Shri Krishna Janmabhoomi Case : प्रमाण से हल होने वाले अयोध्या, काशी, मथुरा के मुद्दे को राजनीति ने विवादित बना दिया

श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Shri Krishna Janamabhoomi) की 13.37 एकड़ भूमि में जिस जगह पर ईदगाह (Shahi Mosque Eidgah) मैदान है

Update: 2022-05-20 13:13 GMT

बिपुल पांडे |

श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Shri Krishna Janamabhoomi) की 13.37 एकड़ भूमि में जिस जगह पर ईदगाह (Shahi Mosque Eidgah) मैदान है, उसे भगवान कृष्ण का जन्मस्थान और मंदिर का गर्भगृह बताया जा रहा है. रंजना अग्निहोत्री समेत 6 कृष्णभक्तों ने इसे लेकर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका दाखिल की है और मांग की है कि यह भूमि कृष्ण जन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए. यह याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली गई है, जिससे उम्मीद जताई जा रही है कि ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) की तरह मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद का भी सर्वेक्षण कराया जाए. अगर ऐसा किया जाता है तो एक पक्ष को यह स्वाभाविक तौर पर खटकेगा. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि देश की राजनीति ने अयोध्या, काशी, मथुरा के मुद्दे को विवादित बना दिया है, जबकि ये प्रमाण से हल होगा. अगर राजनीति से अलग हटकर देशहित को देखा जाए तो अधूरे-अधूरे धाम से पूरे-पूरे धाम की ओर बढ़ना हितकर भी होगा और श्रेयस्कर भी होगा

ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग होने का सच क्या है?
ज्ञानवापी मस्जिद में 14 से 16 मई के बीच हुए सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी कोर्ट में पेश कर दी गई है. इस रिपोर्ट की EXCLUSIVE कॉपी टीवी9 भारतवर्ष के पास मौजूद है. जिसमें बताया गया है कि मस्जिद में जगह-जगह हिंदू चित्र मिले हैं. डमरू, घंटी, कलश, फूल की आकृतियां मिली हैं. लेकिन मस्जिद के वजूखाने में मौजूद जिस आकृति को शिवलिंग बताया जा रहा है, उसको लेकर रिपोर्ट में क्या कहा गया है, ये समझने की जरूरत है. वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद से जिस दिन से वजूखाने की तस्वीरें सामने आई हैं. हिंदू पक्ष ये दावा करने लगा है कि जिस आराध्य का उसे साढ़े तीन शताब्दी से इंतजार था, वो बाबा मिल गए हैं. वो वजूखाने के कुंड में मौजूद हैं. जबकि दूसरा पक्ष ये दावा कर रहा है कि वजूखाने के कुंड से निकली गोल आकृति एक फव्वारा है, जो वजूखाने की शोभा बढ़ाता है.
इन दावों के बीच कोर्ट की सर्वे टीम ने कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर जिस शिवलिंग के होने का दावा किया जा रहा है. उसकी खोज में सर्वे टीम को दो दिन लगे. रिपोर्ट में लिखा गया है कि 15 मई को सर्वे के दौरान विश्वनाथ मंदिर के वकील रवि कुमार पांडेय ने टीम को वजूखाने में पानी के छह इंच नीचे एक कुआं जैसा आकार दिखाया. वहां पहुंचकर देखने पर पता चला कि ये कुंड है, जो 3 फीट गहरा है और पूरी तरह पानी से भरा हुआ था. इस कुंड में सैकड़ों मछलियां तैर रही थीं और उसके तीन तरफ वजू करने के लिए 10-10 पानी के नल लगे हुए थे. इसकी जांच के लिए नगर निगम के कर्मचारी सूरज को कुंड के पास भेजा गया और सूरज ने जब कुंड के अंदर हाथ डाला तो उसके नीचे शिवलिंग के आकार की गोल पत्थर की आकृति का पता चला.
