जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उफ! भगवान बचाए अमेरिका को। जो मुझे आशंका थी वहीं हुआ। वोटों की पूरी गिनती हुई नहीं उससे पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने को चुनाव जीता घोषित कर दिया। वोटो की चल रही गणना पर फ्राड का जुमला चस्पा दिया। कानूनी लड़ाई लड़ने की घोषणा कर डाली। न लोकतंत्र की मर्यादाओं का लिहाज, न शर्म और न अमेरिका में अशांति, झगड़ा बनने की चिंता। इससे भी भयावह और गंभीर बात है जो अमेरिकी नागरिक सचमुच पानीपत की लड़ाई के अंदाज में आमने-सामने के पालों में आ खडे हुए हैं। अमेरिकियों ने रिकार्ड तोड़ वोट डाले। वोट के मूल्य, महत्व की घर-घर चेतना हुई। लेकिन इस भाव में कि ट्रंप को जिताना है या हराना है। आधी आबादी के लिए ट्रंप जीते तो सर्वनाश तो दूसरे पाले कि आधी आबादी का सोचना कि ट्रंप हारे तो सर्वनाश! तभी सन् 2020 का चुनाव अमेरिका का निर्णायक मोड़ है। कल मैंने कुछ जानकारों की धारणा के हवाले लिखा था कि 'अमेरिका में रिकार्ड तोड़ मतदान हो रहा है तो बहुसंख्यक गोरों की अंतरधारा से ट्रंप की आंधी है। यदि उनके कुछ वोट कम भी हुए तो डोनाल्ड ट्रंप कतई सत्ता नहीं छोड़ेंगे।
और सचमुच डोनाल्ड ट्रंप के भक्तों ने वैसी ही शिद्दत में मतदान किया जैसे नरेंद्र मोदी के भक्त मतदान करते हैं। जैसे नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं तो भारत सुरक्षित है और उनसे चाहे जो बरबादी हो लेकिन उनकी सत्ता जरूरी है, वाले वोट भारत में हैं तो वैसे ही वोट अमेरिका में गोरों के हो गए हैं। भला क्यों? जिन संस्कारों, जिस साक्षरता, जिस राजनीतिक-लोकतांत्रिक चेतना से अमेरिका, अमेरिका बना उसकी बजाय अमेरिकी गोरे कैसे एक व्यक्ति पर ऐसे फिदा हैं, ऐसे निर्भर हुए हैं? इसलिए अगला सवाल है कि यह अमेरिका का विकास है या पतन की शुरुआत? अमेरिकी राष्ट्र-राज्य, समाज, लोकतंत्र भला कैसे पुतिन जैसे संस्कारों वाले व्यक्तिवादी-अहंकारी राष्ट्रपति से अपना भविष्य मानता है? इतने लोगों ने, रिकार्ड तोड़ मतदान में लगभग आधे अमेरिकियों ने क्यों कर डोनाल्ड ट्रंप को वोट डाला?
निश्चित ही वह वजह और वह मनोविज्ञान है जो बहुसंख्यक आबादी को किसी शत्रु विशेष की आशंका से नेता विशेष का मोहताज बनाता है। डोनाल्ड़ ट्रंप का राजनीतिक रोडमैप पहले दिन से गोरों, गोरे कट्टरपंथियों का महानायक बनने का था। अमेरिका खतरे में है, अमेरिका घुसपैठियों का मारा है, सीमा पर दिवाल बनानी है, इमिग्रेशन रोकना है, स्वदेशी-आत्मनिर्भर बनना है और क्यों कर चीन के साथ ऐसा घाटा? क्यों हम दुनिया की सुरक्षा का खर्चा उठाएं? दुनिया के भले में हम अपने आपको क्यों बरबाद करें? पहले अमेरिका, पहले गोरे फिर बाकी सब। ये बिंदु हैं ट्रंप द्वारा गोरों को रिझाने के।
