RRR, पुष्पा और KGF-2 : इन फिल्मों को 'पैन-इंडियन' सिनेमा कहना सांस्कृतिक तौर पर पीछे लौटने जैसा है

हाल में तीन दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Film) आरआरआर (RRR), पुष्पा (Pushpa) और केजीएफ -2 (KGF-2) ने पूरे भारत में बॉक्स ऑफिस पर भारी कमाई की और देश की फिल्म इंडस्ट्री में एक नया ट्रेंड-सेटिंग ‘पैन-इंडिया’ मानदंड बनाया

Update: 2022-05-17 11:16 GMT

जी प्रमोद कुमार | 

हाल में तीन दक्षिण भारतीय फिल्मों (South Indian Film) आरआरआर (RRR), पुष्पा (Pushpa) और केजीएफ -2 (KGF-2) ने पूरे भारत में बॉक्स ऑफिस पर भारी कमाई की और देश की फिल्म इंडस्ट्री में एक नया ट्रेंड-सेटिंग 'पैन-इंडिया' मानदंड बनाया. हालांकि इससे पहले तेलुगु फिल्म 'बाहुबली' ने 2015 और 2017 में इसी तरह की धूम मचाई जो सिर्फ एक बार की घटनाएं थीं, लेकिन अब मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री दोनों ही इसे एक नई सनसनी के तौर पर देख रहे हैं.
हकीकत तो यह है कि साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री और मुंबई में मौजूद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बड़े नामों ने यह नया शब्द 'पैन-इंडियन' गढ़ा है क्योंकि कुछ गैर-हिंदी भाषी फिल्मों ने हिंदी भाषी क्षेत्र में दर्शकों का दिल जीता है. इस तरह के टर्म गढ़ने का आधार यह है कि केवल हिंदी फिल्में ही पूरे भारत में इस तरह के लैंग्वेज-न्यूट्रल (language-neutral) बिज़नेस करने में सक्षम हैं. लेकिन सामाजिक-राजनीतिक रूप से इस नए टर्म को गढ़ना कितना सही है और यदि इसे नियमित तौर पर ट्रेंड के रूप में दोहराया जा सकता है तो यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसकी पड़ताल करने की आवश्यकता है.
दक्षिण भारत की फिल्म पैन-इंडियन फिल्म क्यों है?
दुर्भाग्य से समस्या 'पैन-इंडियन' शब्द के साथ-साथ इसके इर्द-गिर्द दिखने वाले अत्यधिक उत्साह से भी है. इसकी सबसे बुनियादी बात यह है कि यह गैर-हिंदी भाषाओं को 'अलग-थलग' कर रहा है, जैसा कि अभिनेता सिद्धार्थ (Actor Siddharth) ने कहा है. उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'पैन-इंडिया जैसे शब्द फिल्मों को अलग करने का एक तरीका है जो हिंदी में नहीं हैं. इसका मतलब है कि हम ख़ास लोग हैं. जो कोई भी आता है वह बाहरी है. आप कभी नहीं कहते हैं कि बॉलीवुड फिल्म पैन-इंडियन यानि अखिल भारतीय फिल्म है. आप बस इसे कहते हैं बॉलीवुड. फिर दक्षिण भारत की फिल्म पैन-इंडियन फिल्म क्यों है? वह तो कन्नड़ फिल्म है या तेलुगु फिल्म है.'
सिद्धार्थ ठीक कह रहे हैं. 'दंगल' जैसी फिल्म हिंदी भाषा में बनी और केवल 40 प्रतिशत से अधिक भारतीय आबादी द्वारा ही यह भाषा बोली जाती है, उसे 'पैन-इंडियन' नहीं कहा जाता है. ऐसे में उतनी ही लोकप्रिय तेलुगु फिल्म 'पैन-इंडियन' क्यों बन जाती है? वास्तविकता यह है कि दोनों फिल्में उन लोगों तक पहुंच गई हैं जो केवल अपनी मूल भाषाओं में फिल्में देखने के आदी हैं? हिंदी सहित अन्य कई भाषाओं की फिल्मों में दिखने वाले मलयालम अभिनेता दुलकर सलमान (Malayalam actor Dulqer Salman) ने कहा कि उन्हें यह टर्म लगभग इस कारण से परेशान करता है कि सभी भारतीय भाषाएं समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. क्या भारतीय संविधान (Indian Constitution) का अनुच्छेद 344(1) और 351 ऐसा नहीं कहता है?
