बहरहाल आज़मगढ़ से भाजपा उम्मीदवार, भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार, दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ने 8679 मतों से सपा के धर्मेन्द्र यादव को हराया है। जनादेश का यह फासला बहुत चौड़ा नहीं है। यदि बसपा उम्मीदवार नहीं होता, तो नतीजा कुछ भी हो सकता था। यह सीट अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई थी, क्योंकि अब वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। रामपुर क्षेत्र में पुराने सपा नेता आज़म खान का ऐसा जलवा रहा है कि उन्होंने जेल में रहते हुए ही विधानसभा का चुनाव जीता है। सांसदी से उनके इस्तीफे के बाद ही यह सीट खाली हुई थी, लेकिन भाजपा के जिस प्रत्याशी घनश्याम लोधी ने 42,192 मतों से सपा नेता आसिम रज़ा को पराजित किया है, वह खुद सपा से भाजपा मंे आयातित हैं और 12 साल तक विधायक भी रहे हैं। साफ है कि भाजपा के पक्ष में कोई 'क्रांतिकारी ध्रुवीकरण' नहीं हुआ है। फिर भी ये चुनावी जीत तो हैं। इनसे लोकसभा में सपा के मात्र 3 सांसद रह जाएंगे और भाजपा की संख्या फिर 303 हो जाएगी। भाजपा की तुलना में सपा, अखिलेश यादव के नेतृत्व में, 2014 का लोकसभा, 2017 का विधानसभा, 2019 का लोकसभा और अब 2022 का विधानसभा चुनाव लगातार हारी है। भाजपा की ठोस चुनावी रणनीति को समझा जा सकता है। बेशक उपचुनाव थे, लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने सभाओं को संबोधित किया और मंत्रियों से लेकर आम काडर तक सभी अपने-अपने स्थान पर सक्रिय रहे। जनादेश सामने हैं। समाजवादियों के गढ़ ढहाए हैं और वहां अपनी सत्ता स्थापित की है।
अब पार्टी का उन क्षेत्रों में भी विस्तार किया जाएगा। बहरहाल उप्र से अलग पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट का जनादेश भी अप्रत्याशित, लेकिन महत्त्वपूर्ण और चौंकाऊ है। पंजाब में भी मात्र तीन माह पहले ही आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनी है। बेहद प्रचंड और ऐतिहासिक जनादेश था। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के इस्तीफे से संगरूर लोकसभा सीट खाली हुई थी। वहां अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष 77 वर्षीय सिमरनजीत सिंह मान ने 'आप' के प्रत्याशी गुरमेल सिंह को 5822 मतों से पराजित किया है, नतीजतन लोकसभा में 'आप' की उपस्थिति शून्य हो गई है और 3 माह में ही पंजाबियों का यह मोहभंग बड़ा राजनीतिक संकेत है। मुख्यमंत्री अपनी परंपरागत सीट हार जाएं, यह किसी पूर्ण जनादेश से कमतर नहीं है। बेशक यह 'आप' के लिए चेतावनी का घंटा है। केजरीवाल एंड पार्टी को अभी से आत्ममंथन करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राज्य की कानून-व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए और राज्य के आर्थिक संसाधन पुख्ता किए जाएं। उसी के बाद मुफ्तखोरी की योजनाएं लागू की जा सकती हैं। सिमरनजीत पंजाब के कट्टरवादी नेताओं में रहे हैं। चूंकि जनादेश उन्हें मिला है, लिहाजा परोक्ष संकेत है कि खालिस्तानी ताकतें लामबंद हो रही हैं। यह भी केजरीवाल ब्रांड की राजनीति के लिए बेहद गंभीर चुनौती है। उप्र और पंजाब के अलावा त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव थे। भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री माणिक साहा जितवा लिया और कुछ सीटें झोली में बटोर लीं। अप्रत्याशित जनादेश पर देश भर में विमर्श जारी रहेगा और लोग चुनावों की समीक्षा करेंगे।