वैसे तो सर्वे की ये फाइंडिंग सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन उसी दिन से कहा जाने लगा कि बाबा मिल गए हैं. वो मस्जिद के उस वजूखाने में प्रतीक्षा कर रहे हैं. जिसकी अगले दिन की सर्वे रिपोर्ट कहती है कि 16 मई को जांच के लिए कुंड का पानी कम कराया गया, दो फीट पानी छोड़ दिया गया ताकि मछलियां जीवित रहें. पानी कम होने के बाद कुंड के बीचों बीच 2.5 फीट लंबी गोल आकृति दिखाई दी. सर्वे टीम ने इस बात को खास तौर पर रिपोर्ट की है कि इसके टॉप पर कटा हुआ गोलाकार डिजाइन का अलग सफेद पत्थर दिखाई पड़ा (जो इसे फव्वारे की शक्ल देता है). शिवलिंग की आकृति के बीच आधे इंच से भी कम का गोलाकार छिद्र मिला, जिसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहरा पाया गया. इन परिस्थितियों में सर्वे टीम की राय बंट गई. रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि सर्वेक्षण के दौरान इसे वादी पक्ष ने शिवलिंग कहा और प्रतिवादी पक्ष ने फव्वारा बताया.
अंजुमन इंतिजामिया के मुंशी ऐजाज मोहम्मद ने पूछे जाने पर बताया कि ये फव्वारा 20 साल से बंद है. बाद में इसे घटाकर 12 साल कर दिया. लेकिन रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस आकृति के बीचों बीच सिर्फ एक ही छिद्र मिला जो 63 सेंटीमीटर गहरा था. इसके अलावा किसी भी साइड या किसी भी स्थान पर कोई दूसरा छिद्र नहीं मिला. फव्वारे के लिए पाइप जैसी चीजें घुसाने के लिए कोई जगह नहीं मिली, जिसकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई गई. यानी सर्वे टीम ने ये फाइंडिंग देने की कोशिश की है कि वजूखाने में मिला गोल आकार का पत्थर फव्वारा कम, शिवलिंग ज्यादा लगता है. जिसे एक फव्वारे की शक्ल देने की कोशिश की गई है. उसके ऊपर एक सफेद पत्थर से अलग डिजाइन बनाया गया है और उसमें 63 सेंटीमीटर का छिद्र तो किया गया है लेकिन अगर वो फव्वारा रहा होता तो उसका दूसरा सिरा बंद ना मिलता. अगर फव्वारे से पानी निकलने का रास्ता बनाया गया है तो कहीं पर पानी जाने का रास्ता भी बना होता.
ज्ञानवापी में डमरू, घंटी, कलश, फूल की आकृतियां मिली हैं
14 मई की सर्वे रिपोर्ट की कॉपी में लिखा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में दीवार पर 3 फीट ऊपर पान के पत्ते के आकार की फूल की आकृति बनी है. तहखाने में प्राचीन कला के 4-4 खंभे हैं, इन पिलर्स पर फर्श से लेकर छत तक आकृतियां बनी हैं. तहखाने की पिलर्स पर घंटी कलश और फूल की आकृतियां बनी हुई हैं. एक खंभे पर प्राचीन हिंदी में सात लाइनें लिखी हुई थीं, जो पढ़ने योग्य नहीं थीं और जिनको पढ़ने के लिए अलग से विशेषज्ञ को हायर करने की जरूरत है. तहखाने में बने कमरे के अंदर 3 चौकोर आकृतियां पाई गईं, जिन्हें प्रतिवादी पक्ष ने कब्र बताया, जबकि वादी पक्ष ने उसके चबूतरा होने का दावा किया. मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर सूंड की टूटी हुई कलाकृतियां, स्वास्तिक, त्रिशूल और पान के चिन्ह पाए गए. इसके साथ ही दीवार पर घंटी जैसी कलाकृतियां भी खुदी हुई पाई गईं, जो प्राचीन भारतीय मंदिरों की शैली की प्रतीत होती हैं. उस दिन की फाइंडिंग के बाद सर्वे टीम ज्ञानवापी में अगले दिन वापस लौटी.
