भारत की आलोचना से पहले सिंगापुर के पीएम को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए था
सिंगापुर के पीएम को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए था
अरुप घोष .
सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग (singapore pm Lee Hsien Loong) के संसद में दिए गए भाषण को भारत के विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार पर निशाना साधने के लिए बतौर एक हथियार इस्तेमाल किया है. लेकिन भारत के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने से पहले लूंग को खुद के देश के बारे में गहन चिंतन करना चाहिए था. गौरतलब है कि सिंगापुर में मानवाधिकारों का बहुत खराब रिकॉर्ड है, प्रेस की आज़ादी (Freedom of Press) के खिलाफ वहां कठोर नीति है, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कैद कर बंदी बना लिया जाता है, कैदियों को बिना किसी मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रखा जाता है और शारीरिक दंड का भारी इस्तेमाल होता है.
सिंगापुर की संसद में एक बहस के दौरान, प्रधान मंत्री ली ने कहा, "…मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेहरू का भारत एक ऐसा देश बन गया है, जहां लोकसभा में लगभग आधे सांसदों के खिलाफ बलात्कार और हत्या के आरोप सहित कई आपराधिक आरोप लंबित हैं. हालांकि यह भी कहा जाता है कि इनमें से कई आरोप राजनीति से प्रेरित हैं."
ली के देश में मानवाधिकारों की हालत बेहद खराब
ली जिस मुद्दे को आसानी से छिपा गए वह था उनके अपने ही देश में मानवाधिकारों की दयनीय हालात. तो, वह इसके बारे में क्या कर रहे हैं ?
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में सिंगापुर दो पायदान नीचे आ गया है. पहले इसका रैंक 158 था जो अब 160 के रैंक पर है. इसे "ब्लैक" या 'वेरी बैड' (बहुत खराब) श्रेणी में रखा गया है. इसकी रैंकिंग पिछले वर्षों से लगातार खराब होती रही है. यह 2019 में 151वें और 2020 में 158वें स्थान पर था.
अप्रैल 2021 में प्रकाशित ये इंडेक्स विभिन्न संकेतकों जैसे मीडिया की स्वतंत्रता, विधायी ढांचे और मीडियाकर्मियों के व्यवहार के आधार पर देशों को रैंक देता है. सिंगापुर का मौजूदा स्कोर उसे मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे एशियाई देशों से नीचे रखता है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, सिंगापुर की जनसंख्या की तुलना में मृत्युदंड देने की रफ्तार दुनिया में सबसे अधिक है. 1991 से 2003 के बीच 50 लाख की आबादी पर करीब 400 अपराधियों को फांसी पर लटका दिया गया. ड्रग विरोधी अभियान के नाम पर सिंगापुर इसे जायज ठहराता है.
Monitor.civicus.org की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, मानवाधिकार संगठनों जैसे CIVICUS और FORUM-ASIA ने सिंगापुर सरकार से (मई 2021 में) "नागरिक स्वतंत्रता की अड़चनों को दूर करने" का आग्रह किया है.
समूहों ने सरकार से उन लोगों की रक्षा करने को कहा है जो मानवाधिकारों के लिए लड़ते हैं. साथ ही इन समूहों ने मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करने और मानवाधिकार संधियों की पुष्टि करने का आह्वान किया है.
शांतिपूर्ण विरोध के लिए अवमानना का सामना करना पड़ा
जोलोवन व्हाम को अपनी सक्रियता के लिए उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. उन्हें पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत आरोप और शांतिपूर्ण विरोध के लिए अवमानना का सामना करना पड़ा. अगस्त 2020 में उन्होंने जुर्माना भरने के बजाय दस दिन की जेल की सजा काटने का फैसला लिया. उनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वे एक इनडोर चर्चा में शामिल हुए जिसमें हांगकांग के कार्यकर्ता जोशुआ वोंग भी थे.
पुलिस ने जून 2020 में पीपुल्स एक्शन पार्टी के सांसद लुइस एनजी के सोशल मीडिया पोस्ट की जांच की. इस पोस्ट में उन्होंने यिशुन पार्क हॉकर सेंटर में फेरीवालों के बगल में एक स्माइली चेहरे के साथ 'सपोर्ट देम' का चिन्ह दिखाते हुए तस्वीरें डाली थीं. यह दिखाता है कि कैसे एक सांसद भी किसी को समर्थन नहीं दे सकता जब तक कि इसे राजनीतिक रूप से सही नहीं माना जाता.
