चुनावों के दौरान हर पार्टी का प्रत्याशी यही लाइनें दोहराता है कि मैं आपकाे विश्वास दिलाता हूं कि मैं सुख-दुख में आपके साथ रहूंगा, आपके क्षेत्र की हर समस्या दूर करने की कोशिश करूंगा, इसलिए अपना बहुमुल्य वोट सच्चे, कर्मठ और कुशल उम्मीदवार (मुझे) ही दें। चुनावों के दौरान उम्मीदवार जनता के सामने हाथ जोड़कर खड़ा होता है, उनके होठों पर मुस्कान होती है और जुबान में विनती। लोगों को शिकायत रहती है कि चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि गायब हो जाते हैं। विधायक तो कभी- कभार दिखाई दे जाते हैं मगर सांसद तो दिल्ली में सरकारी आवास में जम जाते हैं। छोटे-छोटे कामों के लिए भी लोगों को दिल्ली जाकर गुहार लगानी पड़ती है। कोराना के इस विकट संकट के दौर में जनता को जनप्रतिनिधियों की जरूरत है। आज कई लोगों में कोरोना को लेकर जरूरी सतर्कता नहीं है, जागरूकता की कमी है। कई परिवारों ने इस कोरोना काल में अपनों को खोया है। कई लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, कई लोगों को उन जनप्रतिनिधियों के सबल की जरूरत है।
इसलिए सभी सांसदों को अपने-अपने क्षेत्रों में लौट कर लोगों का सबल बनना चाहिए। सांसदों के पास पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कमी नहीं होती। कैडट आधारित पार्टियां लोगों को सतर्क करने के लिए पूरा इलाके में कार्यकर्ताओं का जाल बिछा सकती है। जिन राज्यों में पंचायत चुनाव हो चुके हैं। नवनिवार्चित पंचों-सरपंचों और जिला परिषद सदस्यों को टीकाकरण अभियान में प्रशासन के साथ खड़ा होना चाहिए। सच तो यह है कि अगर सांसद, विधायक, पार्षद, प्रधान और पंचायत प्रतिनिधि कोरोना टीकाकरण अभियान में प्रशासन के साथ खड़े हो जाएं तो कोरोना का मुकाबला करने में काफी मदद मिल सकेगी। कई इलाकों के लोगों की शिकायत है कि जनप्रतिनिधि कड़ी नजर नहीं रख रहे और उनकी निष्क्रियता बहुत खल रही है। कुछ क्षेत्रों में तो लोगों ने उनके गुमशुदा होने के पोस्टर तक लगा दिये हैं। जिन क्षेत्रों के जनप्रतिनिधि मंत्री हैं लेकिन उन्होंने भी कोई जिम्मेदारीनहीं निभाई। ऐसा लगता है कि उनकी संवेदनाएं शून्य हो गई हैं। संवेदनाएं हैं तो हम तभी इंसान हैं अगर हममें संवेदनाएं नहीं होंगी तो पत्थर और इंसान में क्या फर्क रह जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट मंत्रियों को राज्यों की जिम्मेदारी दी है। राज्यों को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हो और लगातार फीड बैक लेने के लिए सभी कैबिनेट मंत्रियों को राज्य का प्रभारी बनाया गया है। केंद्रीय मंत्री हर जिले के डीएम और अधिकारियों से बात कर फीड बैक ले रहे हैं। इसी तरह राजनीतिक दलों को भी अपने जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बूथ
स्तर पर लगानी होगी, जैसा चुनावों के वक्त उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है।
चुनौतियां और भी सामने हैं। कोरोना का अर्थव्यवस्था पर असर एक बार फिर दिखने लगा है। पिछले वर्ष जन संकट की शुरुआत हुई थी तब भी यही वक्त था। पिछले वर्ष की पूर्णबंदी से अर्थव्यवस्था अभी उभर नहीं पाई कि फिर से आंशिक बंदी और प्रतिबंधों ने कारोबारियों में खौफ पैदा कर दिया है। इस बार संकट कहीं अधिक गहरा है। हमें एकजुट होकर स्थितियों का मुकाबला करना है।
आदित्य नारायण चोपड़ा