प्रधानमंत्री जी, गृह राज्यमंत्री को 28 सेकेंड का यह वीडियो दिखाइए

28 सेकेंड का यह वीडियो है. एक सेकेंड के वीडियो में 24 से 30 फ्रेम होते हैं

Update: 2021-10-06 06:48 GMT

रवीश कुमार।

28 सेकेंड का यह वीडियो है. एक सेकेंड के वीडियो में 24 से 30 फ्रेम होते हैं. 840 फ्रेम. 28 सेकेंड के इस वीडियो के एक एक फ्रेम में क्रूरता और मंत्री के झूठ की ऐसी गवाहियां हैं कि इस 28 सेकेंड का पूरा ब्यौरा बताने के लिए 28 घंटे भी कम पड़ जाएं. सोमवार रात दुनिया भर में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक के बाद भी अकेले ट्विटर से यह वीडियो इतना वायरल हो गया कि लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या को लेकर फैलाया गया झूठ का शामियाना उजड़ गया. वह वीडियो उस जीप की कहानी का सच लेकर आ गया है जिसने शांति से लौट रहे किसानों को पीछे से कुचल दिया. लेकिन यह वीडियो केवल यह बताने नहीं आया कि किसानों को जीप ने कैसे कुचला, बल्कि यह बताने आया है कि थार जीप और गोदी मीडिया में कोई अंतर नहीं है. जिस तरह से जीप ने किसानों को कुचल दिया उसी तरह गोदी मीडिया हर दिन लोगों को कुचल रहा है. गोदी मीडिया के एंकरों और चैनलों ने आपको नज़रबंद कर लिया है. यह वीडियो नहीं आता तो आपके मन में एक संदेह सच का रूप ले चुका होता कि किसान ही उपद्रवी हैं. और इस तरह से किसानों की हत्या करने वाले आपकी निगाहों में संत हो जाते.


गनीमत है कि नज़रबंदी और नेटबंदी की दीवार फांदकर यह वीडियो वायरल हो गया. शायद इंटरनेट की बंदी के कारण किसी ने यह तरीका निकाला होगा. जिस मोबाइल में रिकार्ड हुआ है उस पर इसे प्ले किया और दूसरे फोन से वीडियो बना लिया. इस तरह से वीडियो की यह कापी अब दुनिया के सामने है. अगर 28 सेकेंड का यह वीडियो वायरल नहीं हुआ होता तो करोड़ों दर्शकों के दिमाग में गोदी मीडिया के न्यूज़ चैनल झूठ का भूसा भर चुके होते कि ये किसान नहीं हैं, ये उपद्रवी हैं, ये हत्यारे हैं. चार किसानों की हत्या और बीजेपी के तीन और एक पत्रकार की हत्या. चा बनाम चार की हत्या दिखाकर मामला बराबर कर दिया गया था. संयुक्त किसान मोर्चा और किसान आंदोलन से सहानुभूति रखने वाले ट्रैक्टर टू ट्विटर के हैंडल से यह ट्वीट नहीं हुआ होता तो आप नहीं देख पाते कि किसानों को किस तरह इस जीप ने कुचल दिया है. आप इसकी परवाह नहीं करते कि 72 घंटे के बाद भी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. मंत्री अपने पद से बर्खास्त नहीं किए गए है. 28 सेकेंड के इस वीडियो में किसानों को धक्का मारने वाली यह जीप केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा की है. आरोप है कि इस जीप में उनके बेटे आशीष मिश्रा सवार थे. मंत्री इनकार करते हैं. इस जीप का सच पता लगाने के बजाए किसानों को आतंकवादी और उपद्रवी करार देकर गोदी मीडिया ने फिर से बताया कि इसी तरह विरोध करने वाले मारे जाएंगे और उनकी हत्या को दुर्घटना बता दिया जाएगा. इस तरह गोदी मीडिया भारत के अर्जित लोकतंत्र की दैनिक हत्या की कार्रवाई में आपको भी पार्टनर बना लेता है.यह वीडियो केवल गोदी मीडिया का पर्दाफाश नहीं करता है बल्कि मंत्री के तमाम दावों को भी ध्वस्त कर देता है.

