चौतरफा घिरते तालिबान: अफगान जनता किसी भी सूरत में तालिबान का शासन नहीं चाहती

अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच घमासान लड़ाई जारी है

Update: 2021-08-09 11:28 GMT

कुलदीप तलवार

अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच घमासान लड़ाई जारी है। अफगान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में रोजाना बड़ी संख्या में तालिबान आतंकवादी मारे जा रहे हैं। बीते एक-दो दिन में ही कई स्थानों पर दो सौ से ज्यादा आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया है। तालिबान अफगानिस्तान के कई प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा करने की कोशिश में हैं। लेकिन अफगान सुरक्षा बल उनके मंसूबों को विफल करने में जुटे हुए हैं। अफगानिस्तान की हिंसा पर दुनिया की भी नजर है। पिछले हफ्ते भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अफगानिस्तान में लगातार बढ़ रही हिंसा और नागरिकों की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की गई है।

साथ ही, बैठक में यह घोषणा की गई कि सुरक्षा परिषद अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात की बहाली को अपना समर्थन नहीं देगी। दरअसल वर्ष 1990 और आज के अफगानिस्तान में काफी अंतर है। एक समय अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था। लेकिन आज अफगान जनता किसी भी सूरत में तालिबान का शासन नहीं चाहती। यही कारण है कि वहां की जनता तालिबान के खिलाफ पूरे देश में रैलियां निकालकर प्रदर्शन कर रही है और साथ में तालिबान समर्थक पाकिस्तान के खिलाफ भी नारे लगा रही है। आज के अफगानिस्तान में पढ़े-लिखे युवा लड़के-लड़कियों की कमी नहीं है। वे लोकतंत्र के महत्व को समझते हैं। वे तालिबान की कट्टरता को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। तालिबान को आशंका है कि देश के ये युवा उनका साथ न देकर लोकतंत्र को बचाने की कमान अपने हाथों में ले लेंगे।
ऐसा लगता है कि तालिबान ने भी हालात से बहुत कुछ सीख लिया है। वे उस तरह की सत्ता नहीं चाहते, जैसा पहले कर चुके हैं। वे पूरी दुनिया को बता रहे हैं कि वे अपने दुश्मनों को क्षमा करने की नीति पर यकीन रखते हैं। वे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेंगे। उन्हें पढ़ाई के मौके देंगे। लेकिन तालिबान की बातों पर वहां की जनता ही यकीन नहीं कर रही। इससे भी तालिबान परेशान हैं। अफगानिस्तान में बीस साल रहने के बाद भी अमेरिका का मकसद पूरा नहीं हुआ। इसका मुख्य कारण यह था कि उसने अफगानिस्तान में हिंसा और तबाही के लिए पाकिस्तान को कभी जवाबदेह नहीं बनाया। जबकि पाकिस्तान और उसकी सेना लड़ाई में हर तरह से तालिबान को हथियारों की आपूर्ति करती है। आखिर वह पाकिस्तान ही था, जिसने सबसे पहले तालिबान को मान्यता दी थी। अलबत्ता पाकिस्तान से अपनी फौज हटा लेने के बावजूद उस पर अमेरिका की नजर लगी हुई है।
पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भारत आए थे। उन्होंने हमारे विदेश मंत्री जयशंकर के साथ साझा पत्रकार वार्ता में कहा था कि हम अफगानिस्तान में एक ऐसी सरकार चाहते हैं, जो वहां के लोगों द्वारा चुनी गई हो और इसके लिए भारत और अमेरिका एक साथ मिलकर काम करेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि अपनी फौज हटा लेने के बाद भी अमेरिका का अफगानिस्तान से ध्यान नहीं हटेगा। इसके सुबूत मिल भी रहे हैं। अमेरिका अफगान सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे हवाई हमलों में मदद कर रहा है। उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका अपनी पूरी फौज निकालने के बाद भी किसी न किसी रूप में अफगान सुरक्षा बलों की मदद जारी रखेगा। जहां तक भारत की बात है, तो वह अफगानिस्तान में लोकतंत्र चाहता है और उसके विकास में जुटा हुआ है। भारत चाहता है कि अफगान सरकार और तालिबान के बीच सीधी शांति वार्ता जारी रहे, दोनों पक्ष लड़ाई बंद करने के बाद एक मिली-जुली सरकार बनाएं और फिर चुनाव के द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से प्रशासन चले।
अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत की नजर है। जाहिर है कि अफगानिस्तान का स्थायी हल किसी और देश के हाथों में नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ अफगानियों के हाथ में है। अफगान अवाम को किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान के हालात क्या करवट लेते हैं।
Tags:    

Similar News

-->