सिंगापुर सरकार के आलोचकों को हमेशा ही परेशान और बदनाम किया गया है. मानवाधिकार समूहों ने "सरकारी अधिकारियों को दी गई पूरी आज़ादी" पर चिंता व्यक्त की है. ये अधिकारी ही ये तय करते हैं कि कौन सी सामग्री "गलत सूचना" है और कौन सी 'फर्जी समाचार'. कानून में अभिव्यक्ति, राय रखने और सूचना की स्वतंत्रता का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखा गया है.
पीएम लूंग पर लिखे लेख को साझा करने पर ब्लॉगर पर पेनल्टी
एक काफी हास्यास्पद मामला तब सामने आया था जब पीएम लूंग पर छपे एक लेख को ऑनलाइन साझा करने के लिए एक ब्लॉगर को डैमेज का भुगतान करने का आदेश दिया गया था. मार्च 2021 में, सिंगापुर के उच्च न्यायालय ने ब्लॉगर लेओंग सेज़ हियान को सिविल डिफेमेशन के लिए लूंग को 133,000 सिंगापुर डॉलर (USD 100,000) का भुगतान करने का आदेश दिया. लेओंग पर मुकदमा दायर किया गया था क्योंकि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर एक लेख का लिंक साझा किया था, जिसमें ये दावा किया गया था कि लूंग कथित तौर पर 1मलेशिया डेवलपमेंट बरहाद (1MDB) भ्रष्टाचार घोटाले में फंसे हुए हैं और इसको लेकर उनके खिलाफ जांच चल रही है.
5 मार्च, 2021 को स्वतंत्र समाचार आउटलेट न्यू नारतिफ के संस्थापक और एमडी पीजे थम से एक बार फिर पूछताछ की गई (बल्कि परेशान किया गया). न्यू नारतिफ के खिलाफ इसलिए जांच चल रही है क्योंकि उन्होंने चुनाव से पहले जुलाई 2020 में फेसबुक पर PAID ADS का प्रकाशन किया था.
स्वतंत्र पत्रकारों और एक्टिविस्टों को डराना धमकाना
पीजे थम ने इसे 'स्वतंत्र पत्रकारों और एक्टिविस्ट को खामोश कराने और डराने-धमकाने के लिए बनाया गया उत्पीड़न का एक सतत अभियान' कहा. थम से चार घंटे तक पूछताछ की गई और उनका लैपटॉप और फोन ले लिया गया.
यह हमें याद दिलाता है कि चीन के इशारे पर हांगकांग में क्या हो रहा है. एक्टिविस्ट को परेशान कर जेल में डाला जा रहा है. जून 2020 में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के लागू होने के बाद से लगभग 20 मीडियाकर्मियों और अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया या हिरासत में लिया गया है. इन लोगों में हांगकांग में ऐपल डेली के संस्थापक जिमी लाई जैसे हाई-प्रोफाइल लोग भी शामिल हैं. निस्संदेह, सिंगापुर कोई अलग देश नहीं है.
लूंग ने लोकसभा सदस्यों के बारे में अपने दावे के लिए किसी विशिष्ट स्रोत का हवाला नहीं दिया. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वे एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की 2019 की एक रिपोर्ट का जिक्र कर रहे थे, जिसमें ये पाया गया था कि उस साल आम चुनाव जीतने वाले 539 उम्मीदवारों में से करीबन 233 (या 43 प्रतिशत) को आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा था.
यहां जो बात संदेहास्पद है वह यह है कि भारतीय राजनेताओं का एक बड़ा हिस्सा कपटपूर्ण या झूठे आरोपों का सामना करता रहता है. इसके अलावा, अदालतें कहती हैं कि एक राजनेता चुनाव लड़ सकता है और तब तक निर्वाचित हो सकता है जब तक कि उसके आरोप साबित न हो जाए. यानी अगर किसी व्यक्ति को आपराधिक रूप से दोषी ठहराया जाता है तो वो चुनाव नहीं लड़ सकता. इस पृष्ठभूमि के आधार पर ये कहा जा सकता है कि सिंगापुर के प्रधानमंत्री लूंग भारत को बदनाम करने की कोशिश में सार्थक तर्क नहीं पेश कर सके.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)