घोर संवेदनहीनता का परिणाम
दिल्ली में एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से दो मजदूरों की मौत हो गई और चार बीमार हो गए।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले हफ्ते दिल्ली में एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से दो मजदूरों की मौत हो गई और चार बीमार हो गए। इस घटना से सेप्टिक और सीवर टैंक में घुस कर सफाई करने वालों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर सवाल खड़ा हुआ है। देश में सेप्टिक टैंक की सफाई जोखिम भरा काम है। मजदूर बिना सुरक्षा उपकरण के जान जोखिम में डालकर सेप्टिक और सीवर टैंक की सफाई करने उतर जाते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पीड़ित परिवारों के सदस्यों और दिल्ली फायर सर्विस का कहना है कि मजदूरों के पास जरूरी सुरक्षा उपकरण नहीं थे। सुरक्षा नियमों के तहत सीवर टैंक या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जब कोई मजदूर जाता है, तो उसके पास मास्क, सेफ्टी जूते, सेफ्टी बेल्ट्स आदि होने चाहिए। लेकिन आरोप है कि उन मजदूरों के पास सुरक्षा उपकरण नहीं थे। दिल्ली फायर विभाग के अधिकारियों के मुताबिक टैंक 15 से 20 फीट गहरा होते हैं। जिन मजदूरों की मौत हुई उनको टैंक में भेजने के पहले पर्याप्त सुरक्षा उपकरण नहीं दिए गए थे। सफाई वाली जगह पर एक बांस की सीढ़ी थी और मजदूर उसी पर खड़े थे। विभाग के मुताबिक हेडलाइट की जगह बस एक बल्ब लटकी हुई थी। दिल्ली फायर सर्विस के मुताबिक जहरीली गैस की चपेट में आने से वहां खड़ा पहला मजदूर बेहोश हो गया। उसके बाद उसे बचाने कूदा दूसरा मजदूर भी बेहोश हो गया।
फायर सर्विस का कहना है कि टैंक के अंदर से सख्त दुर्गंध आ रही थी। ये पूरा चित्रण यह बताता है कि अपने देश में इनसान की जान कितनी सस्ती समझी जाती है। और अगर वो इनसान गरीब और अनुसूचित जाति को हो, तो उसकी तो शायद कोई कीमत ही नहीं समझी जाती। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के मुताबिक पिछले एक दशक में सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई है। सबसे अधिक मौत साल 2019 में 115 लोगों की हुई थी। ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। लेकिन उन पर किसी सरकार का ध्यान नहीं जाता, चाहे वो किसी पार्टी की हो। इससे एक अमानवीय नजरिया के अलावा और क्या कहा जा सकता है। ऐसी मौतें रोकना आज के दौर में आसान है। ऐसी मशीनें हैं, जो इस खतरनाक काम को कर सकती हैं। मगर उन्हें लाने के लिए जो संवेदना चाहिए, उनका नितांत अभाव है।