जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी

भारत में चुनाव विराट उत्सव की तरह होते हैं लेकिन यह दौर कोविड की भयावह लहर का है

Update: 2021-05-04 11:38 GMT

भारत में चुनाव विराट उत्सव की तरह होते हैं लेकिन यह दौर कोविड की भयावह लहर का है। इसी वजह से पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होते हुए भी परिणाम आने के बाद कोई उत्सव का माहौल नहीं। जब चुनावों का माहौल शुरू हुआ था तो तब कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि देशभर में मौत फिर से मंडराने लगेगी। अब जबकि पांच राज्यों में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और सरकारों के गठन की कवायद भी शुरू हो चुकी है। अब राज्य सरकारों और नवनिर्वा​चित जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बनती है कि कोरोना संक्रमण पर जीत हासिल करने के लिए ठोस उपाय करें। पांच राज्यों के चुनावों से जुड़े राजनीतिज्ञ, सांसद और विधायक अब अपने-अपने क्षेत्रों में लौट कर कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में जरूरी सुविधाएं बहाल करने के लिए काम करे। उन्हें जल्द से जल्द प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर काम करना चाहिए ताकि सरकारी और निजी अस्पतालों में न तो आक्सीजन की और न ही दवाइयों की कमी हो। उन्हें इस बात की भी निगरानी रखनी होगी कि समाज विरोधी तत्व संक्रमित लोगों से ठगी न कर सके।


चुनावों के दौरान हर पार्टी का प्रत्याशी यही लाइनें दोहराता है कि मैं आपकाे विश्वास दिलाता हूं कि मैं सुख-दुख में आपके साथ रहूंगा, आपके क्षेत्र की हर समस्या दूर करने की कोशिश करूंगा, इसलिए अपना बहुमुल्य वोट सच्चे, कर्मठ और कुशल उम्मीदवार (मुझे) ही दें। चुनावों के दौरान उम्मीदवार जनता के सामने हाथ जोड़कर खड़ा होता है, उनके होठों पर मुस्कान होती है और जुबान में विनती। लोगों को शिकायत रहती है कि चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि गायब हो जाते हैं। विधायक तो कभी- कभार दिखाई दे जाते हैं मगर सांसद तो दिल्ली में सरकारी आवास में जम जाते हैं। छोटे-छोटे कामों के लिए भी लोगों को दिल्ली जाकर गुहार लगानी पड़ती है। कोराना के इस विकट संकट के दौर में जनता को जनप्रतिनिधियों की जरूरत है। आज कई लोगों में कोरोना को लेकर जरूरी सतर्कता नहीं है, जागरूकता की कमी है। कई परिवारों ने इस कोरोना काल में अपनों को खोया है। कई लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, कई लोगों को उन जनप्रतिनिधियों के सबल की जरूरत है।

इसलिए सभी सांसदों को अपने-अपने क्षेत्रों में लौट कर लोगों का सबल बनना चाहिए। सांसदों के पास पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कमी नहीं होती। कैडट आधारित पार्टियां लोगों को सतर्क करने के लिए पूरा इलाके में कार्यकर्ताओं का जाल बिछा सकती है। जिन राज्यों में पंचायत चुनाव हो चुके हैं। नवनिवार्चित पंचों-सरपंचों और जिला परिषद सदस्यों को टीकाकरण अभियान में प्रशासन के साथ खड़ा होना चाहिए। सच तो यह है कि अगर सांसद, विधायक, पार्षद, प्रधान और पंचायत प्रतिनिधि कोरोना टीकाकरण अभियान में प्रशासन के साथ खड़े हो जाएं तो कोरोना का मुकाबला करने में काफी मदद मिल सकेगी। कई इलाकों के लोगों की शिकायत है कि जनप्रतिनिधि कड़ी नजर नहीं रख रहे और उनकी निष्क्रियता बहुत खल रही है। कुछ क्षेत्रों में तो लोगों ने उनके गुमशुदा होने के पोस्टर तक लगा दिये हैं। जिन क्षेत्रों के जनप्रतिनिधि मंत्री हैं लेकिन उन्होंने भी कोई जिम्मेदारीनहीं निभाई। ऐसा लगता है कि उनकी संवेदनाएं शून्य हो गई हैं। संवेदनाएं हैं तो हम तभी इंसान हैं अगर हममें संवेदनाएं नहीं होंगी तो पत्थर और इंसान में क्या फर्क रह जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट मंत्रियों को राज्यों की जिम्मेदारी दी है। राज्यों को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हो और लगातार फीड बैक लेने के लिए सभी कैबिनेट मंत्रियों को राज्य का प्रभारी बनाया गया है। केंद्रीय मंत्री हर जिले के डीएम और अधिकारियों से बात कर फीड बैक ले रहे हैं। इसी तरह राजनीतिक दलों को भी अपने जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बूथ

स्तर पर लगानी होगी, जैसा चुनावों के वक्त उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है।

चुनौतियां और भी सामने हैं। कोरोना का अर्थव्यवस्था पर असर एक बार फिर दिखने लगा है। पिछले वर्ष जन संकट की शुरुआत हुई थी तब भी यही वक्त था। पिछले वर्ष की पूर्णबंदी से अर्थव्यवस्था अभी उभर नहीं पाई कि फिर से आंशिक बंदी और प्रतिबंधों ने कारोबारियों में खौफ पैदा कर दिया है। इस बार संकट कहीं अधिक गहरा है। हमें एकजुट होकर स्थितियों का मुकाबला करना है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
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