तनाव से मुक्ति का पाठ

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दृष्टिकोण है कि शिक्षा मूल्य आधारित होनी चाहिए, जिससे आज का विद्यार्थी कल का एक अच्छा नागरिक बने। ऐसा करने के लिए हमें विद्यार्थियों को तनावमुक्त शिक्षा प्रदान करनी होगी।

Update: 2022-03-31 03:49 GMT

सुभाष सरकार: नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दृष्टिकोण है कि शिक्षा मूल्य आधारित होनी चाहिए, जिससे आज का विद्यार्थी कल का एक अच्छा नागरिक बने। ऐसा करने के लिए हमें विद्यार्थियों को तनावमुक्त शिक्षा प्रदान करनी होगी। उन्हें अंकों की दौड़ में भागने के बजाय ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिए। विद्यार्थियों को शिक्षा के स्वरूप से परिचित करवाना चाहिए कि किस प्रकार शिक्षित होकर वे समाज, राष्ट्र और विश्व की सेवा कर सकते हैं।

जीवन में कई परीक्षाएं आती हैं। अगर कहें कि जीवन का नाम ही परीक्षा है और हम सब विद्यार्थी हैं, तो गलत न होगा। पर, जीवन की विभिन्न परीक्षाओं में से एक महत्त्वपूर्ण परीक्षा है स्कूल की परीक्षा। जब भी हम स्कूल की परीक्षाओं को याद करते हैं, तो हमारे मन में अनेक स्मृतियां जागने लगती हैं। सुबह-सुबह उठ कर पढ़ना, परीक्षा से पहले प्रार्थना करना, दही-चीनी खाकर स्कूल जाना, नई कलम से प्रश्नों के उत्तर लिखना और किसी बड़े की सलाह जैसे, साफ-साफ उत्तर लिखना, कोई भी प्रश्न छोड़ कर मत आना आदि पर अमल करना।

जिस प्रकार छोटे पौधे का तना मजबूत नहीं होता, उसमें लचीलापन होता है, उसी प्रकार बालमन भी कोमल होता है। जिस प्रकार एक छोटे पौधे को पनपने के लिए धूप, पानी, हवा, खाद आदि की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार बच्चों को भी साथ और सहयोग की आवश्यकता होती है। अगर हम बात करें बच्चों के डर की, तो परीक्षा का समय आते ही विद्यार्थियों के मन में भय और आशंका का भाव घर करने लगता है।

ऐसे में उन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। इसी डर को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री ने 'परीक्षा पे चर्चा' के माध्यम से विद्यार्थियों से प्रत्यक्ष चर्चा करते हुए उनका मार्गदर्शन करने कि शुरुआत की। पिछले चार वर्षों से शिक्षा मंत्रालय का स्कूल और साक्षरता विभाग इस अभिनव कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।

इस कार्यक्रम के दौरान, देश और विदेशों के छात्र, माता-पिता, अभिभावक और शिक्षक प्रधानमंत्री से बातचीत और परीक्षा के वक्त होने वाले तनाव पर चर्चा करते हैं। इस कार्यक्रम के पीछे प्रधानमंत्री की मंशा विद्यार्थियों के मन से परीक्षा के डर को कम करना और उन्हें तनाव मुक्त रूप से परीक्षाओं का प्रारूप समझाना है। यह कार्यक्रम 'एग्जाम वारियर्स' नामक बड़े आंदोलन का हिस्सा है। 'एग्जाम वारियर्स' नाम प्रधानमंत्री की सर्वाधिक बिकने वाली और अग्रणी पुस्तक से लिया गया है। इस पुस्तक में प्रधानमंत्री ने शिक्षा के लिए एक नवीन दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें छात्रों के ज्ञान और समग्र विकास को प्राथमिकता दी गई है।

पिछली 'परीक्षा पे चर्चा 2021' के दौरान प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया था कि परीक्षा जीवन या मृत्यु की स्थिति नहीं है; हमें इसे चुनौती के रूप में देखना चाहिए और इससे दूर भागने के बजाय और अधिक क्षमता के साथ इसका सामना करना चाहिए। सच में, परीक्षाओं से दूर भागना कोई उपाय नहीं है। जब तक हम इसमें भाग नहीं लेंगे तब तक सफल कैसे होंगे। प्रधानमंत्री कहते हैं, 'आप जो पढ़ते हैं, वह आपके जीवन में सफलता या विफलता का एकमात्र पैमाना नहीं हो सकता। आप जीवन में जो करते हैं वही आपकी सफलता और विफलता को निर्धारित करता है।'

जीवन में परीक्षा परिणाम के आधार पर सफलता और विफलता तय नहीं की जा सकती। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो कार्य तथा जैसा आचरण हम करते हैं, वही हमारी सफलता की राह तय करता है। अगर हम सकारात्मक रुख से कोई कार्य करते हैं, तो उसका परिणाम भी सकारात्मक ही मिलता है। नकारात्मक आचरण कार्य की सफलता में बाधा पैदा करता और हमें निराशा की ओर ले जाता है।

