देखने की व्याधि

हिंदी चैनलों के आंगन में अजीबो-गरीब धारावाहिकों की बाढ़-सी आ गई है। कभी-कभी लगता है कि एक बार को हम महामारियों से तो बच सकते हैं, लेकिन इन धारावाहिकों से कतई नहीं।

Update: 2022-04-14 05:29 GMT

सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त': हिंदी चैनलों के आंगन में अजीबो-गरीब धारावाहिकों की बाढ़-सी आ गई है। कभी-कभी लगता है कि एक बार को हम महामारियों से तो बच सकते हैं, लेकिन इन धारावाहिकों से कतई नहीं। ये धारावाहिक छोटे-छोटे आफती बम-से लगते हैं। कभी किसी के घर में बहू-सास के बीच फट जाता है, तो कभी ननद-भाभी के बीच। कभी जेठ-भावज के बीच, तो कभी दो बहुओं के बीच। कभी पड़ोसन और पति के बीच में, तो कभी पति-पत्नी के बीच ही फट जाता है। कब, क्या, कैसे, कहां और क्यों हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऊपर से बहू, सास की नागिन जैसी आंखें बार-बार बड़ी करके दिखाना, एक ही दृश्य को बार-बार बम धमाके वाले पार्श्व संगीत के साथ दर्शाना कमजोर दिल वालों के लिए तो मौत का सबब बन जाता है।

छोटे परदे की चुहलबाजी करने वाले ये धारावाहिक अच्छे-खासे घरों के बीच नारद की भूमिका निभाते हैं। घर-घर की पंचायत में कहीं न कहीं इनका हाथ होता है। बहू सास को पटकनी कैसे दे या फिर सास बहू को कैसे नाकों चने चबवाए के प्रशिक्षण केंद्र बनते जा रहे हैं। कोई तीन महीने इन धारावाहिकों को लगातार देख ले, तो भगवान भी आकर उसके घर की आग नहीं बुझा सकता।

अगर आप इन छोटे-छोटे हिंदी धारावाहिकों के बमों से कुछ दिन दूर रह कर बाद में जुड़ते हैं, तब तो आपकी खैर नहीं। 'अ' का पति 'ब' के साथ और 'स' की पत्नी 'द' के साथ दिखाई देगी। यह देख आपको अपने बाल नोचने का मन करेगा। मगर कमाल की बात यह कि बिना सिर-पैर के धारावाहिकों को देखने वाले नशेड़ी-गंजेड़ी से भी ज्यादा दीवाने होते हैं। जब तक अपना पसंदीदा धारावाहिक देख नहीं लेते, तब तक किसी का गले के नीचे भोजन नहीं उतरता, तो किसी का चाय-पानी।

नुक्कड़ पर चाय की दुकान वाला जितनी चाय को नहीं उबालता, उतना ये धारावाहिक वाले एक ही दृश्य को इतना लंबा खींच कर हमें उबाल देते हैं कि पूछो ही मत। अजीबो-गरीब वेशभूषा वाले पात्र, वास्तविकताओं से कोसों दूर भागने वाली कहानियां, रिश्तों की फूहड़ता दर्शकों की नाक में दम कर देते हैं। अब तो आधे से ज्यादा कोर्ट-कचहरी के मामले इन्हीं धारावाहिकों की देन हैं। दुअर्थी संवाद, कदम-कदम पर अश्लीलता की भरमार और अनैतिक संबंधों की परोसी थाली में मूल्यहीनता निरोगी को रोगी बना कर छोड़ता है। हिंदी के छोटे-छोटे धारावाहिक बम मारपीट, लूटपाट, खूनखराबा, धोखाधड़ी, संबंध विच्छेद, अनैतिक संबंध, फूहड़ता, बड़ों की अमर्यादा और भाषा का मजाक ऐसे दिखाते हैं जैसे उनके घर की खेती हो। सच्चाई तो यह है कि ये धारावाहिक प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में पागल बनाने की दुकानें हैं।

ये धारावाहिक और इनके किरदार हमारे स्वाथ्य पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। वास्तविकता तो यह है कि हम टीवी धारावाहिकों के किरदारों से मानसिक और भावनात्मक रूप से इस कदर जुड़े होते हैं कि उनकी खुशी में खुश हो जाते हैं, और उनके दुख के वक्त खुद को भी दुख के समंदर में डुबो देते हैं। हम परोक्ष तौर पर खुद को उनकी जगह रख कर देखते हैं और खुद को मानसिक रूप से क्षति पहुंचाते हैं। यह जानते हुए भी कि ये किरदार वास्तविक नहीं हैं और उनकी भावनाएं अभिनय मात्र हैं, हम उन किरदारों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। इस जुड़ाव का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर होता है। जब हम कोई फिल्म देखने जाते हैं, तब भी यही होता है। कई लोग भावनात्मक दृश्य के आने पर रोने लगते हैं।

टीवी देखना किसे पसंद नहीं होता। मनोरंजन और समय बिताने का सबसे सरल और ज्यादातर लोगों का पसंदीदा तरीका ही धारावाहिक होते हैं। पर टीवी देखना जितना मजेदार है, उतना ही खतरनाक भी हो सकता है। क्योंकि टीवी देखने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। जी हां, भले यह जान कर हैरानी हो, लेकिन यह बिल्कुल सच है। दरअसल, टीवी देखने से होने वाली बीमारियों का संबंध इस बात से है कि आप टीवी पर क्या देख रहे हैं। अगर आप टीवी पर हास्य धारावाहिक देखते हैं, तब तो ठीक है, पर आपराधिक, भूतिया, डरावने या फिर रुलाने वाले लंबे-लंबे धारावाहिक देखने का शौक रखते हैं, तब तो यह आपके लिए बेहद हानिकारक है।

इस तरह की चीजें टीवी पर देखना आपके दिमाग और अवचेतन मन पर सीधा प्रभाव डालता है। आपको तनाव और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का रोगी बना सकता है। भले आपको यह बात थोड़ी अजीब लगे, लेकिन बात बिल्कुल सच है। अच्छी और बुरी परिस्थितियां, सुख और दुख के रूप में हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं। अगर सोच कर देखें कि यह स्थिति निर्मित कैसे होती है, तो उसका एक उत्तर ये धारावाहिक भी हो सकते हैं। भगवान ने देखने के लिए दो आंखें दी हैं। इनसे अच्छा-अच्छा देखने की आदत डालिए, न कि ऐसा कुछ, जिसे देख कर आंखों के साथ-साथ स्वास्थ्य भी बिगड़ जाए।


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