तो क्या राहुल गांधी कश्मीरी हैं या फिर… दिल्ली वाले, यूपी वाले, मुंबई वाले या गुजरात वाले हैं?
कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के ‘बड़े’ नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मंगलवार को श्रीनगर की यात्रा पर गए,
अजय झा | कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के 'बड़े' नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मंगलवार को श्रीनगर की यात्रा पर गए, पार्टी के नवनिर्मित कार्यालय का उद्घाटन किया और भाषण भी दिया. कश्मीर की उनकी यात्रा से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, और हुई भी नहीं. अगर होती तो प्रशासन इसकी अनुमति ही नहीं देता. यानि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी भले ही जनता के बीच यह ना माने कि जम्मू और कश्मीर की स्थिति केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद सुधरी है, यह अलग बात है कि उनकी वापसी होते-होते आंतकवादियों ने पुलिस के ऊपर ग्रेनेड से हमला करके अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी. शुक्र है कि ऐसा कुछ उनकी सभा में नहीं हुआ.
लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या अभी उनका सभा करने का फैसला सही था, वह भी तब जबकि अभी हाल फिलहाल में प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) नहीं होने वाले हैं. सरकार ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि चुनाव नए परिसीमन प्रक्रिया की समाप्ति के बाद ही होगा. संभव है कि 2022 के आखिरी महीनों में जब हिमाचल प्रदेश में चुनाव होगा, तब ही जम्मू और कश्मीर (Jammu And Kashmir) में भी चुनाव हो. पर जिस गर्म जोशी से राहुल गांधी ने श्रीनगर में भाषण दिया, प्रतीत हो रहा था कि मानो अगले साल की शुरूआत में पांच नहीं बल्कि जम्मू और कश्मीर समेत 6 प्रदेशों में चुनाव होने वाला है.
बिना किसी पद के कांग्रेस का हर फैसला लेते हैं राहुल गांधी
उनकी यात्रा से दो बातें सामने निकल कर आ रही है. कांग्रेस भवन का उन्होंने उद्घाटन किया. ईमारत पर एक पत्थर पर लिखा था "Inaugurated by Shri Rahul Gandhi, Hon'ble MP" उनके पद के बारे में जिक्र करने की जरूरत ही क्या थी, और जब पार्टी ने खुद ही इसका जिक्र कर दिया है तो सवाल बनता ही है कि क्या कांग्रेस पार्टी अब यह बात सरेआम मान रही है कि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के बेताज बादशाह हैं? कांग्रेस पार्टी में किसी भी स्तर पर उनके पास कोई भी पद नहीं है. कांग्रेस पार्टी का मजाक राहुल गांधी ने ही बनाया. अगर पार्टी चलाने की इतनी ही तमन्ना थी तो अध्यक्ष पद से 2019 में इस्तीफा देने की जरूरत ही क्या थी? उनका तो विधिवत पार्टी अध्यक्ष पद के लिए 2017 में चुनाव हुआ था और कांग्रेस पार्टी में किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त हार के बाद गांधी परिवार के किसी सदस्य को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा दे.
कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला उसका स्वयं का था. और जब इस्तीफा दे ही दिया था तो फिर उनका कांग्रेस पार्टी के युवराज से बेताज बादशाह बनने की क्या जल्दी थी. उनके इस्तीफे के कारण उनकी माता सोनिया गांधी को एक बार फिर से पार्टी की कमान संभालनी पड़ी. अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर बने होते तो उन्हें पार्टी में हर फैसला लेने का अधिकार होता. सोनिया गांधी बिना चुनाव के अंतरिम अध्यक्ष पद पर पिछले लगभग दो वर्षों से विराजित हैं, आतंरिक चुनाव होने का कोई आसार भी नहीं दिख रहा है और बिना पद के राहुल गांधी खुलेआम फैसले लेते रहे हैं, चाहे वह पश्चिम बंगाल चुनाव में वामदलों के साथ गठबंधन का रहा हो या फिर पंजाब में बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया जाना. बेहतर यही होता कि वह सोनिया गांधी की किरिकिरी तो नहीं करवाते, क्योंकि फैसले राहुल गांधी लेते हैं और पार्टी की लगातार होती दुर्गति के लिए आधिकारिक रूप से जिम्मेदार सोनिया गांधी को ठहराया जाता है.
रही बात श्रीनगर में कांग्रेस भवन के उद्घाटन की तो सवाल यह है कि उन्होंने उसका उद्घाटन किस हैसियत से किया. जैसे की कांग्रेस भवन की दीवार पर पत्थर पर लिखा है कि उन्होंने उसका उद्घाटन एक सांसद की हैसियत से किया. तो क्या कांग्रेस पार्टी का कोई और सांसद ऐसा कर सकता है? समय आ गया है कि कांग्रेस पार्टी इस बात का खुलासा करे कि किस हैसियत से वह कैसे पार्टी के सभी निर्णय ले रहे हैं और भवन का उद्घाटन भी कर रहे हैं?
कहां के और कौन हैं राहुल गांधी?
