ट्रैक्टर और हार्वेस्टर की रिकॉर्ड बिक्री को क्या हम किसानों की आय में बढ़ोतरी मान लें?

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजमर्रा के सामानों की मांग घटी है. जनवरी से जुलाई तक के बीच रोजमर्रा के सामानों की बिक्री में वृद्धि 12 फ़ीसदी से ज़्यादा गिरी है.

Update: 2021-10-27 12:46 GMT

संयम श्रीवास्तव

ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) में हाल का ट्रेंड बता रहा है कि गांवों में भी सीधा विकास नहीं हो रहा है. अमीर किसान और और अमीर हो रहे हैं , गरीब किसान और खेतिहर मजदूर की हालत और खराब हो रही है. खबर है कि 2019 के मुकाबले कृषि में मददगार भारी वाहनों की बिक्री में इस वर्ष 30 फ़ीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. जबकि निर्माण उपकरणों में यह इजाफा 60 फ़ीसदी से अधिक का हुआ है. अब सवाल यह उठता है कि क्या ट्रैक्टर और हार्वेस्टर की रिकॉर्ड बिक्री को हम किसानों की दशा में सुधार मान सकते हैं?

पर हम जब किसानों को अलग रखकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करते हैं तो पता चलता है कि स्थित कुछ और ही है. एक तरफ तो ट्रेक्टर और हार्वेस्टर की बिक्री में भारी इजाफा हुआ है तो दूसरी तरफ दोपहिया वाहनों की बिक्री, एफएमसीजी की डिमांड घटी है. साथ ही मनरेगा में रोजगार चाहने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इसका सीधा मतलब है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सीधा विकास नहीं हो रहा है. अमीर किसान और और अमीर हो रहे हैं , गरीब किसान और खेतिहर मजदूर की हालत और खराब हो रही है.
सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए कोई योजना नहीं
किसानों की आय को लेकर देश में इस समय अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन चल रहा है. केंद्र सरकार द्वारा किसानों की दशा में मूलभूत सुधार के लिए बनाए गए 3 कानूनों को वापस लेने के किसान गर्मी-सरदी और बरसात की परवाह न करते हुए लगातार धरने पर बैठे हुए हैं. किसानों का कहना है कि जब तक ये तीनों कानून वापस नहीं लिए जाएंगे तब तक हम धरने से हम उठने वाले नहीं हैं. इन सबके पीछे किसानों की दुर्दशा को आधार बनाया जा रहा है. केंद्र में सत्तासीन एनडीए सरकार और नेताओं का कहना है कि किसान आंदोलन केवल अमीर किसानों के हितों की रक्षा की बात कर रहा है. जबकि देश के 85 प्रतिशत किसान लघु और सीमांत किसान ही हैं. हार्वेस्टर और ट्रेक्टर खरीदने की क्षमता रखने वाले किसानों को हम किसी भी सूरत में सीमांत किसान या खेतिहर मजदूर तो नहीं ही मान सकते हैं.
किसान सम्मान निधि के तहत हर साल मिलने वाला 6 हजार रुपये पाने के लिए भी जमीन का एक निश्चित टुकड़ा होना जरूरी है. किसान क्रेडिट कार्ड , किसान बीमा योजना आदि के लिए भी आपके नाम से खेती होनी जरूरी हो जाती है. भूमिहीन किसानों , लघु और सीमांत किसानों के लिए योजनाएं कभी धरातल पर नहीं आ पातीं. खेती किसानी के लिए आवंटित बजट का अधिकांश हिस्सा फसलों के एमएसपी, उर्वरकों पर सब्सिडी, किसान क्रेडिट कार्ड और अब सबसे बढ़कर किसान सम्मान निधि में जा रहा है. यानि बजट का अधिकांश हिस्सा मुट्ठीभर अमीर किसानों के लिए खर्च हो रहा है.
ग्रामीण उपभोक्ता मांग में कमी
