अध्यात्म या विज्ञान: कैसे सामने आएगा जीवन की उत्पत्ति का रहस्य?

अध्यात्म या विज्ञान

Update: 2021-11-08 10:45 GMT

आखिर इस जगत में जीवन की शुरुआत कैसे हुई? ऐसे कौन से घटक थे जिन्होंने जीवन को जन्म दिया? जीवन का प्रयोजन क्या है? जीवन है क्या? इन सवालों का हमारे पास अभी तक कोई ठोस उत्तर नहीं है। क्योंकि जीवन को लेकर विभिन्न प्रकार की मिथ्याएं और धारणाएं हमारे समक्ष खड़ीं हैं। अध्यात्म इसे चेतना और परमात्मा के नजरिए से देखता है। वहीं दूसरी ओर विज्ञान के मुताबिक कुछ केमिकल्स रिएक्शन के चलते जीवन घटित होता है और उसका हमें अनुभव होता है।


नेट जियो के एक प्रसिद्ध टेलीविज़न शो ' कॉसमॉस ए स्पेस टाइम ओडेसी ' में नील डिग्रेस टाइसन बताते हैं कि आज से लगभग 4 अरब साल पहले पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं था। वातावरण में ऑक्सीजन बनाने का काम सबसे पहले हरे पौधों ने शुरू किया। ये प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड ले कर ऑक्सीजन छोड़ने लगे।

इससे पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी और जीवन के नए आयाम विकसित होने लगे। पृथ्वी पर सबसे पहले विकसित होने वाला हरा पौध सायनोबैक्टीरिया था। ये पहला ऐसा जीव था जो कि ऑक्सीजन में सांस नहीं ले सकता था, अपितु अनॉक्सी श्वसन से काम चलाता था।
विज्ञान की शाखा में एक बहुत बड़े वैज्ञानिक हुए चार्ल्स डार्विन। उन्होंने 1871 में यह अनुमान लगाया कि जीवन की शुरुवात संभवत: गुनगुने पानी से भरे एक ऐसे उथले पोखर में हुई होगी, जिसमें सब प्रकार के अमोनिया और फॉस्फोरिक लवण होंगे। इन पर प्रकाश, ऊष्मा और विद्युत की क्रियाएं होती रही होंगी। इसके चलते एक ऐसे परिवेश की निर्मिति हुई, जिसमें जीवन घटित हो सका।

हीगल ने भी जीवन को लेकर जो कुछ भी कहा वह आज के वैज्ञानिक सत्य से काफी मेल खाता है। उसके मुताबिक जीवन पदार्थ से जन्मा है। पदार्थ का लक्ष्य परम चेतना को हासिल करना है इसलिए उसने ब्रह्मांड की रचना की, उसमे पृथ्वी को जन्म दिया और पृथ्वी पर जीवन को। पर जीवन की उत्त्पत्ति से उसका धेय्य पूरा नहीं हो गया।

सर्वप्रथम जीवन की क्रांति जो पृथ्वी पर घटित हुई, उसने पदार्थ को चैतन्य चित्त का दर्शन करवाया। यह एक विराट प्रयोजन का हिस्सा था। धीरे-धीरे जीव जंतुओं के माध्यम से चेतना की भी क्रमागत उन्नति होने लगी। आज चेतना मनुष्य के स्तर पर पहुंच गई है। मनुष्य बाकी जीव जंतुओं की अपेक्षा अधिक चैतन्य है। हीगल के अनुसार यह कड़ी और आगे तक चलती जाएगी, जब तक पदार्थ परमचेतना के शिखर को नहीं छू लेता।
वहीं दूसरी ओर जीवन और चेतना को देखने का भारतीय दृष्टिकोण सनातनी है अर्थात् सृष्टि और जीवन की न कोई शुरुआत है और न ही इसका कभी अंत होगा। यह दोनों एक चक्र की भांति घूमते हैं। इनमें केवल बदलाव घटित होता है। जन्मता-अजन्मता कुछ नहीं। पदार्थ तो बस उस परमात्मा की अभिव्यक्ति है। वह उसी के भीतर है। उसे जानना है तो जरूरत है बस एक प्रहार की। वह फौरन प्रकट हो जाएगा। इसके लिए अध्यात्म दर्शन में सैकड़ों मार्ग बताए गए हैं, जिसके माध्यम से जीवन के रहस्य को जाना जा सकता है।

जीवन और जगतृ को लेकर अध्यात्म का दर्शन कितना सही है? और कितना गलत? इसको जानने के लिए इंसान का संशयवादी होना जरूरी है। पूरा का पूरा आध्यात्मिक साहित्य अलंकृत शब्दों और उपमाओं से भरा पड़ा है। अब तक केवल गिनती के कुछ लोग ही हुए हैं जिन्होंने यह दावा किया है कि वह कैवल्य के शिखर पर पहुचे हैं। सृष्टि और जगत के विषय में जो कुछ भी इन बुद्ध पुरुषों ने कहा है। कई मर्तबा उनकी बातें ही आपस में नहीं मिलती। बुद्ध जीवन को लेकर एक अलग व्याख्या करते हैं तो महावीर कुछ ओर।
हाल ही में कुछ दिनों पहले सदगुरू का एक इंटरव्यू देख रहा था। उसमें वह कहते हैं कि विज्ञान कभी जीवन और जगत के सत्य को परिभाषित नहीं कर सकता है। तभी इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति पूछ पड़ता है कि आप कैसे कह सकते हैं कि विज्ञान कभी जीवन के सत्य को नहीं जान सकता है? हर एक व्यवस्था को चलाने के लिए उपक्रम होता है।

विज्ञान बस उन उपक्रमों की तलाश करता है जो संबंधित व्यवस्था को चलाते हैं। जीवन और जगत की व्यवस्था को चलाने वाला भी कोई न कोई उपक्रम तो जरूर होगा। हां आज की वैज्ञानिक तकनीक और संसाधनों से भले ही हम उस व्यवस्था के विषय में जान नहीं पा रहे हैं, हो सकता है कल को जान लें। इटरव्यूूअर का यह सवाल वाकई सराहनीय था। सत्य को केवल विज्ञान की कसौटी पर ही कसा जा सकता है।

विज्ञान प्रयोग और परिणाम के रास्ते पर चलता है। प्रयोग से निकले हुए परिणाम हमें दृष्टि देते हैं आगे के रास्ते को देखने के लिए, वहीं आस्था दृष्टि पर पट्टी बांधती है। ऐसे में यह प्राकृतिक और वैज्ञानिक सत्य है कि जीवन और जगत की मिथ्या को संशय से ही सुलझाया जा सकता है। किसी आस्था और दर्शन से नहीं।



डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता  उत्तरदायी नहीं है।

Tags:    

Similar News

-->