अब उनके भाषण पर एक नज़र डालते हैं. लगा जैसे कि वहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाला हैं और उनका प्रयास था कि कश्मीरियों को बताया जाए कि कांग्रेस पार्टी ही उनकी सबसे बड़ी हितैषी है. एक नज़र डालते है कि राहुल गांधी ने कल अपने भाषण में क्या कहा, "आजकल मेरा परिवार दिल्ली में रहता है. दिल्ली से पहले, मेरा परिवार इलाहाबाद में रहता था और इलाहाबाद से पहले मेरा परिवार यहां रहता था. तो मैं ये कह सकता हूं, ज्यादा समय मैं यहां नहीं आया हूं, मगर मैं ये कह सकता हूं कि मैं आपको थोड़ा सा समझता हूं. और पहले मेरे परिवार के लोगों ने भी झेलम का पानी पिया होगा. आपके जो कस्टम्स हैं, आपकी जो सोच है, जिसको हम कश्मीरियत कहते हैं, वो थोड़ी सी मेरे अंदर भी है. जब मैं फ्लाइट में यहां आता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं वापस आ रहा हूं, घर आ रहा हूं."
अब इस बात का फैसला राहुल गांधी ही करें कि उनका परिवार नेहरू परिवार है या फ़िरोज़ गांधी परिवार. जिस तरह से उन्होंने अपने अन्दर कश्मीरियत की बात की, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि वह नेहरू परिवार की बात कर रहे थे. अगर DNA की बात करें तो राहुल गांधी 25 प्रतिशत कश्मीरी हैं, 25 प्रतिशत पारसी और 50 प्रतिशत इटालियन. उनकी दादी इंदिरा गांधी नेहरू परिवार से थी जिनकी शादी एक पारसी युवक फ़िरोज़ गांधी से हुई थी. अब ज़रा फ़िरोज़ गांधी के बैकग्राउंड पर नज़र डालते हैं, यह जानने के लिया कि राहुल गांधी की असली जड़ कहां है.
विकिपीडिया के अनुसार, "फिरोज़ गांधी का जन्म मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम जहांगीर एवं माता का नाम रतिमाई था, और वे मुम्बई के खेतवाड़ी मोहल्ले के नौरोजी नाटकवाला भवन में रहते थे. फ़िरोज़ के पिता जहांगीर किलिक निक्सन में एक इंजीनियर थे, जिन्हें बाद में वारंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नत किया गया था. फिरोज उनके पांच बच्चों में सबसे छोटे थे; उनके दो भाई दोराब और फरीदुन जहांगीर, और दो बहनें, तेहमिना करशश और आलू दस्तुर थीं. फ़िरोज़ का परिवार मूल रूप से दक्षिण गुजरात के भरूच का निवासी है, जहां उनका पैतृक गृह अभी भी कोटपारीवाड़ में उपस्थित है. 1920 के दशक की शुरुआत में अपने पिता की मृत्यु के बाद, फिरोज अपनी मां के साथ इलाहाबाद में उनकी अविवाहित मौसी, शिरिन कमिसारीट के पास रहने चले गए, जो शहर के लेडी डफरीन अस्पताल में एक सर्जन थीं. इलाहबाद में ही फ़िरोज़ ने विद्या मंदिर हाई स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, और फिर ईविंग क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की."
यानि राहुल गांधी अपने आप को मुंबई वाला या फिर गुजरात वाला भी कह सकते हैं. रही उनके अन्दर कश्मीरियत की बात तो इसका कहीं प्रमाण नहीं मिलता है कि नेहरू परिवार कब और क्यों कश्मीर छोड़ कर आया था. उनके पिता के नाना मोती लाल नेहरू का जन्म आगरा में हुआ था और बाद में वह इलाहाबाद में रहने लगे. उस परिवार से सिर्फ जिक्र है किसी राज कौल का जो शायद कश्मीर छोड़ कर मुग़लों के ज़माने में दिल्ली आ गए थे. दिल्ली में मुग़ल शासन काल में, उनकी जो भी मजबूरी रही हो, उनके परिवार ने कौल की जगह नेहरू लिखना शुरू कर दिया. इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. उन दिनों चांदनी चौक के बीचों बीच एक नहर होता था, उसी नहर के पास राज कौल का परिवार रहता था और नहर के पास रहने वाला परिवार नेहरू बन गया, जो जानबूझ कर अपनी कश्मीरियत छुपाने के लिए कौल से नेहरू बन गए थे.
इसकी कोई जानकारी नहीं है कि राज कौल मोती लाल नेहरू के दादा थे या परदादा. अब एक पारसी का पोता जिसे यह पता नहीं कि कौल-नेहरू परिवार कब और क्यों कश्मीर छोड़ कर आया था, कम से कम 300 साल पहले, और वह अपने अन्दर थोड़ी सी कश्मीरियत होने की बात करे तो बात हज़म नहीं होती. सवाल यह भी है कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी और राहुल गांधी सांसद थे तब उनके अन्दर की कश्मीरियत कहां गुम हो गयी थी. क्या मनमोहन सिंह सरकार ने अपने दस वर्षों के कार्यकाल में, जिस पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का पूरा दबदबा होता था, कभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनके घर वापस भेजने के कोशिश की थी?
जम्मू और कश्मीर में अगले वर्ष कभी ना कभी चुनाव होगा ही. अब जम्मू और कश्मीर के लोग ही यह फैसला करेंगे कि राहुल गांधी कितने कश्मीरी हैं और अगर हैं तो उनके अन्दर कितनी कश्मीरियत है. बेहतर यही होगा कि राहुल गांधी कश्मीरियत की जगह सिर्फ भारतीयता की ही बात करें, ताकि कोई इस परिवार का गढ़ ढूंढने की कोशिश ना करे.