पत्रकारिता का पतन इतना भयानक है कि दुनिया में आजाद पत्रकारिता की सूची में भारत का स्थान नीचे के देशों में आता है. 180 में से 142 वें नंबर पर. अगर झूठ बोलने और किसी हत्यारे को बचाने की पत्रकारिता की सूची बनती तब भारत का गोदी मीडिया दुनिया में नंबर वन बन जाता. क्या आप बाज़ार से ख़राब साबुन या पापड़ ख़रीदते हैं, नहीं ख़रीदते हैं. तो फिर घटिया अख़बार क्यों ख़रीदते हैं? जब हर प्रोडक्ट अच्छे से अच्छा होने का दावा करता है ताकि कोई ख़रीदार मिल जाए, कभी आपने सोचा है कि घटिया प्रोडक्ट होने के बाद भी गोदी मीडिया को ख़रीदार कैसे मिल जाते हैं. इस वीडियो के एक एक फ्रेम को रोक कर देखिए. ठहर कर देखिए.

पहले चंद फ्रेम में कुछ युवा किसान धीरे-धीरे चल रहे हैं.उनके हाथ में झंडे हैं. गले में काली पट्टी है. हूटर की आवाज़ आ रही होती है. पहले कुछ फ्रेम में चल रहे युवाओं और किसानों को देखकर नहीं लगता कि किसी ने हूटर की आवाज़ सुनी है. भीड़ पीछे से आ रही जीप की ओर मुड़कर नहीं देखती है. नहीं तो भगदड़ मच जाती और लोग ख़ुद को बचाने के लिए किनारे की तरफ भागते. पीछे से तेज़ी से चली आ रही थार जीप भी धीरे नहीं होती है. चली ही आ रही है. हूटर की आवाज़ सर के पीछे तक आ चुकी होती है. यहां इस फ्रेम में काली पगड़ी पहना यह नौजवान नोटिस कर लेता है और किनारे की तरफ भागता है. बगल में पीली पगड़ी वाले बुजुर्ग सरदार जी तब तक नोटिस नहीं करते. जीप बहुत तेज़ आ रही है और नीला कुर्ता पहने एक नौजवान को ज़ोर से धक्का मारती है.

हत्या और हिंसा की इन तस्वीरों को कैसे दिखाएं. जब किसी हत्या और हिंसा से राज्य का व्यक्ति जुड़ा हो तब क्या उसकी क्रूरता और झूठ को संपादकीय रियायत मिलनी चाहिए? फिर भी वीडियो विचलित करने वाले है और आप सोचने समझने वालों के ज़हन पर असर हो सकता है. पीली पगड़ी वाले सरदार जी को अब पत चल जाता है कि कुछ हुआ है. जब तक वे पीछे मुड़ कर देखते हैं मंत्री की थार जीप तेज़ी से नज़दीक आ चुकी होती है और उन्हें ज़ोर से टक्कर मार देती है. वे बोनट पर गिर जाते हैं. पीली पगड़ी वाले बुज़ुर्ग को टक्कर मारने से पहले यहां गुलाबी पगड़ी उछलती दिखी है. टक्कर लगने से किसी के सर से उड़ गई होगी. दूसरी तरफ कौन गिरा है नहीं दिखता है. इसके बाद एक नीले कुर्ते में कोई गिरा हुआ दिखता है. ये जीप सबसे पहले नीले कुर्ते वाले आदमी को मारती है.

पूरे वीडियो में किसान शांति से चल रहे हैं. लेकिन जीप और उसके पीछे आ रही कारों का काफिला किसानों के सड़क से हटने का इंतज़ार नहीं करता है. जिस रफ्तार से जीप लोगों को कुचलती चली जा रही है उसके पीछे आ रही काले रंग की फार्चुनर कार भी अपनी स्पीड में कमी नहीं करती है.

गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि किसानों ने तलवार से हमला कर दिया. इस वीडियो में और इस जगह के अन्य वीडियो में किसान तलवार लेकर नहीं चल रहे हैं. उनके हाथों में झंडा है और झंडे में लगा डंडा है. मगर कोई नारेबाज़ी नहीं है. कोई उग्रता नहीं है. गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने दावा किया था कि उनके पास वीडियो हैं जिनमें किसान हमला करते देखे जा सकते हैं. अभी तक उन्होंने ऐसा कोई वीडियो जारी नहीं किया है. जो बयान दिया है वो इस वीडियो से ग़लत साबित हो जाता है.

