल ही में उठाए गए कदमों को राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़े आश्चर्य के तौर पर देखा जा रहा है। अन्नाद्रमुक की स्थापना के स्वर्ण जयंती समारोह से ठीक पहले शशिकला 16 अक्तूबर को पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के चेन्नई के मरीना बीच स्थित स्मारक गईं। समर्थकों से घिरी शशिकला ने नम आंखों के साथ वहां पुष्पांजलि अर्पित की, जिसे उनके भावी राजनीतिक कथानक की तरह देखा जा रहा है।
शशिकला ने कहा कि सब जानते हैं कि किन कारणों से उनके स्मारक में आने में विलंब हुआ। नाटकीय अंदाज में शशिकला ने कहा, 'मैंने तीन चौथाई जिंदगी अम्मा
(जयललिता) के साथ बिताई। अम्मा और मैं एक दूसरे से अलग नहीं होते थे। पांच साल से मेरे मन में बोझ लदा हुआ था।' इसके साथ ही वह समर्थकों को यह याद दिलाना नहीं भूलीं कि एमजीआर और जयललिता ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
कभी जयललिता की बेहद करीबी रहीं शशिकला ने कहा, 'मैंने उन्हें (जयललिता) बताया कि क्या कुछ घटा है और यह भी कि पार्टी का भविष्य बेहतर है। मैं इस उम्मीद के साथ यहां से जा रही हूं कि अम्मा और थलाइवा (एमजीआर) निश्चित रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं को बचाएंगे!' गौर किया जा सकता है कि इससे पहले शशिकला 15 फरवरी, 2017 को अनुपातहीन संपत्ति के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद बंगलूरू जेल जाने से पहले इस स्मारक में आई थीं।
फरवरी में बंगलूरू जेल से रिहा होने के बाद शशिकला के यहां आने के बारे में कयास लगाए जा रहे थे। जयललिता के स्मारक के उनके प्रवास से उठी लहरें अभी थमी भी नहीं थी कि शशिकला ने 17 अक्तूबर को पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन के टी नगर स्थित आवास पर अन्नाद्रमुक का झंडा फहराकर एक और लहर पैदा कर दी। इस मौके पर उन्होंने एक तख्ती का भी अनावरण किया है, जिस पर उन्हें अन्नाद्रमुक की महासचिव बताया गया था।
एमजीआर के रामपुरम गार्डन स्थित आवास में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शशिकला ने कहा, 'यदि स्वर्णजयंती वर्ष में पार्टी सत्ता में होती तो यह एमजीआर और अम्मा दोनों के ही सम्मान में गौरव का क्षण होता है।' एमजीआर ने एम करुणानिधि की अगुआई वाले द्रमुक से अलग होकर 17 अक्तूबर, 1972 को अन्नाद्रमुक की स्थापना की थी। एमजीआर जब तक जीवित रहे, पार्टी लगातार चुनाव जीतकर राज्य में शासन करती रही।
1987 में सुपर स्टार से मुख्यमंत्री बने एमजीआर के निधन के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई, एक की कमान उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन के हाथ में थी, तो दूसरे की जयललिता के हाथों में। मगर जल्द ही जयललिता ने पूरी पार्टी में पकड़ मजबूत कर ली और 2016 में निधन से पहले तक वही पार्टी की सर्वमान्य नेता बनी रहीं। कहा जाता है कि जयललिता को उनके राजनीतिक उद्यम में शशिकला ने काफी मदद की। शशिकला अन्नाद्रमुक के नौ जिलों में हाल ही में संपन्न ग्रामीण स्थानीय निकाय चुनावों और अप्रैल में हुए विधानसभा चुनावों में हार के बाद आई हैं।
इन सभी कदमों को शशिकला द्वारा पार्टी का नियंत्रण वापस पाने के खुले प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। शशिकला के ये तेवर अप्रैल में विधानसभा चुनावों और हाल ही में संपन्न नौ जिलों के ग्रामीण निकायों के चुनावों में अन्नाद्रमुक की हार के बाद सामने आए। उनके इस कदम को पार्टी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के उनके प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डी जयकुमार कहते हैं कि शशिकला को किसी भी कीमत पर पार्टी में वापस नहीं लिया जाएगा।
यही नहीं, खुद को पार्टी का महासचिव घोषित किए जाने के कारण शशिकला के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी शुरू की जाएगी। वह कहते हैं, शशिकला को अन्नाद्रमुक का नाम और झंडा इस्तेमाल करने और खुद को महासचिव घोषित करने का न तो नैतिक अधिकार है और न ही कानूनी। चुनाव आयोग ने स्पष्ट तौर पर फैसला सुना दिया है कि हम ही अन्नाद्रमुक हैं और पार्टी का दो पत्ती वाला चुनाव चिह्न और झंडा हमारा है।
अन्नाद्रमुक का नेतृत्व अभी शशिकला के वफादार से शत्रु बने ओ पन्नीरसेलवम (ओपीएस) और ईडापल्ली पलनीस्वामी (ईपीएस) के हाथों में है, जिन्हें कभी शशिकला ने ही बारी-बारी से मुख्यमंत्री के रूप में चुना था। 2017 में आय से अधिक संपत्ति के रखने के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद शशिकला को महासचिव पद से हटा दिया गया था। उसके बाद से पलनीस्वामी और पन्नीरसेलवम जोर देकर कहते रहे हैं कि शशिकला की अन्नाद्रमुक में कोई जगह नहीं है।
बंगलूरू की जेल में जाने से पहले शशिकला जयललिता की समाधि पर गई थीं और वहां उन्होंने नाटकीय तरीके से मुक्का ठोंककर वापसी की शपथ ली थी। इसी जगह पर अब जयललिता का स्मारक बन गया है। जेल से शशिकला की रिहाई विधानसभा चुनाव से पहले हो गई थी और तब अटकलें थीं कि वह तत्कालीन सत्तारूढ़ दल का समीकरण बिगाड़ सकती हैं। लेकिन उन्होंने द्रमुक को हराने के लिए अपने समर्थकों से अन्नाद्रमुक का साथ देने की अपील की थी।
अब जब वह लौट आई हैं, तो राज्य की राजनीति में फिर से हलचल है। ईपीएस और ओपीएस ने साझा बयान जारी कर शशिकला के सियासत में दोबारा प्रवेश को उनकी निजी महत्वाकांक्षा करार दिया है। बयान में यह भी कहा गया कि एक परिवार के हित में पार्टी को तबाह नहीं होने दिया जाएगा। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि जब तक कि ईपीएस और ओपीएस शशिकला से हाथ नहीं मिलाते वह पार्टी पर दोबारा नियंत्रण नहीं कर सकेंगी।
उनके भतीजे दिनाकरन भी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी एएमएमके की बुरी पराजय के बाद से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषक रंगनाथन कहते हैं, जहां तक राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक की बात है, तो अन्नाद्रमुक के घटनाक्रम पर उसकी नजर होगी, लेकिन वह इससे बहुत परेशान नहीं होगी। फिर भी, शशिकला यदि अन्नाद्रमुक में लौट आती हैं, तो उनकी मौजूदगी से पार्टी की चुनावी संभावनाओं में क्या बदलाव आएगा यह लाख टके का सवाल है।