सुरक्षित वापसी
यूक्रेन में दो दिन से हो रहे हमलों के बीच वहां फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा गंभीर चिंता का विषय बन गई है। सोलह हजार से ज्यादा भारतीय नागरिक इस वक्त वहां हैं। इनमें वहां पढ़ने गए भारतीय विद्यार्थियों की संख्या भी खासी है।
Written by जनसत्ता: यूक्रेन में दो दिन से हो रहे हमलों के बीच वहां फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा गंभीर चिंता का विषय बन गई है। सोलह हजार से ज्यादा भारतीय नागरिक इस वक्त वहां हैं। इनमें वहां पढ़ने गए भारतीय विद्यार्थियों की संख्या भी खासी है। गुजरात के ढाई हजार, ओड़ीशा के डेढ़ हजार, तमिलनाडु के नौ सौ से ज्यादा, केरल के चार सौ और तेलंगाना, पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों के विद्यार्थी इनमें शामिल हैं। ऐसे में इनके परिजनों का परेशान होना स्वाभाविक है। लगातार मिसाइलों के धमाकों, गोलियों की आवाज और टैंकों की गड़गड़ाहट के बीच ये भारतीय नागरिक जिस संकट और मानसिक वेदना से गुजर रहे हैं, उसकी कल्पना भर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
विद्यार्थी अपने परिजनों को जो वीडियो भेज रहे हैं, उससे पता चलता है कि किस तरह ये लोग पल-पल काट रहे होंगे! हमलों से बचाव के लिए लोगों को छोटे-छोटे बंकरों में रखा गया है। खाने-पीने के सामान के लाले पड़ रहे हैं। मार्शल ला लग जाने के बाद सड़कों पर सन्नाटा पसर गया है। किसको पता कि कहां मिसाइलें गिरेंगी?
कहने को यूक्रेन में भारतीय दूतावास सक्रिय है और अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के अभियान में दिन-रात जुटा है। पर वहां जिस तरह के हालात हैं, उसमें दूतावास के लिए इतने सारे भारतीयों की सुरक्षा और उन्हें स्वदेश भेजना कठिन काम है। हालांकि दूतावास ने कई दिन पहले परामर्श जारी कर भारतीयों को अस्थायी रूप से यूक्रेन छोड़ने को कह दिया था। इसके बाद बीस हजार लोगों ने वापसी के लिए आनलाइन पंजीकरण करवाया था। इनमें से अब तक सिर्फ चार हजार लोग ही लौट पाए हैं। वैसे हर कोई इस उम्मीद में रहा होगा कि युद्ध टल जाएगा।
पर अब यूक्रेन ने दूसरे देशों के यात्री विमानों के लिए अपने हवाई मार्ग बंद कर दिए हैं। ऐसे में विदेशी विमान वहां जा नहीं सकते। दो दिन पहले भारत का एक विमान कीव के लिए गया भी था, लेकिन उतरने की इजाजत नहीं मिलने से खाली दिल्ली लौट आया। इसलिए भारतीयों को अब पहले सड़क मार्ग से हंगरी और रोमानिया ले जाया जा रहा है और फिर वहां से भारत के विमान इन्हें लेकर स्वदेश पहुंचेंगे।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए भारत की सरकार देर से चेती। सरकार जो कदम अब उठा रही है, वे अगर एक पखवाड़े पहले उठा लिए जाते तो आज जैसा हाहाकार नहीं मचता। ऐसा भी नहीं कि सरकार को इस बात का अनुमान नहीं रहा होगा कि यूक्रेन में आने वाले दिन कैसे होंगे। युद्ध की आशंका को लेकर अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश तो पहले ही अपने नागरिकों को बचाने के काम में जुट गए थे। सवाल है कि हम आखिर किस इंतजार में बैठे रहे?
हालांकि ऐसे ही संकट भरे दौर में भारत ने पहले भी दूसरे देशों से अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी करवाई है। पिछले साल तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों का मामला रहा हो या इराक में फंसे अपने नागरिकों को बचाने का अभियान हो, सरकार ने इन कामों को बखूबी किया था। तीन दशक पहले जब इराक ने जब कुवैत पर हमला कर दिया था, तब भी कुवैत में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया था। ऐसा नहीं कि हमारे पास तजुर्बे या संसाधनों का अभाव है, पर नीतिगत स्तर पर होने वाले फैसलों में देरी से जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उन्हें तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!