जीप का एक हिस्सा फ्रेम में आ जाता है. इसमें ड्राइविंग सीट पर कौन बैठा है, चेहरा साफ-साफ नहीं दिखता. कोई कहता है कि ड्राइवर है, कोई कहता है मंत्री का बेटा आशीष है. मंत्री कहते हैं बेटा जीप में नहीं था. जीप के पीछे साइड वाली सीट की तरफ देखें, आसमानी कुर्ते या कमीज़ में कोई बैठा है. नारंगी पगड़ी दिख रही है. इसके बाद जीप तेज़ी से आगे निकल जाती है और उसके पीछे काले रंग की फार्चुनर कार भी निकल जाती है. आगे के वीडियो में कई किसानों को तब भी पता नहीं चलता कि क्या हुआ है. कुछ लोगों को पता चल जाता है कि कुछ किसान कुचल दिए गए हैं. वीडियो से व्यक्ति की पहचान मुश्किल है लेकिन कपड़े के रंग से लोगों की पहचान हो सकती है. इस तरह के कपड़े में मंत्री के साथ कार्यक्रम में कौन-कौन लोग मौजूद थे. एक और वीडियो आया है जिसमें जीप से एक छरहरा व्यक्ति उतरकर भाग रहा है. उसने भी आसमानी कुर्ता पहना है.

इसमें भी थार जीप ही दिख रही है. क्या ये कोई अलग जीप है? इस जीप से दरवाज़ा बंद कर भागता दिख रहा है? पहले कोई भाग चुका है उसके पीछे आसमानी कुर्ते वाला एक छरहरा नौजवान भाग रहा है. इसी जीप के पिछले चक्के के पास एक किसान तड़फता हुआ दिख रहा है. यह किसान कौन है? भाग रहा यह व्यक्ति कौन है? वीडियो में दो लोग उतरकर भागते देखे जा सकते हैं. ये दोनों कहां हैं?

हम पूरी तरह नहीं दिखा सकते. यह तस्वीर वाकई विचलित करने वाला है कि थार जीप के नीचे कोई तड़प रहा है. इसका मतलब है कि जो वीडियो आपने कार्यक्रम के शुरू में देखा जिसमें थार जीप टक्कर मार रही है उसने आगे जाकर भी लोगों को टक्कर मारी है. वीडियो के हिस्से में जीप टक्कर मारकर निकल चुकी है पीछे पीछे कारें भी जा चुकी हैं. अब लोगों को दिखता है कि कुछ किसान नीचे गिरे पड़े हैं. जो लोग खुद को बचाने के लिए सड़क से नीचे उतर गए थे वे वापस सड़क पर चढ़ने लगते हैं. घायलों की तरफ बढ़ते हैं. पूरे वीडियो में किसी के हाथ में तलवार नज़र नहीं आती है. काले झंडे ज़रूर हैं.

28 सेकेंड के इस वीडियो ने झूठ की हर थ्योरी को ध्वस्त कर दिया है. इस वीडियो के बाद गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा बेफिक्र हो सकते हैं कि प्रधानमंत्री उन्हें बर्ख़ास्त नहीं कर सकते. जब FIR में नाम आने से प्रधानमंत्री ने बर्ख़ास्त नहीं किया तो फिर वीडियो के आने से क्यों करेंगे. मंत्री के सारे बयानों को आप फिर से याद कीजिए. कभी कहा किसानों ने लाठी तलवार से हमला कर दिया, तो कभी कहा कि किसानों के बीच बब्बर खालसा जैसे आतंकी संगठन के लोग सक्रिय हो गए हैं. यही नहीं एक लिखित बयान भी जारी किया है उसमें एक शब्द मारे गए किसानों के प्रति नहीं है. यही लिखा है कि किसानों ने तलवार से हमला कर दिया. अब इस वीडियो से मंत्री जी की सारी थ्योरी फंस गई है. अजय मिश्र ने कहा था कि "जो सूचनाएं और जो वीडियो देखने को मिल रहे हैं गाड़ी के ड्राइवर की वहीं पर खींचकर हत्या की गई. अगर मेरा पुत्र चला रहा होता तो उसकी हत्या हो गई होती. वहां इस तरह हजारों की भीड़ में 10-12 लोग किसी पर गाड़ी चढ़ाकर निकल जाएंगे, ऐसा संभव नहीं है.

