तालिबानी हुकूमत : मुस्लिम बनाम मुस्लिमों की जंग से जूझता अफगानिस्तान

सत्तापलट होता रहता है, यह एक शासन प्रक्रिया है. यह एक सामाजिक-आर्थिक क्रियाशीलता की राजनीतिक प्रतिक्रिया है. लेकिन

Update: 2021-08-27 13:30 GMT

ज्योतिर्मय रॉय.

सत्तापलट होता रहता है, यह एक शासन प्रक्रिया है. यह एक सामाजिक-आर्थिक क्रियाशीलता की राजनीतिक प्रतिक्रिया है. लेकिन वर्तमान युग में लोकतंत्र प्रक्रिया के माध्यम से सत्तापलट कि सार्वभौमिकता है. क्या कारण है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से हजारों लोग रोज अफगानिस्तान से पलायन कर रहे हैं? एक इस्लामी मुल्क से इस्लाम को चाहने वाले मुस्लिम पलायन कर रहे हैं, एक मुस्लिम मुल्क के विकास का सपने देख रहे गैर मुस्लिम सहयोगी पलायन कर रहे हैं. तालिबान के कब्जे के बाद से हजारों लोग रोज अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं.


तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक कट्टरपंथी राजनीतिक आंदोलन है, जिसका उदय 1990 में उत्तरी पाकिस्तान में माना जाता है. तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र). ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं. इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए. इन मदरसों का खर्च सऊदी अरब द्वारा दिया जाता था. इसकी सदस्यता पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है. 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था. तालिबान आन्दोलन को सिर्फ पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की ही मान्यता है.

तालिबान के कानून
तालिबान सोचते हैं कि वे इस्लाम के सच्चे नुमाइंदे हैं. वे शरियत के एकमात्र प्रहरी हैं. इससे पहले, तालिबान ने वादा किया था कि अगर वे एक बार सत्ता में आते हैं तो सुरक्षा और शांति कायम करेंगे ओर इस्लाम के साधारण शरिया कानून को लागू करेंगे. लेकिन शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गईं थी. सजा देने के विभत्स तरीकों के कारण अफगानी समाज ने इसका विरोध किया गया.

तालिबान ने शरिया कानून के मुताबिक अफगानी पुरुषों के लिए बढ़ी हुई दाढ़ी और महिलाओं के लिए बुर्का पहनने का फरमान जारी कर दिया था.
टीवी, म्यूजिक, सिनेमा पर पाबंदी लगा दी गई. दस वर्ष की उम्र के बाद लड़कियों के लिए स्कूल जाने पर मनाही थी.
तालिबान ने 1996 में शासन में आने के बाद लिंग के आधार पर कड़े कानून बनाए. इन कानूनों ने सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित किया.
अफगानी महिलाओं को नौकरी करने की इजाजत नहीं दी जाती थी.
लड़कियों के लिए सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद कर दिए गए थे.
किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना घर से निकलने पर महिला का बहिष्कार कर दिया जाता है.
पुरुष डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिला और लड़की का बहिष्कार किया जाएगा. इसके साथ महिलाओं पर नर्स और डॉक्टर्स बनने पर पाबंदी थी.
तालिबान के किसी भी आदेश का उल्लंघन करने पर महिलाओं को निर्दयता से पीटा और मारा जाता था.
अफगानिस्तान में 1996 से 2001 तक तालिबान द्वारा अपने शासन के दौरान शरिया कानून के नाम पर किए गए सख्ती और महिलाओं पर किए गए अत्याचार का आतंक आज भी अफगानिस्तान के जनमानस के भीतर छाया हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, शरिया कानून का हवाला देकर तालिबान ने अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार किए थे. करीब एक लाख 60 हजार लोगों को भूखा रखने के लिए उनका अनाज तालिबान द्वारा जला दिया गया था और उनके खेतों में आग लगा दी गई थी.

मुस्लिम बनाम मुस्लिमों की लड़ाई
अफगानिस्तान में तालिबान के विरोध का मतलब है मौत, हत्या. इस्लाम के नाम पर मुस्लिम द्वारा मुस्लिमों की हत्या. अफगानिस्तान में जो भी लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं वह इस्लाम के नाम पर मुस्लिम बनाम मुस्लिमों की लड़ाई हैं. इतिहास गवाह है कि मुसलमानों का खून सबसे ज्यादा मुसलमानों ने ही बहाया है. अफगानिस्तान, सीरिया, सोमालिया, तुर्की, अल्जीरिया, यमन, लीबिया यह सभी मुस्लिम बहुल राष्ट्र हैं. गृह युद्ध के शिकार इन राष्ट्रों में मरने और मारने वाले ज्यादातर मुस्लिम ही हैं.

