है तो यह भी सांड
है तो यह भी सांड और विशालकाय भी, लेकिन अपने कर्म और धर्म में फेरबदल नहीं करता। आज के माहौल में सांड को भी अपनी इज्जत के लिए भागना पड़ रहा है
है तो यह भी सांड और विशालकाय भी, लेकिन अपने कर्म और धर्म में फेरबदल नहीं करता। आज के माहौल में सांड को भी अपनी इज्जत के लिए भागना पड़ रहा है। हमारे यहां कुछ सांड या तो उत्तरप्रदेश के चुनाव से भागकर पहुंच गए हैं या उत्तर प्रदेश के सांडों की नस्ल में घूम रहे हैं। वैसे सांडों ने भी अपने लिए क्षेत्र चिन्हित कर रखे हैं। आवारगी के हालात में भी अपने डील-डौल के मुताबिक गली, मोहल्ला व खेत चुनने की महारत दरअसल सांड ने भी इनसान के साथ रहते हुए ही हासिल की है। मैं जिस सांड का जिक्र कर रहा हूं, यह भी हमारी तरह ही इज्जत को मारा-मारा घूम रहा है। यह उत्तर प्रदेश में जब तक राजनीति की तरह खेत चुग सकता था, चुग लिया। अब सांड चाहता है कि देश को बताया जाए कि वह भी काम का है। पिछले चुनाव में इसे 'नंदी-नंदी' पुकारा गया तो इस भ्रम में आ गया था कि वह कोई धार्मिक मसला है। इसी भ्रम मंे सांड इस बार भी रहा कि लोग नंदी समझ कर इसे चुनाव से निकलने का मौका दे दंेगे, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में बेचारा 'सांड' फंस गया। सुबह-सुबह लंबी यात्रा के बाद यह हमारे पहाड़ी प्रदेश पहुंच गया क्योंकि चुनाव में वहां गर्मी हटा देने का डर फैल रहा था।