कुछ 'एक्सपायर्ड' उत्पाद घर पर नहीं 'मरते', उन्हें एक समयांतराल पर बदलते रहना चाहिए
कौन बनेगा करोड़पति के एक हालिया एिपसोड में हिमाचल से आए 9 साल के अरुणोदय शर्मा ने अमिताभ बच्चन से एक सवाल पूछा, ‘आप सुबह कितने बजे उठते हैं
एन. रघुरामन। कौन बनेगा करोड़पति के एक हालिया एिपसोड में हिमाचल से आए 9 साल के अरुणोदय शर्मा ने अमिताभ बच्चन से एक सवाल पूछा, 'आप सुबह कितने बजे उठते हैं?' ऐसे व्यक्तिगत सवाल से थोड़ा चौंक गए अमिताभ ने जवाब दिया, 'आपको पता है जिस उम्र में अभी मैं हूं, रात में कम से कम तीन-चार बार उठना पड़ता है। हालांकि मैं सुबह 5.30 बजे के आसपास उठ जाता हूंं।'
इस बातचीत से मुझे याद आया कि अपने 40 साल के कॅरिअर के दौरान मैं दुनियाभर के अलग-अलग शहरों के कई अलग-अलग होटलों, और महंगे होटलों में भी जब-जब रुका हूं, रात में एक बार भी बिना उठे अच्छी नींद सोया हूं। काम के कारण जब भी आना-जाना होता है, मैं अभी भी होटलों में रुकता हूं। पर जब भी महंगी होटलों में रुका हूं, मुझे अच्छी नींद आई है और कभी भी आधी रात को नींद नहीं खुली।
मुझे हमेशा से लगता था कि शायद इसकी एक वजह दिन में 14-15 घंटे काम करना होगी। पर मैं गलत था। ठीक उसी समय जब मैं देश के सुदूर इलाकों में ठहरा, जहां रुकने की कोई लग्जरी सुविधा नहीं रही, तो मैं किसी के घर या सरकारी या कंपनी के अतिथि गृह में रुका। पर इन सारी जगहों पर मुझे अच्छी नींद नहीं आई, जबकि काम के घंटे उतने ही थे। ऐसा नहीं था कि ये जगहें होटल्स की तुलना में कम आरामदायक थीं, उनका घर का बना खाना सबसे अच्छे होटलों की तुलना में हमेशा स्वादिष्ट था, लेकिन बावजूद इसके यहां कोई भी 'एक्सपायर्ड' उत्पादों पर ध्यान नहीं देता था।
ताज्जुब हो रहा है कि ये एक्सपायर्ड उत्पाद क्या हैं? मैं समझाता हूं। महंगी होटलों के अलावा ज्यादातर औसत होटलों, अतिथि गृहों में मैंने देखा है कि तकियों और तकियों के कवर पर भी अक्सर सालों केे लगे पसीने के भूरे-पीले दाग दिखते हैं, जैसे कोई मॉडर्न आर्ट हो। कुछ जगह रुई में गुठले पड़ने से ये सख्त हो जाती हैं। चूंकि ये अतिथि गृह पेशेवर आदर-सत्कार बिजनेस में नहीं हैं, जिनके काम में मेहमानों की अच्छी नींद का इंतजाम भी शामिल है, इसलिए वे उम्र पूरी कर चुकीं उन तकियों-गद्दों पर ध्यान ही नहीं देते- एक बार खरीदे तो जिंदगी भर के लिए हो जाते हैं।
मैंने कई बड़े लोगों को हमेशा देखा है कि यात्रा के दौरान उनकी टीम उनके आराम के लिए कमरों की सुख-सुविधाओं का जायजा लेती है। कई लोगों को लगता है कि ये लोग अपनी हैसियत दिखाते हुए स्टाइल का दिखावा करने की कोशिश कर रहे हैं। पर बात यह है कि वे चाहते हैं कि नींद अच्छी आए, क्योंकि वे कई लोगों से ज्यादा मेहनत करते हैं।
याद रखें अधिकांश चीजों की तरह तकिए-गद्दे भी एक समय तक ही चलते हैं। उनको जैसे रखते हैं और जितना इस्तेमाल होता है, उस हिसाब से वे चपटे होना शुरू हो जाते हैं। एक मानक तकिया ठोस होना चाहिए पर कड़ा नहीं, नरम होना चाहिए लेकिन पिलपिला नहीं। मोटा इतना कि सिर धंसने से बचा ले और मुलायम इतना कि गर्माहट और आराम दे। तकिया रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने में सहायक होनी चाहिए।
सही ठोसपन और कोमलता के बिना तकिया और गद्दा अच्छा करने के बजाय नुकसान ज्यादा करता है, जैसे सर्वाइकल का दर्द और डिस्क का सरकना। जबकि तकिए का ठोस होना उपयोग करने वाले की प्राथमिकता पर निर्भर करता है, पर सही ठोसपन सबके लिए लागू होता है। घर पर मैं हर दो साल में एक बार अपना तकिया बदलता हूं, जैसा विशेषज्ञ सलाह देते हैं और गद्दा तब बदलता हूं, जब मुझे लगातार लगने लगता है कि अच्छी नींद नहीं आ रही है। फंडा यह है कि याद रखें गद्दे, तकिए, चादर और यहां तक कि टॉवल की भी एक एक्सपायरी तारीख होती है। आपको जब सही लगे, अच्छी नींद के लिए उन्हें एक समयांतराल पर बदलते रहना चाहिए।