नागरिकों की सुरक्षा

रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग में इस वक्त सबसे बड़ा संकट नागरिकों को युद्धग्रस्त इलाकों से सुरक्षित निकालने का है। पिछले बारह दिन से चल रही लड़ाई में बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिक भी मारे गए हैं।

Update: 2022-03-07 03:58 GMT

Written by जनसत्ता: रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग में इस वक्त सबसे बड़ा संकट नागरिकों को युद्धग्रस्त इलाकों से सुरक्षित निकालने का है। पिछले बारह दिन से चल रही लड़ाई में बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिक भी मारे गए हैं। घायलों की संख्या भी हजारों में है। राजधानी कीव, खारकीव और सूमी सहित कई दूसरे शहरों पर रूसी फौज जिस आक्रामकता से हमले कर रही है, उसमें नागरिकों को भी नहीं बख्शा जा रहा। रिहायशी इलाकों पर मिसाइलों और बमों से हमले जारी हैं। अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और बंकरों को भी निशाना बनाया जा रहा है।

ऐसे में अगर जल्द ही नागरिकों को सुरक्षित ठिकानों पर नहीं पहुंचाया गया तो यह युद्ध न जाने कितने लोगों को लील जाएगा! इसीलिए रूस और यूक्रेन के बीच संघर्षविराम होने की जरूरत है। दोनों देशों के बीच हाल में हुई वातार्ओं में भी यह मुद्दा उठा था। उसके बाद ही शुरूआती स्तर पर कुछ-कुछ घंटे के लिए हमले रोकने पर सहमति बनी थी, ताकि इस बीच नागरिकों को निकालने की कवायद शुरू की जा सके। लेकिन इस तरह का संघर्षविराम तभी संभव हो पाता है जब दोनों पक्ष इसकी शर्तों का ईमानदारी से पालन करें और नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोपरि समझें।

गौरतलब है कि शनिवार को रूस ने मारियुपोल और वोल्नोवाखा शहर में सात घंटे के लिए संघर्षविराम पर सहमति दी थी। लगातार हमलों से इन दोनों शहरों में भारी तबाही हुई है। बिजली, पानी सब बंद है। लोगों के पास खाने का सामान भी खत्म हो गया है। कड़ाके की ठंड पड़ रही है, सो अलग। ऐसे में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग किन हालात में होंगे, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। कमोबेश यही हाल रूस के दूसरे शहरों का भी है।

यूक्रेन के पंद्रह शहरों में रूसी सैनिकों का कहर जारी है। राजधानी कीव के जो हालात सामने आ रहे हैं, उससे तो लगता है कि जल्द ही यहां रूस के सैनिकों का नियंत्रण हो जाएगा। जाहिर है, युद्धग्रस्त शहरों में अब जो नागरिक फंसे हैं, उनकी सुरक्षा चिंता का बड़ा विषय है। अब तक लाखों लोग यूक्रेन छोड़ कर पड़ोसी देशों पोलैंड, रोमानिया, हंगरी आदि में शरण ले चुके हैं। लेकिन अभी भी लाखों लोग यूक्रेन में फंसे हुए हैं।

हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ से अपील की है कि वह हमले रोकने के लिए रूस पर दबाव बनाए। पर रूस किसी की कहां सुनने वाला है! जेलेंस्की इस हकीकत को भलीभांति समझ रहे हैं कि भले यूक्रेन रूसी हमलों का पूरी ताकत के साथ जबाव दे रहा है, पर वह लंबे समय तक उसके सामने टिक नहीं पाएगा। यूक्रेन की सैन्य शक्ति रूस के मुकाबले तो बहुत ही कम है। उधर, रूस यह घोषणा कर ही चुका है कि वह यूक्रेन को पूरी तरह हथियारविहीन करके ही दम लेगा।

अभी तक अमेरिका या किसी भी पश्चिमी देश ने यूक्रेन में अपनी सेना उतारने की हिम्मत नहीं दिखाई है। जिस तरह के हालात हैं, उनमें युद्ध जल्द खत्म होता लगता नहीं है। इसलिए नागरिकों को तबाही से बचाने के लिए रूस को ही बड़ी पहल करनी होगी और संघर्षविराम की दिशा में कदम बढ़ाना होगा, तभी निर्दोष नागरिक को मरने से बचाया जा सकेगा। यह सही है कि जंग में कब, कहां, कैसे, किसकी जान चली जाए, कोई नहीं जानता। पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि युद्ध के भी नियम होते हैं। इनका पालन होना चाहिए। मगर युद्धोन्मत्त रूस इनकी परवाह कर कहां रहा है!


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