साठ हजारी
बंबई शेयर बाजार सूचकांक अब साठ हजार के पार निकल गया। आमतौर पर इसका विश्लेषण करते हुए दो बातें जोरशोर से कही जा रही हैं।
बंबई शेयर बाजार सूचकांक अब साठ हजार के पार निकल गया। आमतौर पर इसका विश्लेषण करते हुए दो बातें जोरशोर से कही जा रही हैं। पहली यह कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब पटरी पर आने लगी है। और दूसरी कि अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा लौट रहा है। लोग बाजार में निवेश करने के लिए आने लगे हैं। देखा यह भी जा सकता है कि पिछले आठ-नौ महीनों के दौरान बाजार को संभाले रखने में बड़ी भूमिका छोटे निवेशकों की रही। और इसका एक कारण यह माना जाता है कि पिछली करीब चार छिमाहियों से निवेश के दूसरे विकल्प भी सीमित होते चले गए।
इसलिए छोटे निवशकों के पास तात्कालिक तौर पर शेयर बाजार ही बचा था। इस साल 21 जनवरी को बीएसई सूचकांक पचास हजार को पार कर गया था। 13 अगस्त को यह पचपन हजार पर आ गया और अब डेढ़ महीने में ही यह पांच हजार अंक चढ़ता हुआ साठ हजार के पार निकल गया। सूचकांक का चढ़ता ग्राफ इस बात का भी संकेत है कि अभी रुख तो तेजी का ही रहने वाला है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि साल के अंत तक यह सत्तर हजार के पार भी चला जाए तो हैरानी नहीं। हालांकि यह शेयर बाजार है और इसमें जिस तेजी से बाजार चढ़ता है, उसके नीचे आने में भी देर नहीं लगती।
गौरतलब है कि पिछले साल मार्च के बाद बाजार में दो गुने से भी ज्यादा का उछाल आ चुका है। इस साल अगस्त से अब तक पंद्रह फीसद की वृद्धि दर्ज हुई। यह ऐसे वक्त में हुआ जब महामारी कहर बन कर बरपी। हालांकि दुनिया के दूसरे देशों में शेयर बाजार अभी भी वृद्धि के संकेतकों से दूर हैं। इसलिए भी विदेशी निवेशकों ने भारत के बाजार में भारी निवेश किया है। अनुमान है कि पिछले डेढ़ साल में विदेशी निवेशकों ने पैंसठ हजार करोड़ रुपए भारतीय बाजार में लगाए।
इससे छोटे निवेशकों में तात्कालिक भरोसा पैदा हुआ। और इसीलिए पिछले कुछ महीनों में कई नई कंपनियां भी बाजार में उतरीं। खुदरा निवेशकों से जुड़े आंकड़े भी बता रहे हैं कि शेयरों और म्युचुअल फंडों के जरिए कमाई करने को लेकर छोटे निवेशक किस तरह से आगे आ रहे हैं। भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) की मानें तो हर महीने करीब बारह लाख लोग डीमैट खाता खुलवा रहे हैं। जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा चार लाख का ही था। जाहिर है, शेयर बाजार में छोटे निवेशकों की भागीदारी अचानक बढ़ गई है।
गौर किया जाना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का एकमात्र कारण महामारी ही नहीं रही। पहले की कई तिमाहियों से ही अर्थव्यवस्था में सुस्ती चली आ रही थी। ऐसे में शेयर बाजार में कुछ महीनों से लगातार तेजी का रुख उम्मीदें बंधाता है। हालांकि शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाले अनेक कारक होते हैं, ऐसे में जोखिम भी कम नहीं है।
कई विशेषज्ञ और बाजार विश्लेषक इस खतरे को भांप भी रहे हैं। छोटे निवेशकों के लिए जोखिम का पक्ष इसलिए भी महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि वे अच्छे रिटर्न की उम्मीद में अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा बाजार में लगाते रहते हैं। ऐसे में भारी और लंबे समय की गिरावट को झेल पाना उनके लिए मुश्किल होता है। इसलिए निवेशकों के लिए यह वक्त सावधानी बरतने का है। इस वक्त भारतीय शेयर बाजार दुनिया के बाजारों के सामने आगे बढ़ता भले ही दिख रहा हो, लेकिन टिके रहने की एक ही शर्त है कि बाजार में नए और छोटे निवेशक लगातार बढ़ते रहें और वे बाजार की चालाकियों का शिकार न बनें।