टीकों की कमी के चलते टीकाकरण की धीमी रफ्तार: कोरोना की दूसरी लहर का अनुमान लगा पाने में तंत्र रहा नाकाम
वैसे ही टीकों की तंगी दूर करने के लिए भी कोई सक्षम समिति बने। अब तक ऐसी कोई समिति बन जाती तो संभवत: नतीजे कुछ और होते।
टीकाकरण की सुस्त होती रफ्तार पर हैरानी नहीं। इसके आसार पहले से ही नजर आ रहे थे कि जितनी संख्या में प्रतिदिन टीके लगने चाहिए, उतने नहीं लग पाएंगे, क्योंकि पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध ही नहीं हैं। नि:संदेह इसकी एक बड़ी वजह यही रही कि समय रहते उनकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जा सकी। यदि दिसंबर और जनवरी में ही अग्रिम राशि देकर बड़ी संख्या में टीके के आर्डर दे दिए गए होते तो जो स्थिति बनी, उससे बचा जा सकता था। शायद औरों की तरह टीकाकरण का काम देख रहे लोग भी यह अनुमान लगा पाने में नाकाम रहे कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर इतनी जल्दी और इतने भयंकर रूप में आ सकती है। कायदे से उन्हें संक्रमण की दूसरी-तीसरी लहर का इंतजार करने के फेर में पड़ना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि अन्य देश अपने टीकाकरण अभियान को गति देने में लगे हुए थे। जो गफलत हो गई, उस पर अफसोस करने से कोई लाभ नहीं, लेकिन कम से कम अब तो यह होना चाहिए कि यथाशीघ्र टीके उपलब्ध कराने और टीकाकरण की गति तेज करने की कोई ठोस रूपरेखा बने। इस रूपरेखा को तय कर यह भी स्पष्ट किया जाए कि कितने समय बाद कितने टीके उपलब्ध होंगे, ताकि उनकी आपूर्ति और वितरण को लेकर संशय का माहौल दूर हो।