'भाई दूध बहुत पतला होने लगा है। यह भैंस पानी पीने लगी है या नल खूब आने लगा है।' मैंने दूध वाले से कहा। 'क्या बताएं सा'ब। दूध तो वही है। पता नहीं भैंस को क्या हुआ है। पानी दुगुना पीने लगी है।' 'भाई ऐसे पानी पीने लगी है तो मेरा दूध तो कल से ही बंद कर दो। तुम्हारे दूध की एवज तो अच्छा स्वच्छ पानी पी लेना ज्यादा लाभदायी होगा।' मैं बोला। 'जैसी आपकी मर्जी। एक दिक्कत और हुई है। दूध की मात्रा तो उतनी ही है, लेकिन दूध लेने वाले ज्यादा हो गए हैं। हर आदमी होम डिलीवरी चाहता है। अब बताइए कि मांग और पूर्ति का सिद्धांत नहीं अपनाऊं तो क्या कमाऊंगा।' वह व्यावहारिक दलील देकर बोला। 'लेकिन जब भाव तुम बीस रुपए किलो का ले रहे हो तो फिर दूध तो ढंग का आना चाहिए न। न तो दही जमता और न मलाई आती।
' मैंने कहा। 'ऐसा है सा'ब। दही का भाव सात रुपए पाव है और आप जो दूध ले रहे हैं वह पांच रुपए पाव का है। मलाई हार्ट के लिए ठीक नहीं है। मोटापा बढ़ाती है। इसलिए मलाई का नहीं होना तो स्वास्थ्य के लिए ठीक है।' दूधवाले ने ढिठाई से कहा। मैंने कहा-'ठीक है, जाओ।' वह चला गया हंसता हुआ। दूधवाला फिर वही दूध और अधिक पतला कर ले आया और बोला-'दूध भले पतला है सा'ब। लेकिन है लाभदायी। गांधी जी बकरी का पतला दूध पीते थे-वह हल्का और सुपाच्य होता है। अभी जो तथ्य आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। भैंस के दूध में वसा बहुत होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल पता करके ही किया जाना चाहिए। इसलिए मैंने अपने सभी ग्राहकों के हित में दूध को काफी पतला कर दिया है।' 'लेकिन वह तो मैं भी कर सकता था। तुम तो गाढ़ा ही दो। अब असलियत यह है कि आधा किलो दूध में पाव पानी मैं मिलाता हूं ताकि तीन बच्चों को पाव-पाव दूध मिल सके। अब पानी तुम ही मिला लाओगे तो मेरा पाव पानी क्या करेगा।' मैं बोला।
दूध वाला निरीहता से बोला-'कोई बात नहीं। पाव पानी आप भी मिला दीजिए। दूध का रंग सफेद ही रहेगा और फिर पानी कोई नुकसान थोड़े ही करता है। डाक्टरों का कहना है कि पानी शरीर के लिए बहुत जरूरी है। पानी की कमी से कई रोग हो जाते हैं।' 'नहीं, तुम कल से दूध मत लाना। मैं बच्चों को थोड़ा ढंग का दूध पिलाना चाहता हूं।' वह-'ठीक है।' कहकर चला गया। दूसरा दूधवाला लगा लिया। लेकिन दूध वही का वही। उससे भी एक दिन मैंने कहा-'भाई मैंने दूधवाला इसलिए बदला था ताकि ढंग का दूध मिल सके। लेकिन तुमने तो मेरी आशाओं पर पानी फेर दिया है।' 'वह क्या था सा'ब, दूध की मांग बहुत बढ़ गई है। दूसरे लोग जैसा देते हैं, वैसा ही लेकर भी आब्लाइज महसूस करते हैं। आप चाहें तो कोई नया दूध वाला लगाओ।' 'भाई दूधवाले कब तक बदलूं। ढंग का दूध मिल जाए तो बच्चों का थोड़ा स्वास्थ्य बन जाए।' 'अरे सा'ब, स्वास्थ्य के लिए इन्हें ठीक जलवायु चाहिए। शहर में वैसे ही प्रदूषण बढ़ रहा है। ऊपर से आप शुद्ध दूध और पीना चाहते हैं। बच्चे नहीं पचा पाएंगे, या तो उलटी कर देंगे या फिर पचा नहीं पाने से बीमार हो जाएंगे।' 'लेकिन तुमसे अच्छा तो पहले दूधवाला जो दूध लाता था-वही ठीक था।' मैंने कहा। वह बोला-'उनसे ले लो। एक ही बात है। वे मेरे पिताजी हैं।' मैं अचरज से देखता रह गया उसे।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक