भ्रष्टाचार की जड़ें
हर राजनीतिक दल और हर सरकार दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर यह संदेश देने का भी प्रयास करती हैं कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती बरत रही हैं।
Written by जनसत्ता; हर राजनीतिक दल और हर सरकार दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर यह संदेश देने का भी प्रयास करती हैं कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती बरत रही हैं। मगर आज तक किसी भी सरकार के समय ऐसा उल्लेखनीय उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें भ्रष्टाचार न हुए हों। हर सरकार के समय छापे पड़ते हैं, भारी मात्रा में नगदी और गैरकानूनी रूप से जमा संपत्ति जब्त की जाती है, कुछ दोषियों को सलाखों के पीछे भी डाला जाता है, मगर उनसे शायद सबक कोई नहीं लेता। यही वजह है कि हर बार भ्रष्टाचार के आंकड़े कुछ बढ़े हुए ही दर्ज होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में भारत बरसों से भ्रष्टाचार के मामले में कुछ अग्रणी देशों की कतार में खड़ा नजर आता है। अगर सचमुच सरकारें भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर गंभीर होतीं, तो शायद यह सूरत काफी पहले बदल चुकी होती। मगर आज स्थिति यह है कि प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जहां भी हाथ डालता है, वहीं से सैकड़ों करोड़ की नगदी, जेवर, बहुमूल्य वस्तुएं बरामद होती हैं। कन्नौज के एक व्यापारी और नोएडा के एक पूर्व अधिकारी के घर पड़े छापे इसके उदाहरण हैं। झारखंड की खनन सचिव के ठिकानों से मिली नगदी इसका ताजा उदाहरण है।
कुछ विभागों की तो पहचान ही भ्रष्टाचार की वजह से बनी हुई है। खनन विभाग उनमें से एक है। झारखंड में कोयला और दूसरे खनिजों की खदानें बहुत हैं। उनके अधिकारी और ठेकेदार किस तरह मिलीभगत करके धोखाधड़ी करते रहते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में वहां के खनन सचिव के बेदाग होने पर शायद ही कोई भरोसा करे। यूपीए सरकार के समय कोयला खदानों के आबंटन में भारी अनियमितता के आरोप लगे थे। उसमें संलिप्त लोगों को लेकर जांच अब तक चल रही है।
उसी संदर्भ में झारखंड की खनन सचिव के घर पर छापे पड़े। इसके अलावा झारखंड के एक जिले में मनरेगा के कोष से गैरकानूनी तरीके से पैसे की निकासी की शिकायत थी, उस सिलसिले में भी भारी नगदी की बरामदगी हुई है। कोयला खदानें उत्पादन के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही हैं, उन्हें निजी हाथों में सौंपने की कोशिशें भी फलीभूत नहीं हो पा रहीं। ऐसे में जब वे भ्रष्टाचार में डूबी रहेंगी, तो भला उनकी उत्पादकता को लेकर कितनी उम्मीद की जा सकती है। मनरेगा लोगों को सौ दिन के रोजगार की गारंटी योजना है, मगर यह आज इस कदर भ्रष्टाचार ग्रस्त है कि जरूरतमंदों को आधे समय भी काम नहीं मिल पाता। जिन्हें मिलता भी है, उन्हें पूरी मजदूरी नहीं मिल पाती। पैसा बिचौलिए और फर्जी लोग डकार रहे हैं।
भ्रष्टाचार किसी भी देश की तरक्की में सबसे बड़ा बाधक है, यह बात हर राजनेता, अधिकारी जानता है, मगर इसे रोकने की इच्छाशक्ति किसी में नजर नहीं आती। जो रोकने का प्रयास करता है, उसकी जान का खतरा बना रहता है। इस तरह हमारे देश में भ्रष्टाचार अब प्रकट है। अब सरकारें भी भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर अपने विरोधियों को सबक सिखाने की ही कोशिश करती देखी जाती हैं। इस तरह भ्रष्टाचार एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह स्वीकृत हो चला है। ऐसे में थोड़े-थोड़ समय पर अधिकारियों, नेताओं, व्यापारियों आदि के ठिकानों पर छापे मारने भर से इस नासूर का इलाज संभव नहीं है। इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।