मंत्री जी कह रहे हैं कि हज़ारों की भीड़ पर गाड़ी चढ़ाकर निकल जाएं दस बारह लोग यह संभव नहीं. क्या जीप में दस बारह लोग थे? वे कौन लोग थे, उनकी पहचान क्या है? वे कहां हैं? 28 सेकेंड का ही वीडियो है क्या ये जीप किसानों को रौंदती हुई नहीं निकल गई. क्या मंत्री इस वीडियो को देखने के बाद अपना बयान बदलेंगे. दरअसल वो कितनी बार बयान बदलेंगे. अपनी कुर्सी भी बचानी है. अपने बेटे को भी बचाना है. तब तक किसानों को कभी आतंकवादी बताना है कभी उपद्रवी.

क्या मंत्री अजय मिश्रा ने अपने बेटे आशीष मिश्रा को लेकर इस तरह के बयान दिए ताकि विवाद में कई तरह के एंगल पैदा हो जाए, गोदी मीडिया को उन बयानों को लेकर आगे बढ़ने का मौका मिले और घटनास्थल पर वास्तव में क्या हुआ, इससे ध्यान हट जाए? आखिर मंत्री ने तरह तरह के बयान क्यों दिए? मंत्री ने ही कहा है कि कार्यक्रम स्थल और घटना स्थल के बीच तीन चार किलोमीटर की दूरी थी. ये दूरी बहुत लंबी तो नहीं है.

क्या मंत्री अपने बेटे के बारे में कह रहे हैं कि अगर वे रिवाल्वर लिए होंगे तो उनका लाइसेंसी होगा. सबको अपनी सुरक्षा के लिए रखने का अधिकार होता है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के हलफमाने में लिखा है कि उनके पास एक राइफल और रिवाल्वर है. राइफल की कीमत 65000 बताई गई है और रिवॉल्वर की एक लाख. क्या इनमें से कोई असलाह मंत्री की जीप में था? क्या मंत्री के रिवाल्वर या राइफल को पुलिस ने ज़ब्त कर जांच के लिए भेजा है कि उससे गोली चली या नहीं चली. मंत्री होने के नाते उनके पास भी सुरक्षा होगी ही. क्या थार जीप में कोई पुलिस का जवान भी था? यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा है कि मंत्री के बेटे ने गोली चलाई. क्या जीप में कोई पुलिस का हथियारबंद सिपाही नहीं था? एक मंत्री का बेटा जीप में था या नहीं इतनी सी बात पर पुलिस का कोई पुख्ता बयान नहीं आया है. क्या इसकी जांच के लिए नासा की मदद ली जा रही है, या चांद पर जाकर वहां से दूरबीन के ज़रिए देखा जा रहा है?

किसान हिंसक नहीं थे. तलवार लेकर नहीं चल रहे थे. एक वीडियो में तेजी से कारों का काफिला गुज़रता है और आप बाद की दो सफेद कारों को देख पाते हैं. यह भी देख रहे हैं कि सड़क के किनारे किसान खड़े हैं और कारें गुज़र रही हैं. यह पता नहीं चलता कि कार ने किसानों को टक्कर मारी है या नहीं. दूसरे वीडियो में काले रंग की एक जीप दिखाई देती है जो थार हो सकती है. उसके गुज़रने के बाद काले रंग की एक और बड़ी कार दिख रही है. किसान सड़क के किनारे ज़रूर खड़े हैं लेकिन इन दो वीडियो में हिंसक नहीं हैं. कार का रास्ता नहीं रोक रहे हैं. जो नया वीडियो आया है वो इसी बात को आगे बढ़ा रहा है .