यह कार्यक्रम छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों द्वारा साझा की गई प्रतिक्रियाओं और चिंताओं का ब्योरा भी दर्ज करता है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि, 'आप भारत के प्रधानमंत्री से बात नहीं कर रहे हैं, आप एक दोस्त से बात कर रहे हैं।' उनका यह उदार रवैया तनाव मुक्त परीक्षाओं के महत्त्व पर चर्चा करने के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाता है। हमें स्वयं भी यही प्रयास करना चाहिए कि जब हमारा बच्चा हमसे अपने विचार साझा करे, तो उसे लगे कि वह अपने दोस्त से बात कर रहा है।

जब राज्यों और राष्ट्रीय बोर्ड परीक्षाओं का समय नजदीक आता है, तो परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम का लक्ष्य इस संपर्क को आगे बढ़ाना और कक्षा नौ से बारह तक के छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता और शिक्षकों के साथ चर्चा करना होता है। प्रधानमंत्रीकहते हैं कि, 'अपने बच्चों से जुड़ें, उनकी पसंद-नापसंद जानें। जब आप अपने आप को अपने बच्चों की दुनिया में शामिल करेंगे, तो यह पीढ़ियों के अंतर को कम करेगा, और वे भी आपकी बात को समझेंगे।' दरअसल, बच्चों को खुलने के लिए एक सकारात्मक पहल की आवश्यकता होती है, जो कि हर अभिभावक को करनी चाहिए।

कोरोना महामारी में विद्यार्थियों के लिए डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर पढ़ाई करने का अवसर पैदा हुआ है, पर घर पर रहने से उनका मानसिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है। ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विद्यार्थी अगर 'आनलाइन' पढ़ाई कर रहे हैं और विभिन्न उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं, तो अभिभावक और घर के अन्य सदस्य उनका ध्यान रखें।

छात्रों के लिए इस वर्ष के कार्यक्रम में व्यापक विषय शामिल हैं। इनमें कोविड-19 के दौरान परीक्षा तनाव प्रबंधन रणनीतियां, आजादी का अमृत महोत्सव, आत्मनिर्भर भारत के लिए आत्मनिर्भर स्कूल, स्वच्छ भारत, हरित भारत, डिजिटल शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन आदि। सामूहिक रूप से, इनका उद्देश्य शिक्षा से संबंधित चर्चा को प्रोत्साहित करना है, शिक्षण और सीखने के विषय में 'आत्मानिर्भरता', और जलवायु परिवर्तन पर समान जोर दिया जाता है। कार्यक्रम के समय ये विषय, इसे अत्यधिक प्रासंगिक बनाते हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि, 'टीचर के कहने का बच्चों पर अधिक असर होता है।' ऐसा इसलिए भी होता है कि शिक्षक विद्यार्थियों के आदर्श होते हैं। विद्यार्थियों के जीवन निर्माण में शिक्षकों की भूमिका सर्वोपरि होती है। शिक्षकों को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हर विद्यार्थी की समझ का स्तर अलग होता है। ऐसे में उन्हें सभी विद्यार्थियों को समझते हुए एक सकारात्मक वातावरण में पढ़ाना चाहिए।

शिक्षकों और माता-पिता के लिए यह चर्चा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नए प्रावधानों से जुड़ी है, जो कि विशेष रूप से छात्रों के जीवन और सामान्य रूप से समाज को सशक्त तथा 'नए भारत' के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी। उल्लेखनीय है जिस प्रकार देश प्रधानमंत्री के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन का उत्सव मना रहा है और यह माता-पिता को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि इस योजना के जरिए राष्ट्रीय विकास में कैसे सहभागिता निभाई जा सकती है। 'परीक्षा पे चर्चा' के पिछले संस्करणों में छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने समान रूप से व्यापक भागीदारी की है।

संवादात्मक और चित्रात्मक गतिविधियों का उपयोग न केवल भागीदारी को प्रोत्साहित करता है, बल्कि विचारपरक और मनोरंजक गतिविधियों के उपयोग में भी सहायता करता है। यह व्यावहारिक माध्यमों से अवधारणाओं को समझने में मदद करता है। परीक्षा को समझने के साथ विद्यार्थियों को रवींद्रनाथ ठाकुर के इस कथन को भी समझना चाहिए कि 'सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप समंदर पार नहीं कर सकते।' परीक्षाओं से डर कर हम परिणामों की आशा नहीं कर सकते, इसलिए परीक्षा के लिए प्रयास करते हुए मेहनत करें, परिणाम स्वयं ही मिल जाएग।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दृष्टिकोण है कि शिक्षा मूल्य आधारित होनी चाहिए, जिससे आज का विद्यार्थी कल का एक अच्छा नागरिक बने। ऐसा करने के लिए हमें विद्यार्थियों को तनाव मुक्त शिक्षा प्रदान करनी होगी। उन्हें अंकों की दौड़ में भागने के बजाय, ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिए। विद्यार्थियों को शिक्षा के स्वरूप से परिचित करवाना चाहिए कि किस प्रकार शिक्षित होकर वे समाज, राष्ट्र और विश्व की सेवा कर सकते हैं।


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