अफवाह की हिंसा

देश के कई राज्यों में बच्चा चोरी के फर्जी अफवाहों की घटनाओं की वजह से कई लोगों को हिसंक घटनाओं का सामना करना पड़ा है। अफवाह यह होता है कि बच्चा चोर आएगा

Update: 2022-09-14 05:35 GMT

Written by जनसत्ता: देश के कई राज्यों में बच्चा चोरी के फर्जी अफवाहों की घटनाओं की वजह से कई लोगों को हिसंक घटनाओं का सामना करना पड़ा है। अफवाह यह होता है कि बच्चा चोर आएगा, बच्चे को लेकर चला जाएगा। इसी की वजह से झुंड बना कर लोग किसी कर्मचारी, किसी भीख मांगने वाले, किसी बुजुर्ग, किसी मानसिक रोगी को पकड़ कर उसको मारने-पीटने लगते हैं। बच्चा चोरी की वजह से ऐसी घटनाएं देश के कुछ राज्यों में बहुत बुरी तरह फैली हुई हैं।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बच्चा चोरी की फर्जी अफवाह की वजह से कई हिंसक घटनाएं सामने आई हैं। सही है कि कहीं-कहीं बच्चा चोरी के मामले सामने आते हैं, लेकिन इसमें किसी गिरोह के तौर पर काम करने की पुष्टि नहीं हो पाई है। उत्तर प्रदेश की पुलिस को बच्चा चोरी की 30 से ज्यादा सूचनाएं मिली हैं। 17 मामलों में एफआइआर दर्ज की गई और 34 लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। अनजान लोगों से हो रही मारपीट के मामले पर उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी का कहना है कि गांवों में अक्सर उन लोगों की पिटाई कर दी जा रही है, जिनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता है और वे विक्षिप्त हैं। इस मामले में पुलिस ने अपील की है कि आम लोग कानून को अपने हाथ में न लें।

काफी साल पहले भी उत्तर प्रदेश से ही मुंहनोचवा की अफवाहें भी उड़ी थीं। लोग बताते हैं कि उस दौर में दहशत इस कदर फैली थी कि लोगों ने रात में घरों से बाहर निकलना तक छोड़ दिया था। इसी तरह कुछ साल बाद चोटीकटवा की अफवाहें भी राज्य में खूब फैली थीं। हर दिन कहीं न कहीं किसी महिला की चोटी कटने की सूचनाओं की झड़ी लग गई थी। इसी तरह का चलन अब बच्चा चोरी की अफवाहों का बनता जा रहा है।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि लोग किसी अफवाह पर ध्यान न देकर कानून को अपने हाथ में न लें। कोई घटना होती है तो सर्वप्रथम पुलिस को सूचित करें। सोशल मीडिया में प्रसारित होने वाली हर खबर सच नहीं होती। इसलिए लोगों को अपने विवेक और बुद्धि का भी प्रयोग करना चाहिए और फर्जी अफवाह फैलाने वाली खबरों से दूर रहना चाहिए। ऐसी खबरों को बिल्कुल भी किसी को नहीं भेजना चाहिए। सतर्कता ही सबका बचाव है।

जब हम दिल्ली मेट्रो के चमचमाते साफ-सुथरे मेट्रो स्टेशन के दायरे में प्रवेश करते हैं तो यह शायद ही सोच पाते हैं कि इसे साफ-सुथरा रखने में कितने मजदूर तबके के लोगों की कड़ी मेहनत होती है जो पूरा दिन पानी की बाल्टी, पोंछा, वाइपर और क्लीनर लिए इस सफाई मिशन में लगे रहते हैं, सिर्फ तीन सौ रुपए या कुछ सौ रुपए की दिहाड़ी पर। शायद कोई छुट्टी नहीं, कोई रविवार नहीं। मुश्किल से पांच या छह हजार रुपए बच पाते हैं उनके पास। क्या आज के दौर में कोई इतने कम पैसे में अपना परिवार और घर चला सकता है?

दिल्ली के मुख्यमंत्री हर रोज जनता के हित की बात तो करते हैं, लेकिन वे सच्चाई से रूबरू नहीं है। सुरक्षा गार्डों के नाम पर दिल्ली की बसों और बस स्टैंड पर मोबाइल चलाते निठल्ले लोगों पर तो दिल्ली सरकार बेवजह करोड़ों रुपए तन्ख्वाह के नाम पर खर्च कर रही है। फिर मेट्रो में सफाई कर्मियों के लिए ठेकेदारों के माध्यम से नियुक्ति क्यों, जो आधी तन्ख्वाह खुद डकार जाते हैं और आधी मजदूर को देते हैं। मेट्रो कर्मचारी भी इनके साथ ज्यादती करने में पीछे नहीं रहता।

कहने को तो मजदूर तबके के हितों की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, उनके लिए न्यूनतम वेतन कानून लाया जाता है, लेकिन यह देखने के लिए कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि मजदूर को न्यूनतम तनख्वाह मिल भी रही है या नहीं। सरकार अगर इन लोगों के दुखों से जरा सा भी सरोकार रखती है तो उसे दिल्ली मेट्रो में तैनात सफाई कर्मियों के हितों के लिए कोई सकारात्मक कदम उठाना चाहिए।


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