पूर्व अटार्नी जनरल और पद्म विभूषण सोली सोराबजी के निधन से न्याय जगत में ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे कभी भरा नहीं जा सकता। अफसोस उनका निधन भी कोरोना से हुआ है। वह 1989 से 90 और फिर 1998 से 2004 तक देश के महाधिवक्ता रहे। वह उन लोगों में से थे जिनकी भारत के संवैधानिक कानूनों के विस्तार में प्रमुख भूमिका रही। उनके निधन से हमने भारतीय कानून का एक ऐसा प्रतीक खो दिया जो एक व्यावसायिक विशेषज्ञ भी थे। उन्होंने अपना करियर 1953 में बाम्बे कोर्ट से शुरू किया था। वह केशवानंद भारती केस में नाना पालकीवाला की मदद के लिए प्रसिद्ध हुए थे। अपने लम्बे करियर में सोराबजी ने कई स्वतंत्रत परीक्षण भी किए। मानवाधिकारों के ध्वजवाहक वकील के तौर पर मशहूर सोराबजी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1997 में नाइजीरिया के लिए विशेष प्रतिवेदक नियुक्त किया गया था, ताकि वहां की मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट मिल सके। वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा से जुड़े कई मामलों में शामिल रहे और उन्होंने समाचार पत्रों और अन्य प्रकाशनों पर सेंसरशिप आदेशों और प्रतिबंधों को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसलिए मीडिया जगत में उन्हें फ्रीडम ऑफ़ प्रैस का चैम्पियन माना जाता है।