क्लीन एयर के लिए क्रांतिकारी कदम उठाएं; वायु प्रदूषण रोकने के लिए औद्योगिक स्तर पर सुधार जरूरी
सर्दिया पीक पर हैं, नतीजतन वायु प्रदूषण भी बढ़ा हुआ है
आरती खोसला का कॉलम:
सर्दिया पीक पर हैं, नतीजतन वायु प्रदूषण भी बढ़ा हुआ है। इस मौसम में ना केवल उच्च पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का स्तर बढ़ जाता है, बल्कि यह नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी प्रदूषणकारी गैसों को भी प्रभावित करता है। भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड व सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों के पीएम 2.5 में तेजी से रूपांतरण के लिए मौसम संबंधी स्थितियां बहुत अनुकूल हैं।
इसलिए पीएम 2.5 को नियंत्रित करने के लिए इन गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित करना जरूरी है। स्थानीय स्तर पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने से पर्यावरण व स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्तेजक गैस है, जो ज्यादा मात्रा में होने पर श्वासनली की सूजन का कारण बनती है। वहीं, नाइट्रोजन ऑक्साइड स्मॉग व एसिड रेन बनाने के लिए प्रतिक्रिया करता है।
हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि राज्यों में परिवहन में जीवाश्म ईंधन की खपत के कारण, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की वार्षिक औसत सांद्रता, सड़कों पर कमज़ोर लोगों को जैसे फेरीवाले, विक्रेता और बेघर लोगों में कोविड का जोखिम बढ़ा रही है। नाइट्रोजन ऑक्साइड जहरीली और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैसों का एक परिवार है, जो उच्च तापमान पर ईंधन जलाने पर बनती है।
यह प्रदूषण ऑटोमोबाइल, ट्रक और विभिन्न गैर-सड़क वाहनों जैसे निर्माण उपकरण, नाव आदि द्वारा उत्सर्जित होता है। इसकेे औद्योगिक स्रोत अनिवार्य रूप से जीवाश्म-ईंधन आधारित बिजली संयंत्र, भस्मीकरण संयंत्र, अपशिष्ट जल उपचार सुविधाएं, कांच और सीमेंट उत्पादन सुविधाएं और तेल रिफाइनरी हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड न केवल दहन प्रक्रियाओं के दौरान जारी होता है, बल्कि नाइट्रिक एसिड के साथ काम करते समय भी।
वातावरण में बढ़ रही नाइट्रस ऑक्साइड के पीछे कृषि का बहुत बड़ा हाथ है। सबसे ज्यादा मुसीबत उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राष्ट्रव्यापी निगरानी किए जाने वाले वायु प्रदूषकों में से एक है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) में सूचीबद्ध सभी 23 राज्यों में इस एनसीएपी ट्रैकर द्वारा किए गए एक विश्लेषण से पता चला है कि इन तीन राज्यों में औसत स्तर ने सुरक्षा सीमा का उल्लंघन किया है।
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर क्लीन एयर द्वारा 2021 के एक अध्ययन में दुनिया की सबसे प्रदूषित मेगासिटी, दिल्ली के नौ थर्मल पावर प्लांट से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन स्थापित करता है कि विशिष्ट स्रोतों से, जैसे थर्मल पावर प्लांट, और दिल्ली भर में और आसपास के उपग्रह शहरों में भी, जहां परिवहन अन्य महत्वपूर्ण उत्सर्जक क्षेत्र है, उत्सर्जित अकेले नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को अलग करना आसान है।
सेंटर फॉर रिसर्च फॉर एनर्जी एंड क्लीन एयर के एक हालिया विश्लेषण में अनुमान लगाया गया है कि वातावरण में घुलने वाली खतरनाक गैस रोकने के लिए लगाए जाने वाले फ्यूल गैस डी-सल्फराइजेशन सिस्टम (एफजीडी) से युक्त बिजली संयंत्रों (महात्मा गांधी और दादरी पावर प्लांट) को 85 प्रतिशत प्लांट लोड फैक्टर पर संचालित किया जाता है, तो अकेले ये दो संयंत्र, अन्य स्रोतों और आयातों सहित, लगभग 314 मिलियन यूनिट दिन पैदा करेंगे, जिससे सर्दियों के मौसम में 300 किमी के भीतर बिजली संयंत्रों को बंद करने का मामला बनता है।
जबकि विश्लेषण सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर केंद्रित है, दिल्ली के आसपास थर्मल पावर प्लांट बंद करने का मामला नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सहित सभी प्रदूषकों को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)