15 मई की सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि उस दिन निरीक्षण करने पर मस्जिद के तीसरे गुंबद के नीचे के पत्थर पर फूल, पत्ती और कमल के फूल की आकृतियां मिलीं. वादी पक्ष ने दावा किया कि ये मंदिर का शिखर है, जिसके ऊपर गुंबद बनाया गया है, जिसे प्रतिवादी पक्ष ने खारिज कर दिया. बड़ी मीनार के नीचे मंत्र जैसा लिखा हुआ देखा गया है, जिसकी सत्यता किसी एक्सपर्ट से साबित करानी होगी. मुख्य मस्जिद के अंदर जहां पर नमाज अदा की जाती है, उसका मुआयना करने पर उसकी दीवार के स्विच बोर्ड के ठीक नीचे त्रिशूल की आकृति खुदी हुई पाई गई. मस्जिद के अंदर की दीवार पर हाथी के सूंड़ जैसी आकृति देखी गई. मुख्य गुंबद के नीचे टंगे कैलेंडर को हटाने पर उसके पीछे स्वास्तिक का चिन्ह छपा दिखा. उत्तर दिशा के बादहूं मस्जिद की दीवार पर तीन डमरू के निशान दिखे. इन चिन्हों को देखने के बाद सर्वे टीम ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर से प्रचूर मात्रा में प्रमाण मिले हैं.
सर्वे रिपोर्ट से आगे की समस्या क्या है?
अगर आज की काशी को देखें तो हिंदुओं के अति महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक धाम है, बाबा विश्वनाथ धाम, जो आज भी अधूरा नजर आता है. इस मंदिर का विस्तार ज्ञानवापी मस्जिद तक दिखता है. और क्यों दिखता है, ये एक खुला हुआ इतिहास है. पर तथाकथित तौर पर इसे अति संवेदनशील समस्या बना दिया गया है. ताकि इसका कोई तार्किक और सरल हल ना निकल सके. समस्या यह है कि हिंदुस्तान में हर समस्या को उन्माद में बदल दिया जाता रहा है और इस बार भी वही दिख रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे कार्य शुरू होते ही देश के कोने-कोने से मंदिर पर मस्जिद बने होने के दावे उठने लगे हैं. एक ऐसा कोलाहल सुनाई देने लगा है, जो देश के हित में नहीं है. इस कोलाहल में से सत्य को एकत्र करने की जरूरत है और दोनों स्टेक होल्डर्स को बैठकर विचार-विमर्श करने की जरूरत है. इस विचार-विमर्श से ही दोनों पक्ष की आस्था का ऐतिहासिक, सामाजिक, न्यायिक और संवैधानिक हल निकल सकता है.
ये सभी मानते हैं कि दो अधूरे से दो पूरा बेहतर होगा. लेकिन ये उन्माद ही है जो अधूरे को पूरा नहीं होने देता. यानी देश के महत्वपूर्ण तीर्थों में दिखने वाली आधी-आधी आस्था को पूर्ण करने की आवश्यक्ता है. और यह तभी संभव है जब कोई भी एक स्टेक होल्डर, त्याग करने को तैयार हो. प्रश्न ये उठता है कि ये त्याग कौन करेगा? आस्था के पैमाने पर हिंदू या मुस्लिम, कौन सा स्टेक होल्डर पूरा भाग लेगा? इसका उत्तर AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के बयानों में नहीं ढूंढा जा सकता. इसका उत्तर संविधान में ढूंढा जाना चाहिए. जो संविधान देश के हर नागरिक को समानता का अधिकार देता है. ज्ञानवापी मस्जिद में मिले साक्ष्यों ने देश को आगे बढ़ने की नई दिशा दी है. कटुता खत्म करने का एक नया विषय दिया है और इसे गंभीरता से पढ़ने की जरूरत है.
अयोध्या अभी झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है!
अयोध्या का एक न्यायिक हल निकलने के बाद ऐसे नारे लगने तेज हो गए कि अयोध्या तो अभी झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है. इस तरह की नारेबाजी से उन्माद की गंध आती है, जो भावनाएं भड़काती है, समस्या को विकराल बनाती है. लेकिन अगर ऐसे उन्मादियों से अलग हटकर भी विचार करें, तो ये तीनों तीर्थ भारत के लिए आवश्यक नजर आते हैं, जिसे मुस्लिमों को भी स्वीकार करना चाहिए. राम, कृष्ण और शिव, ये तीनों हिंदुओं की आस्था के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र हैं और ये तीनों तीर्थ इन्हीं देवताओं से जुड़े हैं. इतिहास में हिंदुओं के मानसिक दमन के लिए इन तीनों तीर्थों को परिवर्तित करने की कोशिश की गई, लेकिन ये आज भी मुस्लिम धर्म के तीर्थ नहीं बन सके. अब देश को समझना चाहिए कि एक वर्ग को पराजित मानसिकता का अहसास कराने की जरूरत खत्म हो चुकी है. बादशाहत अब लोकतंत्र में बदल चुका है. देश का पवित्र ग्रंथ संविधान बन चुका है. देश के हर नागरिक को समान अधिकार मिल चुका है. इसलिए हिंदुओं के साथ गैर बराबरी का व्यवहार नहीं किया जा सकता.
