सख्ती का संदेश

करीब दो साल पहले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के वक्त राज्य आतंकवाद की जटिलता से जूझ रहा था।

Update: 2021-08-03 03:45 GMT

करीब दो साल पहले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के वक्त राज्य आतंकवाद की जटिलता से जूझ रहा था। हालांकि आज भी वहां इस समस्या को पूरी तरह खत्म कर पाना संभव नहीं हुआ है, लेकिन इतना जरूर है कि स्थानीय स्तर पर अक्सर पैदा होने वाली अराजकता और हिंसा की घटनाओं पर कुछ हद तक काबू पाया जा सका है। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की जो पृष्ठभूमि रही है, उसके असर में कुछ युवाओं को देखना दुखद है। उन्हें इस दायरे से से बाहर लाने के लिए सरकार ने प्रशासनिक सख्ती से लेकर नागरिकों को विश्वास में लेकर नई पीढ़ी को आतंकवादियों के जाल में फंसने से बचाने के लिए कई मोर्चों पर काम किया है। उसके असर भी देखने में आए हैं। लेकिन इस दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासतौर पर कुछ युवाओं को वहां जिस तरह सेना या पुलिस के जवानों पर पत्थरबाजी करने में इस्तेमाल किया जाता रहा है, वह पिछले कुछ सालों में एक जटिल समस्या बन कर उभरा है। प्रशासन की सख्ती के चलते इसमें थोड़ी कमी देखी गई, मगर इस पर पूरी तरह काबू पाना वक्त की जरूरत है, ताकि राज्य और वहां के लोगों को देश की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।

इसी के मद्देनजर सरकार ने अब जम्मू-कश्मीर में सेना के जवानों या सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की घोषणा की है। एक नए फैसले के तहत अब अगर वहां का कोई युवा इस तरह पत्थरबाजी करता हुआ पकड़ा जाएगा, तो उसे पासपोर्ट नहीं मिल सकेगा और साथ ही वह कोई भी सरकरी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकेगा। इससे पहले केंद्र सरकार एक कानून में संशोधन कर सरकारी नौकरी के लिए सीआइडी की ओर से अनापत्ति प्रमाण पत्र को जरूरी बना चुकी है। लेकिन अब नौकरी से पहले आवेदन के समय ही पहले की गतिविधियों के आधार पर पात्र मानने या नहीं मानने की व्यवस्था निश्चित रूप से पहले के मुकाबले ज्यादा बड़ी सख्ती है। इससे वहां के युवाओं को यह संदेश समझ जाना चाहिए कि अगर अपने भविष्य को अंधेरे में नहीं जाने देना है तो वे स्थानीय स्तर पर भड़काने वाले या फिर आतंकवाद का पोषण करने वाले लोगों के चंगुल से खुद को आजाद करें या फिर पासपोर्ट और नौकरी से वंचित होकर लाचार जीवन गुजारें।

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जो हालात पैदा हुए हैं, उसमें कम से कम सतह पर यही देखा गया कि वहां के लोगों के बीच इस मसले पर काफी क्षोभ है और उनकी राय बंटी हुई है। इस ऊहापोह का फायदा उठा कर इलाके में सक्रिय आतंकवादी संगठन युवाओं और यहां तक कि किशोरों को भी बहका कर उन्हें मामूली रकम के बदले सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाते रहे हैं। जाहिर है, अगर वहां के युवा पत्थरबाजी जैसे काम में खुद को झोंक देते हैं, तो इसकी वजह अभाव की जिंदगी भी हो सकती है, जिसमें उनके लिए थोड़े पैसे मायने रखते होंगे। हो सकता है कि अगर उन्हीं युवाओं को रोजगार या काम-धंधे में अपनी ऊर्जा लगाने का मौका मिले तो वे आतंकवादियों के बहकावे में नहीं आएं! तो पत्थरबाजी में लिप्त रहने वालों को पासपोर्ट और नौकरियों से वंचित करने का सरकार का फैसला सही हो सकता है, लेकिन इसके समांतर अगर सहज माहौल में किशोरों की पढ़ाई-लिखाई की समुचित व्यवस्था और युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए एक ठोस तंत्र विकसित किया जाए तो आतंकवादियों के संजाल में फंसने वाले युवाओं के मामले में एक दीर्घकालिक हल तक पहुंचने में मदद मिल सकती है।



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