कई तरह के वीडियो वायरल होने लगे हैं. एक बहुत छोटा सा क्लिप वायरल है जिसमें सफेद कुर्ता पाजामा पहने व्यक्ति के बारे में कहा जा रहा है कि वह जेब से रिवाल्वर निकाल रहा है. यह वीडियो बहुत धुंधला सा है और कुछ भी स्पष्ट नहीं है. इस व्यक्ति के बारे में कहा जा रहा है कि मंत्री का बेटा आशीष मिश्रा है. रविवार को किसानों की हत्या हई. करीब करीब तीन दिन बीत गए लेकिन पुलिस के पास एक सवाल का जवाब नहीं. जवाब यही है कि पुलिस पोस्टमार्टम में व्यस्त थी. क्या पूरी पुलिस फोर्स और अफसर पोस्टमार्टम में व्यस्त थे?

घटना स्थल से जुड़े तीन चार वीडियो सामने आ चुके हैं. इन सभी को आप एक सीक्वेंस में रखकर देखें तो कुछ बातें साफ हो जाती हैं कि किसान हमलावर नहीं थे. किसानों के पास तलवारें नहीं थीं. जीप ने किसानों को पीछे से टक्कर मारी और किसानों की मौत हो गई.

ये लोग किसान नहीं है. ये कुछ किसान हैं. ये अमीर किसान हैं. अगर कोई तीनों कैटगरी में हैं या नहीं है, इसके बाद भी क्या उसे जीप से कुचला जा सकता है? अगर इस कार्रवाई को गोदी मीडिया दूसरे तर्कों औऱ सवालों से छिपाने या सही ठहराने का प्रयास करे और किसानों को उपद्रवी कहे तो क्या यह आपके दर्शक या पाठक होने की संवेदनशीलता का अपमान नहीं है? न्यायिक जांच के नाम पर तथ्यों को छिपाया नहीं जा सकता. इस वक्त पुलिस को कुछ सवालों के जवाब पब्लिक में देने चाहिए.हमने आपको सोमवार के प्राइम टाइम में यू ट्यूब पर गांव सवेरा नाम से चैनल चलाने वाले स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया की एक प्रत्यक्षदर्शी से बातचीत दिखाई थी. यह भी बता रहा है कि मंत्री का बेटा कार में था. गुरप्रीत सिंह बता रहे हैं कि जिस रास्ते पर किसान चल कर वापस जा रहे थे उस पर बैरिकेड लगे थे. उसे हटा दिया गया और तेज़ी से कारों का काफिला आ गया. यही नहीं वे बता रहे हैं कि वहां पुलिस के लोग थे. एसडीएम थे.

गुरप्रीत ने अपने बयान मे यह भी कहा है कि लोग इसलिए इकट्ठे हुए थे क्योंकि मंत्री जी ने बयान दिया था कि लखीमपुर खीरी छोड़ना पड़ जाएगा. मंत्री ने लोगों को चैलेंज किया था और लोग मंत्री का विरोध करने चले गए. गुरप्रीत ही अकेले नहीं कह रहे कि मंत्री के बेटे को पुलिस ने कवर दिया और बचाकर ले गई. फिर कैसे कहा जा सकता है कि मंत्री का बेटा वहां नहीं था.पिछले दो दिनों में हमारे भी सहयोगियों रवीश रंजन, आलोक और कमाल ने कई प्रत्यक्षदर्शियों से बात की जो दावा कर रहे हैं कि मंत्री का बेटा जीप में था, उसे गोली चलाते देखा गया. पुलिस बचा कर ले गई.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी लखीमपुरी खीरी के वायरल वीडियो को अपने वीडियो में दिखाते हुए प्रधानमंत्री से सवाल पूछा है. 28 सेकेंड का यह वीडियो भयानक है. विपक्ष और किसान नेताओं की मांग थी कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त किया जाए और उनके बेटे आशीष मिश्रा को गिरफ्तार किया जाए. ऐसा नहीं है कि अजय मिश्रा ग़लत ड्राइविंग और किसी बेकसूर को कुचल देने की बात नहीं जानते. जुलाई 2019 में उन्होंने मोटर व्हीकल एक्ट के संशोधन के वक्त भाषण दिया था. इस भाषण को उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट भी किया है. "गलत ड्राइविंग का परिणाम यह होता है कि जिसका एक्सिडेंट होता है उसकी कोई गलती नहीं होती कभी, कोई और गलत चलाके ठोक देता है. गलत ड्राइविंग न हो उसके लिए नियम बने."