कोरोना के बाद ग्रामीण उपभोक्ताओं की मांग में कमी आई है. रिपोर्ट बताते हैं कि रोजमर्रा के सामान टेलीविजन और दोपहिया वाहनों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में कम हुई है. एफएमसीजी की ग्रामीण बिक्री में बढ़ोतरी अगस्त और सितंबर के मुकाबले 5 फ़ीसदी कम हुई है. जबकि दो पहिया वाहन साल 2019 के मुकाबले अभी भी कम बिके हैं. छोटे शहरों में टेलीविजन की बिक्री भी कम हुई है. सीधा मतलब है कि अमीर किसानों को छोड़कर मार्केट का रुख गांवों में दूसरे नहीं कर पा रहे हैं. हमें समझना होगा कि बड़े किसानों की अर्थव्यवस्था भले ही सुधर रही है लेकिन गांवों में रहने वाली अधिकतर आबादी महंगाई की मार से जूझ रही है. रसोईं गैस, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की महंगाई किसानों को दबा रही है. अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और रसोई गैस के आंकड़ों को देखें तो यह पिछले साल के मुकाबले लगभग 11.5 फ़ीसदी महंगी हुई है.
ट्रैक्टर-हार्वेस्टर की बिक्री बढ़ी है
ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2019 के मुकाबले ट्रैक्टरों और हार्वेस्ट्रों की बिक्री लगभग 30 फ़ीसदी से अधिक बढ़ी है. जहां साल 2019 में हर महीने औसतन 370 हार्वेस्टर बिकते थे. वहीं 2020 में यह बढ़कर 580 हो गए. लेकिन 2021 में इनका आंकड़ा 820 हार्वेस्टर प्रति महीने तक पहुंच गया. जबकि वाहनों के रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2021 में हर महीने ट्रैक्टरों के रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 45,000 के पार है. जबकि इस वर्ष जुलाई में 74,000 नए ट्रैक्टरों का रजिस्ट्रेशन हुआ. वहीं अगस्त में यह आंकड़ा 65,000 रहा. 2019 में यह आंकड़ा 30,000 था और 2020 में यह आंकड़ा 40 से 60,000 के बीच था.
दोपहिया वाहनों की बिक्री में कमी आई
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक खबर के मुताबिक अगर हम सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वाहन डैशबोर्ड को देखें, तो पता चलेगा कि सितंबर 2021 में दोपहिया वाहनों की खुदरा बिक्री जनवरी 2019 के स्तर के केवल 75 फ़ीसदी तक ही पहुंच पाई है. इसे हम ग्रामीण क्षेत्र से जोड़ कर देखें तो रिपोर्ट बताती है कि गियर वाली दोपहिया वाहनों की आधी बिक्री ग्रामीण क्षेत्रों में होती है.
एफएमसीजी की मांग घटी है इ-कॉमर्स में वृद्धि हुई है
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजमर्रा के सामानों की मांग घटी है. जनवरी से जुलाई तक के बीच रोजमर्रा के सामानों की बिक्री में वृद्धि 12 फ़ीसदी से ज़्यादा गिरी है. जबकि अगर सालाना आधार पर देखें तो यह गिरावट 3 फ़ीसदी तक पहुंची है. हालांकि वहीं ई-कॉमर्स के आंकड़े देखें तो गांवों में ई-कॉमर्स वेबसाइटों के कस्टमर बढ़े हैं. नीलसनआईक्यू ने अपनी रिपोर्ट में यह पाया है कि साल 2021 में ग्रामीण क्षेत्रों में ई-कॉमर्स की बिक्री साल 2019 के मुकाबले 33 फ़ीसदी बढ़ी है.
मनरेगा में काम की मांग औसत से अधिक रही
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानि मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में काम की मांग औसत से अधिक रही. साल 2020 में जब बड़े शहरों से महामारी के चलते गांवों के लोगों के रोजगार चले गए थे तब सरकार ने मनरेगा को बढ़ावा दिया था. लेकिन अब 2021 में मनरेगा के तहत काम की मांग और भी ज्यादा बढ़ गई है. अगर इसकी हम इसकी तुलना महामारी के पहले से करें तो इस वक्त मनरेगा के तहत काम की मांग पहले के मुकाबले एक करोड़ से ज्यादा परिवार हर महीने कर रहे हैं.
इसे आंकड़ों में समझें तो साल 2017 के सितंबर महीने में मनरेगा में काम की मांग करने वालों की तादाद 1 से 1.1 करोड़ थी. जो 2018 और 2019 में बढ़कर 1.4 से एक 1.5 करोड़ तक पहुंच गई. 2020 में यह आंकड़ा 2.4 करोड़ परिवारों तक पहुंच गया और 2021 में सितंबर तक यह आंकड़ा 2.3 करोड़ के ऊपर रहा.
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