दुर्भाग्य से मुद्दा यह है कि बिना किसी विवाद के अन्य भाषाओं पर हिंदी का बोलबाला है. 'पैन-इंडियन' दावे का समर्थन करके दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री वास्तव में इस तरह के वर्चस्व को स्वीकार कर रहा है. केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को और अधिक आगे बढ़ाने के अभियान के साथ देखा जाए तो इस तरह के टर्म को स्वीकार करना सांस्कृतिक रूप से समरूप (homogenous) भारत की स्वीकृति है; या कम से कम कुछ फिल्में ऐसे समरूप चरित्र को हासिल करने की कोशिश कर रही हैं जो देश के मूल भावना के खिलाफ है. दरअसल, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता तमिल डायरेक्टर और एक्टर अमीर (Tamil director/actor Ameer) ने इस राजनीतिक मकसद की तरफ उपहासपूर्ण तरीके से इशारा किया.
भारतीय फिल्में संभावित तौर पर 'पैन-इंडियन' हैं
स्पष्ट तौर पर 'पैन-इंडियन' सिनेमा के प्रमुख प्रतीक बाहुबली (Bahubali) और आरआरआर (RRR) दोनों के बहुसंख्यक (majoritarian) सांस्कृतिक मायने हैं जो भारत को उसके अंतर्निहित अनेकता की भावना के बिना प्रस्तुत करते हैं. यदि एक गैर-बहुलवादी भारत 'पैन-इंडियन' है, तो यह साफ तौर पर प्रतिगामी सांस्कृतिक विचार को धोखा देता है. यही बात निर्देशक आमिर ने कही और शायद कुछ हद तक सिद्धार्थ ने भी. जब दुलकर इसी तरह की भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं, 'तो, आप अपनी फिल्म को जितना हो सके उतना किसी मुद्दे पर आधारित सकते हैं, उस बैकग्राउंड की कहानी बनाएं और उसे बड़ा करें, अलग तरह से उसकी कास्ट करें और शायद अलग-अलग मार्किट से कुछ परिचित चेहरों को शामिल करें. मुझे वह सब मिलता है लेकिन मुझे नहीं लगता कि आपको उस विशेष कहानी की संवेदनशीलता या संस्कृति को खोना चाहिए.'
ओटीटी (OTT) और डिजिटल थिएट्रिकल डिस्ट्रीब्यूशन के आने से हिंदी सहित सभी भारतीय फिल्में संभावित तौर पर 'पैन-इंडियन' हैं. रजनीकांत (Rajnikanth) की फिल्में तमिल में जयपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों में रिलीज होती हैं, ठीक वैसे ही जैसे चेन्नई या कुरनूल में सलमान खान की फिल्में रिलीज होती हैं. इसी तरह, मलयालम, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु फिल्में भी देश भर में ठीक-ठाक सफलता के साथ रिलीज होती हैं. ओटीटी पर कुछ सबसे बड़ी सराहनीय फिल्में गैर-हिंदी भाषी रही हैं. वास्तव में भारतीय भाषा की फिल्में न केवल भारत के भीतर बल्कि दुनियाभर में दिखाई जाती हैं. उदाहरण के लिए, नेटफ्लिक्स ने अपनी मलयालम फिल्म मिननल मुरली (Minnal Murali) को स्पेनिश और पुर्तगाली सहित आठ भाषाओं में रिलीज़ किया, जिसके सबटाइटल 38 भाषाओं में उपलब्ध हैं.
कमर्शियल सफलता की दृष्टि से देखा जाए तो ये 'पैन-इंडियन' फिल्में कभी-कभार बड़े पर्दे पर हिट होती हैं, हालांकि भारतीय फिल्में ओटीटी और सैटलाइट या डिजिटल डिस्ट्रब्यूशन जैसे लैंग्वेज-न्यूट्रल यूनिवर्सल प्लेटफार्मों के कारण पूरे देश में दर्शकों को आकर्षित करती रहेंगी. नई संस्कृतियों और संवेदनाओं के आदान-प्रदान बढ़ने से भारतीय दर्शकों को अन्य भाषाओं की फिल्मों को और अधिक देखने-समझने का मौका मिलेगा. यह भारत में हो रहा वास्तविक परिवर्तन है जिसने कम सुर्खियां बटोरी हैं. इसके अलावा उनमें से कुछ फिल्म बड़ी कमाई करते हैं, लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए उन्हें पैन-इंडियन' कहने का कोई कारण नहीं है. लैंग्वेज इंडस्ट्री को अप्रत्यक्ष तारीफ के प्रति सतर्क रहना चाहिए और खुद को ऐसा कहना बंद कर देना चाहिए, भले ही वे हिंदी इंडस्ट्री के मुनाफे को पार करने के लिए उत्साहित हों. आखिरकार, सभी गैर-हिंदी फिल्म इंडस्ट्री या अकेले साउथ फिल्म इंडस्ट्री पूरे हिंदी भाषी दुनिया की तुलना में अधिक फिल्में बनाती हैं.
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