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का मुद्दा क्यों उठा और इसमें क्या मिला?
पांच महिलाओं ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे वाले हिस्से में मां श्रृंगार गौरी की पूजा और दर्शन करने की इजाजत दी जाए. इसके बाद 12 मई को वाराणसी कोर्ट की बेंच ने मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे कराने का आदेश जारी कर दिया. नियम के मुताबिक सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में रखे जाने से पहले तक फाइंडिंग्स गोपनीय रखी जानी थी. लेकिन उससे पहले ही ये फाइंडिंग तेजी से फैल गई कि ज्ञानवापी मस्जिद में बाबा मिल गए हैं. उनके शिवलिंग का आकार-प्रकार भी सामने आ गया. अब बड़ी आस्था के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद को विश्वनाथ धाम में सम्मिलित करने की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए. साथ में मुस्लिम समुदाय की आस्था को भी पूरा सम्मान देना चाहिए.
उस बर्बर इतिहास का प्रयोजन पूरा हो चुका है. हिंदुस्तान पर मुगलों का आक्रमण एक ऐसा इतिहास रहा है, जिसे इतिहासकारों ही नहीं, मुगल बादशाहों ने भी दर्ज कराया है. यहां तक कि बाबर ने खुद बाबरनामा में कल्ला मीनार बनाने का जिक्र किया है. बाबर ने जिस क्षेत्र में विजय पाई, वहां के नौजवानों का सिर काटकर उसे एक मीनार का शक्ल दे दिया, ताकि आने वाले वक्त में जिनसे उसकी सेना की टक्कर होनी है, वो अपना हश्र समझ लें. इसी तरह यह भी इतिहास का ही हिस्सा है कि हिंदुस्तान पर आक्रमण के दौरान मंदिरों को लूटा गया, तोड़ा गया और युवाओं के संहार के साथ महिलाओं से बलात्कार किया गया. आक्रांताओं के बाद अंग्रेजों का दौर आया और अंग्रेजों ने भी वही किया. हिंदू और मुस्लिम अस्मिता को अंग्रेजों ने बुरी तरह रौंदा. इतिहास के अगले चरण में हिंदुओं-मुस्लिमों के भाईचारे का दौर आया. दोनों ने मिलकर अंग्रेजों को बुरी तरह कुचला और भारत से भागने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद से भारत एक संविधान की छत्रछाया में आ गया. अब उस बर्बर इतिहास का प्रयोजन खत्म हो चुका है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी एक ही पायदान पर खड़े हैं. बराबरी से खड़े हैं और पूरे हक के साथ खड़े हैं.
अयोध्या, काशी से मथुरा की ओर बढ़ते मुद्दे को निरपेक्ष होकर देखा जाए तो इन्हें विजय या पराजय के तराजू पर नहीं तौलना चाहिए बल्कि इन्हें दुनिया के सामने गंगा-जमुनी तहजीब के माइलस्टोन की तरह रखना चाहिए. ज्ञानवापी मस्जिद के जिस वजूखाने में शिवलिंग बना हो, वहां भारत के मुसलमान हाथ-पैर धोना और वजू करना नहीं चाहेंगे. अगर सर्वे रिपोर्ट सच है तो एक पक्ष को त्याग में संकोच नहीं करना चाहिए. अब इतिहास से आगे बढ़ने की जरूरत है. एक-दूसरे को अपने त्याग से जीतने की जरूरत है, ना कि नफरत से हराने की जरूरत है. भारत का इसी में भविष्य छिपा है, इसी में मजबूती छिपी है, इसी में विकास छिपा है

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