इसी से सन् 2016 में डोनाल्ड ट्रंप श्वेत महानायक हुए तो चार साल बाद सन् 2020 में भी तमाम अनुमानों को फेल करते हुए, महामारी के भयावह अनुभव के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप उन तमाम गोरों के जस के तस महानायक हैं, जिन्होंने ट्रंप के राज में अश्वेतों के आंदोलन से अपने आपको और असुरक्षित समझा। महामारी से ज्यादा आर्थिकी को महत्व दिया। यह तय कर सकना मुश्किल है कि यदि वायरस-महामारी से हवा नहीं बिगड़ी होती तो ट्रंप के मुकाबले में जो बाइडेन क्या बराबरी के मुकाबले में आ पाते? महामारी और कोरोना ने यदि डोनाल्ड ट्रंप को खलनायाक बनाया और उससे यदि जो बाइडेन को फायदा हुआ तो यह भी मानें कि अश्वेत-लिबरल-मानवाधिकार-सुधार समर्थक लोगों ने अनुदारवादी गोरों में डोनाल्ड ट्रंप की जरूरत बनवाई। विरोधी जितनी शिद्दत से ट्रंप के खिलाफ माहौल बनाते हुए थे तो कट्टरपंथी गोरे और ईसाई-यहूदी ल़ॉबी भी चुपचाप डोनाल्ड ट्रंप को जिताने में शिद्दत से जुटी। इस लॉबी ने चुनाव को उसी अंदाज में पानीपत की लड़ाई बनाया जैसे भारत में अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने सन् 2019 के चुनाव को पानीपत की लड़ाई बनाया था।
तभी रिकार्ड तोड़ मतदान और बराबरी की ऐसी लड़ाई, जिससे अमेरिका अगले चार साल लगातार पानीपत की लड़ाई, घरेलू गृहयुद्ध में फंसा रहेगा। 20 जनवरी 2021 को जो बाइडेन शपथ लें या डोनाल्ड ट्रंप लें, अमेरिका दो हिस्सों में बंटा रहना है। अमेरिका का भटके रहना, बरबाद होना तय है। डोनाल्ड ट्रंप और गोरे अनुदारवादी लगातार उधम मचाए रखेंगे तो अश्वेत आबादी और उदारवादी भी शांत नहीं बैठेंगे। कल के मेरे इस पैराग्राफ पर फिर गौर करें कि 'ट्रंप ने अमेरिका में नस्ली गोरों में जो मूर्खता ठूंसी है, उनकी बुद्धि का जैसा हरण किया है उससे अमेरिकी समाज-आबादी का विभाजन स्थायी बना है। ट्रंप हार भी जाएं, बाइडेन राष्ट्रपति बन जाएं तब भी उन्हें वर्चस्ववादी गोरों को समझाना, रास्ते पर लाना मुश्किल होगा। अमेरिकी आबादी को ट्रंप ने जिस तरह बांटा है, उससे राजनीति विमर्श में लंबे समय तक हम और वे की लड़ाई बनी रहेगी'।
और यह दुनिया के लिए, दुनिया के भले लोगों के लिए, लोकशाही में जीने वाली सभ्यताओं, देशों के लिए बहुत खराब है। अमेरिका घरेलू लड़ाई में फंसा रहे, उसका राष्ट्रपति वैश्विक जिम्मेवारी से कन्नी काटे रहे उससे दुनिया सुरक्षित नहीं होनी है। अमेरिका की आज की मतगणना से यदि सर्वाधिक पटाखे कहीं फोड़े जा रहे होंगे तो वह चीन और रूस है जो येन केन प्रकारेण अमेरिका को अपने बराबर या अपने से दोयम बनाने का लक्ष्य रखे हुए हैं।
तभी डोनाल्ड ट्रंप बनाम जो बाइडेन की जीत-हार से ज्यादा अहम और गंभीर सवाल है कि अमेरिका कितना बंट गया है। अमेरिका के भविष्य में घरेलू राजनीतिक कलह, गोरे बनाम कालों, अनुदारवादी बनाम उदारवादी, ईसाई बनाम गैर-ईसाई, गरीब बनाम अमीर के जो अलग-अलग पाले बने हैं उससे गृह युद्ध, टकराव में क्या कुछ संभावना है? सन् 2020 के चुनाव ने अमेरिका को दो हिस्सों में विभाजित किया है। यह विभाजन बीस जनवरी 2021 के शपथ दिन तक दिनों दिन बढ़ेगा। ट्रंप और उनके भक्त अपने उस्तरों से अमेरिकी लोकतंत्र को बहुत घायल-बरबाद करेंगे। यदि ट्रंप की ही शपथ हुई तब तो अमेरिका में उनका उस्तरा देश को इतना घायल करेगा कि चीन चार सालों में दुनिया की नंबर एक शक्ति बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा और उधर इस्लाम के जेहादी अपना धमाल अफगानिस्तान से ले कर यूरोप में बेइंतहा फैलाए हुए होंगे।