मंत्री अपने बेटे का ही बचाव नहीं कर रहे बल्कि जीप का भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इतने लोगों को जीप कुचलती हुई नहीं निकल सकती है. क्या मंत्री को नहीं लगता कि उनकी जीप के चालक ने ग़लत ड्राइविंग की है? इसके बाद भी वे किसानों पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने तलवार से हमला कर दिया. तनाव की स्थिति नहीं आती अगर गृह राज्यमंत्री ने किसानों को लखीमपुर खीरी से निकलवाने की धमकी न दी होती. उसी के विरोध में लोग काला झंडा दिखाने गए थे. 25 सितंबर को मंत्री ने संपूर्णानगर में एक भाषण दिया था उसमें कहा था "सुधर जाओ नहीं तो सामना करो आकर, हम सुधार देंगे. मैं सिर्फ सांसद और विधायक नहीं हूं, इससे पहले मैं क्या था ये भी जान लें लखीमपुर छोड़ना पड़ जाएगा."

मंत्री कह रहे हैं कि सांसद विधायक बनने से पहले जान लें कि वे पहले क्या थे, लखीमपुर छोड़ना पड़ जाएगा? वाकई ये जानने का विषय है कि ये क्या थे? प्रधानमंत्री मोदी से बेहतर कौन बता सकता है, अगर प्रधानमंत्री पहले नहीं जानते थे तो अब पता कर लें कि ये क्या थे.अगर पता था कि ये क्या थे और फिर भी गृह राज्य मंत्री बनाया है तो क्या ही कहा जाए. इस तरह की बात कोई शरीफ तो नहीं करता है कि याद कर लेना मैं क्या था, धरती छोड़नी पड़ जाएगी. इस तरह की धमकी तो हमने उन्हीं से सुनी है जिन्हें कभी गुंडा कभी बाहुबली कभी दस्यु तो कभी सरगना तो कभी हिस्ट्री शीटर कहा जाता है. जो काम एक ही करते हैं नाम तरह तरह का होता है. गृह राज्य मंत्री क्या थे यह जानना बहुत ज़रूरी है.

जब विपक्ष के कई नेता नज़रबंद थे आज प्रधानमंत्री मोदी लखनऊ में थे. जिस यूपी के गोरखपुर में होटल के एक कमरे में घुसकर छह पुलिस वालों ने एक व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या कर देते हैं और आज तक वे गिरफ्तार नहीं हो सके हैं, उस यूपी के शहरों के स्मार्ट बन जाने का यह सपना इस वीडियो में दिखाया जा रहा है. 28 सेकेंड का वो वीडियो इस वीडियो के सामने कितना टिकेगा यह हिसाब लगाना हमारा काम नहीं है लेकिन राजनीति दल अपना विषय खुद चुनते हैं कि वे कब और क्या कहेंगे. आप इस चुनाव से समझ सकते हैं कि जब यूपी में विपक्ष के कई नेता घंटों से नज़रबंद हों उस यूपी में प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी की प्रदर्शनी का उद्घाटन करने लखनऊ में हैं. वाकई भारत लोकतंत्र की मां है. इंग्लिस में मदर है. प्रधानमंत्री ने किसानों की हत्या पर कुछ नहीं कहा, कोई बात नहीं. प्रधानंमत्री ने बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं की हत्या पर कुछ नहीं कहा है.

सोमवार को समझौते के बाद पुलिस और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि समझौता हो गया है और अब अंतिम संस्कार होगा लेकिन सोमवार को अंतिम संस्कार नहीं हो सका. आज बहराइच के किसान गुविंदर सिंह के परिवार ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट न मिलने के कारण अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया. संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ किया है कि प्रशासन के साथ जो समझौता हुआ था वो केवल अंतिम संस्कार को लेकर था. बाकी उनकी मांगें यथावत हैं. वे मांग करते हैं कि मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को गिरफ्तार किया जाए. केंद्रीय गृह मंत्री अजय मिश्रा टेनी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बर्खास्त किया जाए. बीजेपी के सांसद वरुण गांधी लगातार किसानों से जुड़े मसले पर बोल रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखने के बाद उन्होंने फिर से एक ट्वीट किायाहै. नए वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है कि "लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ियों से जानबूझकर कुचलने का यह वीडियो किसी की भी आत्मा को झखझोर देगा. पुलिस इस वीडियो का संज्ञान लेकर इन गाड़ियों के मालिकों, इनमें बैठे लोगों, और इस प्रकरण में संलिप्त अन्य व्यक्तियों को चिन्हित कर तत्काल गिरफ्तार करे. "