शरिया कानून का पूर्ण या आंशिक रूप से उपयोग करते राष्ट्र
अफ़ग़ानिस्तान, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, मलेशिया, मालदीव, मॉरिटानिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात, यमन इन देशों में शरिया कानून का पूर्ण या आंशिक रूप से उपयोग हो रहा है. इन मुस्लिम-बहुल देशों में धार्मिक सरकारें नहीं बल्कि इस्लाम को मानने वाली एक प्रकार से धर्मनिरपेक्ष सरकारें हैं.

मुस्लिम बहुल देश
विश्व में कुल 50 मुस्लिम बहुल देश हैं. हालांकि, वर्ल्ड एटलस के अनुसार, 45 इस्लामिक देश हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि ये देश दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 8 फीसदी योगदान करते हैं. सबसे अधिक मुसलमानों वाला क्षेत्र मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र है. मुसलमानों के बड़े प्रतिशत वाले अन्य क्षेत्रों में मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और एशिया-ओशिनिया शामिल हैं. छोटे प्रतिशत अमेरिका और यूरोप में रहते हैं. सबसे अधिक मुस्लिम आबादी इंडोनेशिया में 22.9 करोड़ है, इसके बाद दूसरे स्थान पर पाकिस्तान में 20.04 करोड़ तथा तीसरे स्थान पर बांग्लादेश 15.3 करोड़ हैं. भारत में कुल मुस्लिम आबादी 19.5 करोड़ है.

मुस्लिम-बहुल देश और शरिया कानून
शरिया कानून मुसलमानों के जीवन को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनों का समूह है. ये कानून कई स्रोतों से प्राप्त हुए हैं, जिनमें मुस्लिम पवित्र पुस्तक, कुरान और हदीस से पैगंबर मुहम्मद की बातें शामिल हैं. शरिया कानून के तहत, सभी मानवीय कार्यों को विनियमित किया जाता है. सभी कार्यों को अनिवार्य, अनुशंसित, अनुमत, नापसंद या अनुमत के रूप में वर्गीकृत किया गया है. शरिया कानून जीवन के सभी पहलुओं पर लागू होता है, जिसमें सार्वजनिक व्यवहार, व्यक्तिगत व्यवहार और यहां तक कि व्यक्तिगत विश्वास भी शामिल हैं.

शरिया कानून का पालन करने वाले अधिकांश देशों की अपनी व्याख्याएं हैं. इसका मतलब यह है कि शरिया कानून को लेकर किसी भी दो राष्ट्रों कि सोच बिल्कुल एक समान नहीं हैं. शरिया कानून वाले देश धर्मनिरपेक्ष देश नहीं हैं. विश्व प्रसिद्ध अजमेर की दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख दीवान सैयद ज़ैनुल आबेदीन ने कहा, "तालिबान शरियत के नाम पर आतंक कर, इस्लाम को बदनाम कर रहा है और तालिबान की आतंकी और तानाशाही हरकतों से दुनिया में इस्लाम के प्रति दुर्भावना फैलाई जा रही है. शरियत के कानून के नाम पर यह सब करना इस्लाम में अपराध है. उन्होंने कहा की आज मुस्लिम जगत का प्रत्येक देश शरिया कानून के तहत आम लोगों को सम्मान पूर्वक उनके बुनियादी मौलिक अधिकारों को देने के लिए बाध्य है."

तालिबान द्वारा लागू शरिया कानून से सभी मुस्लिम-बहुल देश सहमत नहीं. तालिबान अपने आप को बदलने का आश्वासन जरूर दे रहे हैं, लेकिन अफगानिस्तान के लोग तालिबान पर विश्वास नहीं करते. तालिबान को सोचना होगा, इस्लाम के मानने वाले मुस्लिम क्यों तालिबान से दूर भाग रहे हैं. हुकूमत हासिल करने से कठिन है लोगों का दिल जीतना और दिल जीतने के लिए हथियार नहीं, आंसू पोछने वाले हाथों की आवश्यकता होती है.
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