बढ़ता विद्रोह, बेअसर नेता, कांग्रेस पार्टी खुद देश को 'कांग्रेस मुक्त भारत' बनाएगी?
इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन की शुरुआत सूबों में विद्रोह से ही होती रही है
अजय झा। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन की शुरुआत सूबों में विद्रोह से ही होती रही है . साम्राज्यों का अंत तो भारत में बहुत पहले हो चुका था, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजाओं का भी अंत हो गया. फिर शुरू हुआ स्वतंत्र भारत में कांग्रेस पार्टी का साम्राज्य और नेहरु-गांधी परिवार का शासन. पर अब जिस तरह से कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में विभिन्न सूबों में बगावत की शुरुआत हो गयी हैं, नेहरु-गांधी परिवार का सिंहासन डोलता दिखने लगा है. कभी पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का ही शासन होता था जो धीरे-धीरे अब तीन प्रदेशों में ही सिमट कर रह गया है. और इन तीनों प्रदेशों में लगातार बढ़ता विद्रोह कांग्रेस पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है.
गांधी परिवार के हस्तक्षेप के बाद लगने लगा था कि पंजाब (Punjab) में कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी लड़ाई का अंत हो जाएगा और पार्टी एकजुट हो कर अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की तैयारी में जुट जायेगी. अब वह भ्रम भी टूट गया है, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (CM Amarinder Singh) और नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के खेमों में उठापटक बढ़ती ही जा रही है, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा और उसका पालन शायद ज्यादा आसान है पर पंजाब में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की लड़ाई में युद्ध विराम की संभावना के अभी कोई आसार नहीं दिख रहे हैं.
चुनाव में 6 महीनों से भी कम समय बचा है, पर जिस तरह से सिद्धू खेमा अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मुहिम में लगा हुआ है, लगता तो यही है कि सिद्धू खेमे को पार्टी की जीत की ज्यादा फ़िक्र नहीं है. उनका वन पॉइंट एजेंडा है अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाना. सिद्धू गुट के कुछ मंत्री और विधायकों ने दो दिन पहले घोषणा की थी कि वह दिल्ली कूच करने वाले हैं और दिल्ली में तब तक डेरा डाले रहेंगे जबतक उनकी मुलाकात पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी या पार्टी के बेताज बादशाह राहुल गांधी से नहीं हो जाती. हालांकि इस बात की सम्भावना बहुत कम है कि गांधी परिवार उनसे मिलेगा भी.
छत्तीसगढ़ में भी कुर्सी के लिए खींचतान शुरू है
वहीं कल राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में खुद द्वारा लगायी गयी आग को बुझाने की कोशिश करते दिखे. 2018 में जब राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने छत्तीसगढ़ में पार्टी की शानदार विजय के बाद नेतृत्व के सवाल को सुलझाने के लिए एक फार्मूला बनाया था जिसके तहत उन्होंने स्पिलिट लीडरशिप का फैसला लिया. भूपेश बघेल को पहले ढाई वर्ष तक मुख्यमंत्री रहना था और मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार टी.एस. सिंह देव को बाद के ढाई वर्षों तक. जून में बघेल का मुख्यमंत्री के रूप में ढाई वर्ष पूरे हो गए और टी. एस. सिंह देव ने पार्टी को राहुल गांधी के वादे की याद दिलानी शुरू कर दी.
टीएस सिंह देव पिछले ढाई वर्षों से प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री थे, कागजों पर अब भी हैं, पर जब सरकार को करोना के आशंकित तीसरे दौर से लड़ने की तैयारी करनी थी, सिंह देव ने नाराज़ हो कर अपने आप को मंत्रालय के काम काज से दूर कर लिया. स्प्लिट लीडरशिप अक्सर गठबंधन की सरकारों में देखा जाता था, पर यह पहला अवसर था कि एक बहुमत की सरकार में मुखिया के नाम पर स्प्लिट लीडरशिप की सोच रखी गई. कल राहुल गांधी के घर पर बघेल, सिंह देव, राज्य के प्रभारी पी.एल. पुनिया और पार्टी के संगठन महामंत्री के.सी. वेणुगोपाल की बैठक लगभग तीन घंटे तक चली.
लगता यही है कि राहुल गांधी अपने वादे से मुकर गए हैं और बघेल को जीवनदान मिल गया है. पुनिया ने बताया कि बैठक में नेतृत्व के विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई. अगर नेतृत्व के मुद्दे पर चर्चा नहीं होनी थी तो बघेल और सिंह देव को दिल्ली क्यों बुलाया गया था, यह समझ से परे है. अब देखना होगा कि क्या सिंह देव चुप चाप बैठ जाएंगे या फिर बघेल की नींव खोदना शुरू करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप प्रदेश में कांग्रेस पार्टी कमजोर हो सकती है.
