संकट का धुआं

कई दिनों से धुएं की चादर आसमान में कायम है। जिस तरह हवा जहरीली होती जा रही है, उससे लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। वायु प्रदूषण के कारण भले कई हों, लेकिन अभी बड़ी वजह पराली का धुआं है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किसान पराली जला रहे हैं और सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं।

Update: 2022-11-08 05:55 GMT

Written by जनसत्ता: कई दिनों से धुएं की चादर आसमान में कायम है। जिस तरह हवा जहरीली होती जा रही है, उससे लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। वायु प्रदूषण के कारण भले कई हों, लेकिन अभी बड़ी वजह पराली का धुआं है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किसान पराली जला रहे हैं और सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। विडंबना यह है कि जहां सभी राज्यों को पराली की समस्या से निपटने के सामूहिक प्रयास करने चाहिए, वहीं सब एक दूसरे पर ठीकरे फोड़ने में लगे हैं।

बताया जा रहा है कि पंजाब में एक ही दिन में पराली जाने के मामलों में सोलह फीसद की वृद्धि हो गई। केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि राजस्थान में इस साल अक्तूबर में पराली जलाने की घटनाओं में एक सौ साठ फीसद का इजाफा हुआ। ऐसा नहीं कि पराली जलाने में किसी एक राज्य का ही योगदान सबसे ज्यादा हो, लेकिन देखने में यह आ रहा है कि पराली को लेकर राज्यों के बीच राजनीति ही ज्यादा हो रही है।

सवाल इस बात का है कि आखिर राज्य इस समस्या का समाधान क्यों नहीं निकाल पा रहे? जबकि सुप्रीम कोर्ट की लगातार सख्ती और निगरानी के साथ केंद्र सरकार, पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि निकाय राज्यों को हिदायत देते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इस मुद्दे पर राज्यों के आला अफसरों की बैठकें भी होती रही हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पराली जलाने की घटनाओं पर लगाम नहीं लग पा रही। इससे तो लगता है कि सरकारें हाथ खड़े कर चुकी हैं। लगता है जैसे कि यह काम राज्यों के बस का रह ही नहीं गया है। वरना क्या कारण है कि राज्य सरकारें किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहीं।

पराली जलाने की मजबूरी को लेकर किसान अब तक जो तर्क देते रहे हैं, उससे साफ हो जाता है कि सरकारों का रवैया ही उन्हें इसके लिए मजबूर करता रहा है। आज भी पंजाब और दूसरे राज्यों में किसानों के सामने बड़ा संकट पराली नष्ट करने वाली मशीनों का है। जिस बड़े पैमाने पर ये मशीनें किसानों को उपलब्ध करवाई जानी चाहिए थीं, लगता है उसमें सरकारें सफल नहीं हुर्इं। फिर, ऐसे किसानों की संख्या काफी बड़ी है जो मशीन खरीदने या किराए पर लेने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में किसानों के सामने पराली जलाने के अलावा और चारा रह भी क्या जाता है?

पराली से वायु प्रदूषण भले कुछ ही समय रहता हो, लेकिन इससे हालात इतने ज्यादा बिगड़ जाते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। पराली के धुएं से जिस तरह लोग बीमार पड़ रहे हैं, वह अपने में कम गंभीर नहीं है। पराली के धुएं से होने वाला वायु प्रदूषण रक्तचाप और सांस संबंधी गंभीर बीमारियों का कारण बनता जा रहा है। न सिर्फ राजधानी दिल्ली में, बल्कि ज्यादातर बड़े शहरों में वायु प्रदूषण की वजह से लोग फेफड़ों की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने का बड़ा कारण वायु प्रदूषण बताया जा रहा है। लेकिन संकट यह है कि पराली को लेकर राज्य राजनीति करने में मगन हैं। अगर इस समस्या से पार पाने के लिए राज्य आपस में मिल कर रणनीति बनाएं और उस पर ईमानदारी से काम करें तो क्या यह कोई मुश्किल काम है?


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