यूपीए शासन के दौरान केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने अंडमान निकोेबार द्वीप के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर का नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गांधी के नाम पर पत्थर लगा दिया था जबकि महात्मा गांधी कभी वहां गए ही नहीं और सावरकर ने आजादी की लड़ाई में वर्षों तक कालापानी की सजा को भोगा था। वीर सावरकर देश विभाजन के विरोधी और अखंड भारत के प्रबल पक्षधर थे। विभाजन के पहले से ही कांग्रेस की जो तुष्टिकरण नीति थी उसका कुटिल खेल आजादी के बाद भी जारी रहा।
अटल सरकार के दौरान जब संसद भवन में वीर सावरकर का चित्र लगाया जाने लगा तो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर वीर सावरकर का चित्र लगने से रोकने का प्रयास किया लेकिन राष्ट्रपति वीर सावरकर के त्याग, बलिदान और देशभक्ति का सम्मान करना चाहते थे। दरअसल वीर सावरकर का इतिहास दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक इतिहास तो आजादी से पूर्व का है, दूसरा आजादी के बाद का है। वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोकसभा का विरोध किया था और कहा था वह हमारे शत्रु की रानी थी, हम शोक क्यों करें? विदेशी वस्तुओं की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर, 1905 को वीर सावरकर ने ही जलाई थी।
वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय 8 जुलाई, 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैर कर फ्रांस पहुंच गए थे। वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्हें दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले चलो ईसाई सत्ता ने हिन्दू के पुनर्जन्म के सिद्धांत को मान तो लिया। उन्होंने कालापानी की सजा दस साल से भी अधिक वर्षों तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पौंड तेल रोज निकाला। उनका जीवन हिन्दुत्व को समर्पित था। अपनी पुस्तक 'हिन्दुत्व में हिन्दू कौन? इसकी परिभाषा में यह श्लोक लिखा था।
आसिन्धु सिन्धुपर्यन्तायस्य भारतभूमिका।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दु रीति स्मृतः।।''
अर्थात भारत भूमि के तीनों ओर से सिन्धुओं (समुद्रों) से लेकर हिमालय के शिखर से जहां से सिंधु नदी निकलती है वहां तक की भूमि जिसका पितृ (पूर्वजों) भूमि है यानी जिनके पूर्वज भी इसी भूमि से पैदा हुए और जिसकी पुण्य भूमि यानी तीर्थ स्थान इसी भूमि में वही हिन्दू होता है।
आज के कांग्रेसी शायद यह भूल गए कि इंदिरा गांधी वीर सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी मानती थी। उन्होंने वीर सावरकर के नाम पर डाक टिकट जारी किए थे। इसके अलावा श्रीमती गांधी ने उनकी स्मारक निधि के लिए 11 हजार रुपए का दान अपने खाते से दिया था और श्री सावरकर के कृतिक पर एक डाक्यूमेंट्री बनाने की भी अनुमति दी थी। कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि इंदिरा जी ने उनकी सराहना क्यों की थी। अंडमान की सेलुलर जेल का नाम वीर सावरकर के नाम से इतिहास में दर्ज है।
यह सही है कि वीर सावरकर और महात्मा गांधी में मतभेद थे। सावरकर का दृष्टिकोण साम्प्रदायिक न होकर वैज्ञानिक था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा ने भी हिन्दू राष्ट्रवाद को बुनियादी विचारधारा के अन्तर्गत अपनाया परन्तु कांग्रेस ने हमेशा यही प्रचार किया कि वीर सावरकर और हिन्दू महासभा साम्प्रदायिक विचारधारा एवं मुस्लिम विरोधी हैं। पहले वीर सावरकर से भयभीत होकर अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी की कैद में रखा।
आजादी के बाद प्रधानमंत्री नेहरू उनसे इतने भयभीत थे कि देश का हिन्दू कहीं उन्हें अपना नेता न मान बैठे। अंतः गांधी की हत्या के आरोप में उन्हें लालकिले में बंद रखा गया। बाद में न्यायालय ने आरोप प्रमाणहीन पा कर उन्हें बरी कर दिया था। अंग्रेजी शासनकाल में अपनी रिहाई के लिए सरकार को चिट्ठी लिखकर 7 माफीनामों का उल्लेख उन्होंने खुद अपनी आत्मकथा में किया है। सावरकर ने इन माफीनामों को अपनी रणनीति का हिस्सा माना था। इस तथ्य को सही ढंग से नहीं रखा गया। क्या वीर सावरकर की क्रांतिकारी भूमिका को भुलाया जा सकता है। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल चाहे वीर सावरकर को अपमानित करते रहें लेकिन यह राष्ट्र वीर सावरकर को चहुं दिशाओं से नमन करता है।