वरुण गांधी अपनी पार्टी के सांसद और मंत्री की गिरफ्तारी की बात कर रहे हैं? जीप मंत्री के ही नाम है. क्या सिर्फ वरुण गांधी को ही ग़लत लग रहा है? बीजेपी के बाकी विधायकों सांसदों और समर्थकों को ग़लत नहीं लग रहा है? इस घटना में शुभम मिश्रा की भी हत्या हो गई. शुभम के बारे में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने अपने लिखित बयान में कहा है कि वे भाजपा के बूथ अध्यक्ष थे. शुभम के परिजनों ने अपनी तहरीर में लिखा है कि वे दंगल में भाग लेने गए थे.परिजनों ने किसान नेता तेजिंदर सिंह विर्क और अन्य लोगों पर शुभम की हत्या के आरोप लगाए हैं.

तेजिंदर सिंह विर्क के सर में गंभीर रूप से चोट आई है. उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां सोमवार को उनका आपरेशन किया गया. ज़ाहिर है विर्क पर हमला हुआ है. उनके सर पर कटने के गहरे निशान हैं. किसान अपनी जवाबदेही से पीछे नहीं हट रहे हैं. वे गवाही देने के लिए तैयार भी हैं. लेकिन विर्क की बात से सवाल यह भी बनता है कि घटना के ठीक पहले से प्रशासन और किसान नेताओं के बीच किस तरह की बातचीत हो रही थी, किसान नेता उसका पालन किस तरह कर रहे थे. किसानों की हत्या करने वाले गिरफ्तार नहीं हुए हैं लेकिन पीड़ित किसानों से मिलने जा रहे विपक्ष के नेता हिरासत में हैं. वे घर से बाहर नहीं निकल सकते हैं.

प्रियंका गांधी रविवार की रात से अभी तक हिरासत में हैं. सीतापुर के सेकेंड बटालियन के गेस्टहाउस में प्रियंका आज भी बंद रहीं. प्रियंका को शांति भंग की आशंका में रोका गया है. प्रियंका ने एक पत्र जारी किया है कि उन्हें बिना किसी आदेश की जानकारी दिए रोका गया जबकि वे एक कार में चल रही थीं. उनके साथ कोई काफिला नहीं था. प्रियंका ने लिखा है कि उन्हें FIR की जानकारी नहीं है और न ही 24 घंटे बाद किसी मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया गया है. सीतापुर में जहां प्रियंका नज़रबंद हैं उसके बाहर कांग्रेसी कार्यकर्ता लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां पर लगातार कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे हैं और कैंडल मार्च निकाल रहे हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एयरपोर्ट से बाहर नहीं जाने दिया गया तो वे वहीं बैठ गए.कई घंटों तक एयरपोर्ट में ही रहे.

किसानों को जीप से कुचल दिया गया. अगर इससे आपको फर्क नहीं पड़ता तो एक बात तय है. आप इस वक्त देश के विकास में योगदान देना चाहते हैं. सरकार आपकी इस भावकुता को जानती है इसलिए पांचवे दिन भी पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ा दिए गए हैं. ताकि आप महंगा पेट्रोल खरीद कर विकास में योगदान दे सकें, बिहार यूपी के लोग गुज़ारिश कर सकते हैं कि उन्हें भी 110 रुपये लीटर पेट्रोल खरीदने का मौका जल्दी मिले.

लखीमपुर खीरी में पेट्रोल और डीज़ल से भरी थार जीप किसान को कुचल कर जा सकती है और आप जो विकास में इतने व्यस्त हैं कह सकते हैं कि ये तो किसान ही नहीं हैं. एक दिन यही लोग आपसे कहेंगे आप जनता ही नहीं हैं. पर्स में लिख कर रख लीजिए.

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