अपराध की जड़ें
आपराधिक मामलों में बढ़ोतरी के आंकड़े न सिर्फ पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाते हैं, बल्कि समाज की दशा-दिशा का भी पता देते हैं। दिल्ली पुलिस ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया है
Written by जनसत्ता: आपराधिक मामलों में बढ़ोतरी के आंकड़े न सिर्फ पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाते हैं, बल्कि समाज की दशा-दिशा का भी पता देते हैं। दिल्ली पुलिस ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया है कि पिछले साल आपराधिक घटनाओं में पंद्रह फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई। तीन लाख छह हजार से ऊपर मामले सामने आए। इसमें चोरी, झपटमारी, सेंधमारी जैसे छोटे-मोटे अपराधों के अलावा संगीन मामलों और महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है।
दिल्ली जैसे संवेदनशील शहर, जहां देश की राजधानी होने की वजह से सुरक्षा व्यवस्था दूसरे शहरों की तुलना में अधिक पुख्ता मानी जाती है, अगर वहां आपराधिक मामलों में इस तरह बढ़ोतरी हो रही है, तो निस्संदेह यह पुलिस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। उसे अपने सुरक्षा तंत्र की कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने पर विचार करना चाहिए।
मगर इसके साथ ही यह भी विचार का विषय होना चाहिए कि आखिर दिल्ली में अपराध बढ़ क्यों रहे हैं। यों हर शहर में आपराधिक घटनाओं पर काबू पाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है, पर दिल्ली में इनके बढ़ने की वजहें उनसे कुछ अलग भी हो सकती हैं। दिल्ली न सिर्फ रोजगार और व्यावसायिक गतिविधियों की वजह से देश के बहुत सारे इलाकों के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है, बल्कि राजनीतिक केंद्र होने की वजह से भी इसके प्रति लोगों में आकर्षण बना रहता है।
पिछले साल आपराधिक घटनाएं बढ़ने की कुछ वजहें स्पष्ट हैं। कोरोना की वजह से रोजगार के अवसर कम होने, बहुत सारे लोगों की नौकरियां छिन जाने और कमाई के साधन खत्म हो जाने की वजह से लाखों लोगों के सामने अपना दैनिक खर्चा जुटाना मुश्किल हो गया है। ऐसे में कुछ लोगों ने सेंधमारी, चोरी, झपटमारी जैसा पैसा कमाने का आसान जरिया अपना लिया होगा। इन्हीं स्थितियों के चलते बहुत सारे लोग तनाव और अवसाद की गिरफ्त में आ गए, जिनकी हताशा अपने परिवार के लोगों पर निकलती देखी गई। उसमें महिलाएं आसानी से शिकार बनीं।
कोरोनाकाल में पूर्णबंदी के दौरान भी घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी के आंकड़े दर्ज हुए थे। ऐसे लोगों को अवसाद और बेरोजगारी की स्थितियों से बाहर निकालने के उपायों पर विचार होना चाहिए, तभी ऐसे अपराधों पर काबू पाया जा सकता है। हालांकि पुलिस ने लोगों की इस बात के लिए सराहना की है कि उन्होंने आपराधिक मामले दर्ज कराने में मुस्तैदी दिखाई। मगर केवल इतने से आपराधिक मामलों पर अंकुश लगाने में गारंटी नहीं मानी जा सकती।
सबसे चिंता का विषय संगीन अपराधों में बढ़ोतरी है। तमाम चौकसी और कड़ाई के बावजूद हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओं पर काबू नहीं पाया जा सका है। ऐसे मामलों में अक्सर केवल विकृत मानसिकता के लोग नहीं, बल्कि पेशेवर अपराधी शामिल होते हैं। जिस तरह अदालतों के भीतर घुस कर हत्या की घटनाओं को अंजाम देने तक में उन्हें भय नहीं होता, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि पुलिस का खौफ खत्म हो रहा है।
दिल्ली पुलिस की एक शिकायत यह रहती है कि उसका बड़ा अमला विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में तैनात रहता है, जिसके चलते आम नागरिकों की सुरक्षा में अपेक्षित चौकसी नहीं बरती जा पाती। संगीन अपराधों में बढ़ोतरी दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था के लिए ज्यादा खतरनाक है, इसलिए इस मामले में किसी भी तरह की ढिलाई या बहानेबाजी से काम नहीं चलेगा। दिल्ली पुलिस को बढ़ते अपराध की वजहों और अपराधियों के ठिकानों की पहचान कर इस दिशा में व्यावहारिक कदम उठाना ही होगा।