राह रोकने वाली राजनीति, किसानों के बहाने विपक्ष देना चाह रहा है मुद्दों को तूल
किसानों के बहाने विपक्ष देना चाह रहा है मुद्दों को तूल
इस पर हैरानी नहीं कि जब किसान संगठन अपने आंदोलन को खत्म करने के संकेत दे रहे हैं, तब विपक्ष इस कोशिश में जुट गया है कि किसी बहाने इन संगठनों के मुद्दों को तूल दिया जाता रहे। विपक्ष की इस कोशिश के चलते यदि यह आंदोलन जारी रहे तो हैरत नहीं। वैसे भी किसान नेता इस इरादे से लैस दिख रहे हैं कि कृषि कानूनों को वापस लेकर झुकी सरकार को और अधिक झुकाया जाए। इसीलिए नित-नई मांगें पेश की जा रही हैं और उन पर अड़ियल रवैये का परिचय भी दिया जा रहा है।
पता नहीं सरकार किसान नेताओं की मांगों के आगे और कितना झुकेगी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि वह ऐसा करती है तो उसकी छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इससे भी खराब बात यह होगी कि उन तत्वों को बल मिलेगा, जो जोर-जबरदस्ती सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा कर अपनी मांगें मनवाने पर अड़ जाते हैं। यदि ऐसा हुआ तो इससे कुलमिलाकर शासन करना और अधिक कठिन ही होगा। यह वह बुनियादी बात है, जिसे सत्तापक्ष के साथ विपक्ष को भी समझना चाहिए।
कोई भी संगठन हो, यदि उसकी मांगें जायज हों तो उन्हें मानने में हीलाहवाली नहीं की जानी चाहिए और यदि वे अनुचित हों तो फिर उन्हें मानने से इन्कार किया जाना चाहिए।कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी विपक्ष जैसे किसान संगठनों के मुद्दों को हवा दे रहा है, वैसे ही अपने 12 सांसदों के निलंबन को भी। राज्यसभा में हुड़दंग मचाने वाले सांसदों के निलंबन में कुछ भी गलत नहीं। हुड़दंगी सांसदों के निलंबन का विरोध अशोभनीय आचरण को जायज ठहराना ही नहीं, एक तरह से चोरी और सीनाजोरी वाली कहावत को चरितार्थ करना भी है।
यद्यपिसत्तापक्ष सांसदों का निलंबन खत्म करने की विपक्ष की बेजा मांग को मानने के लिए तैयार नहीं, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। उसे अवसर का लाभ उठाते हुए ऐसे नियम-कानून बनाने चाहिए, जिससे अशोभनीय आचरण करने वाले सांसदों को उनके किए की सजा मिल सके और उनके दलों की ओर से संसद की कार्यवाही बाधित न की जा सके।
अपनी अशोभनीय हरकतों के लिए निलंबित सांसद संसद के बाहर धरना-प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन उनकी तरफदारी करने वालों को सदन के भीतर हंगामा करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इसे एक किस्म का संसदीय अपराध करार दिया जाना चाहिए। यदि सदनों में हुड़दंग रोकने के लिए कोई सख्त नियम-कानून नहीं बनाए जाते तो विधानमंडलों का चलना मुश्किल ही होगा। गैर जरूरी मुद्दों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर संसद की कार्यवाही बाधित करना राष्ट्र की राह रोकने वाली सस्ती राजनीति है।
दैनिक जागरण