राजस्थान अभी भी गहलोत और पायलट में उलझा है
तीसरे कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान में घमासान पिछले 15 महीनों से चल रहा है. राजस्थान में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग भी नहीं है. पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के गुट की मांग सिर्फ इतनी ही है कि पायलट के करीबियों को मंत्रीमंडल और पार्टी के प्रदेश इकाई में जगह मिले. पायलट गुट का विद्रोह कांग्रेस आलाकमान ने पिछले साल यह कह कर शांत कर दिया था कि उनकी मांग मानी जाएगी. एक के बाद एक, पार्टी के बड़े नेता जयपुर के चक्कर लगा चुके हैं पर गहलोत ने किसी की बात नहीं सुनी और पायलट गुट को अभी भी दरकिनार कर रखा है. गांधी परिवार में शायद इतनी शक्ति नहीं है कि वह गहलोत और पायलट को आमने सामने बिठा कर इस समस्या का हल निकालें. अब बस इंतजार इसी का है कि कब पायलट गुट एक बार फिर से विद्रोह का बिगुल बजाएगा. और अगर ऐसा हुआ तो नुकसान कांग्रेस पार्टी का ही होगा.
पार्टी के अंतर्कलह को सुलझाने के बजाय कांग्रेस 2024 की लड़ाई में जुटी है
कांग्रेस शासित तीनों प्रदेशों में विद्रोह की स्थिति है. कुछ अन्य राज्य भी हैं जहां पार्टी सत्ता में नहीं है पर घमासान चल रहा है. जैसे कि हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के बीच की लड़ाई, तमिलनाडु में नेतृत्व परिवर्तन के नाम पर विवाद और उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के दावेदार को चुनने का विवाद.
इन सबकी सुध लेने और अपने घर को संभालने की जगह पार्टी आलाकमान 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी एकता के प्रयासों में जुटी हुई है, साथ ही साथ कांग्रेस आलाकमान यह सुनिश्चित करने में लगी हुई है कि चाहे जो भी हो राहुल गांधी को ही विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाना है. उसके लिए ज़रूरी है कि पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों में ही रहे.
अपने ही दिग्गज नेताओं से परेशान है गांधी परिवार
कांग्रेस के कुछ बड़े नेता पार्टी की लगातार गिरती लोकप्रियता से चिंतित थे. एक वर्ष पहले उन्होंने पार्टी को ऐसे नेताओं से मुक्त करने की मुहिम छेड़ी जो सिर्फ दिल्ली में बैठ कर ही पार्टी का हर फैसला करते हैं, बिना जमीनी हकीकत जाने. उन्होंने एक पत्र लिख कर सोनिया गांधी से पार्टी में एक लम्बे अर्से से लंबित अंतरिम चुनाव कराने की मांग की थी, ताकि पार्टी को चुने हुए नेता चलाएं ना कि ऐसे नेता जो सिर्फ चमचागिरी करके पार्टी के अहम पदों पर मनोनीत हो जाते हैं. उन्हें बागी कहा जाने लगा.
चुनाव तो नहीं हुआ ना ही इसके होने के कोई आसार हैं. हां, चुनाव की मांग करने वालों को पार्टी में दरकिनार ज़रूर कर दिया गया है. पर वह भी चुप नहीं बैठे हैं जिसके कारण पार्टी आलाकमान का सारा फोकस सिर्फ गांधी परिवार को सुरक्षित करने और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विकल्प प्रस्तुत करने में लगा हुआ है. नतीजा चारों तरफ बढ़ता विद्रोह और कमजोर पड़ता गांधी परिवार.
क्या कांग्रेस गांधी परिवार मुक्त हो जाएगी?
इतिहास के पन्नों में ऐसे कई किस्से दर्ज हैं, जब साम्राज्यों का अंत इन्हीं परिस्थितयों में हुआ था. जो अभी कांग्रेस पार्टी में दिख रही हैं. यह उम्मीद करना कि रातों रात राहुल गांधी इतने लोकप्रिय नेता बन जाएंगे कि समस्त भारत उनके नाम पर वोट डालेगा और केंद्र में उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन जाएगी, सच्चाई से मुंह मोड़ने जैसा ही है. कांग्रेस पार्टी के लगातार पतन का सबसे बड़ा कारण ही है कि पार्टी की किसी को चिंता नहीं है, सभी को सिर्फ पद की चिंता है. यही हाल रहा तो या तो कांग्रेस पार्टी स्वयं ही बीजेपी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करेगी या फिर वह दिन दूर नहीं कि पार्टी में विद्रोह इतना बढ़ जाएगा कि गांधी परिवार को पार्टी की कमान किसी और के हाथों देने की नौबत आ जाएगी.